Uttarakhand News: पहली शादी को छिपा दूसरा विवाह कर यौन संबंध बनाना दुष्कर्म की श्रेणी में : हाईकोर्ट
उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार अगर कोई पुरुष अपनी पहली शादी को छुपाकर किसी दूसरी महिला से शादी करता है और उसके साथ उसी आधार पर यौन संबंध बनाता है, तो यह दुष्कर्म की श्रेणी में आएगा।

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उत्तराखंड उच्च न्यायलय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि अगर कोई पुरुष अपनी पूर्व की वैध शादी को छुपाकर दूसरी महिला से विवाह करता है और इस आधार पर यौन संबंध बनाता है, तो इसे बलात्कार की श्रेणी में माना जाएगा।

न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने सार्थक वर्मा की धारा 482 सीआरपीसी के तहत दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। मामले के अनुसार देहरादून निवासी पीड़िता ने सितम्बर 2021 में एफआईआर दर्ज करा आरोप लगाया था कि अभियुक्त सार्थक ने अपनी पहली शादी छुपाकर 24 अगस्त 2020 को हिन्दू रीति-रिवाज से उससे विवाह किया। इसके बाद दहेज की मांग, मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना और यौन शोषण किया गया। बाद में पीड़िता को पता चला कि अभियुक्त पहले से विवाहित है। इसी आधार पर 498ए, 494, 377, 323, 504, 506 आईपीसी और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। बाद की जांच में कई धाराएं हटा दी गईं लेकिन नए जांच अधिकारी ने 375(4), 376, 493, 495 व 496 सहित अन्य गंभीर धाराएं जोड़ दीं।
मामले में सार्थक ने दलील दी कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई और पुलिस ने बिना आधार गंभीर धाराएं जोड़ दीं। उसके मुताबिक पीड़िता पहले से उसके विवाह के बारे में जानती थी और पहले भी उन्हीं आरोपों पर शिकायत दर्ज करा चुकी है। राज्य सरकार और पीड़िता की ओर से कहा गया कि जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि अभियुक्त पहले से शादीशुदा था और उसने यह तथ्य छिपाकर विवाह व यौन संबंध बनाए। पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि यदि उसे पहले विवाह की जानकारी होती तो वह कभी शादी और संबंध के लिए सहमत नहीं होती।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब कोई महिला यह मानकर यौन संबंध बनाती है कि वह अभियुक्त की विधिवत पत्नी है, जबकि वह पहले से विवाहित हो, तो उसकी सहमति वास्तविक नहीं मानी जाएगी। इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 375 की चौथी परिभाषा के तहत बलात्कार माना जाएगा। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह की सहमति “भ्रमित सहमति” है। कोर्ट ने माना कि मामले में प्रथम दृष्टया गंभीर अपराध सिद्ध होते हैं। ऐसे में सीजेएम देहरादून का आदेश सही है। इस आधार पर सार्थक वर्मा की याचिका खारिज कर दी गई और अंतरिम आदेश भी समाप्त हो गया।