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UK: ग्रामीणों ने कहा- बंदर और लंगूर एक दिन हमें गांव से भगा कर रहेंगे, मानव-वन्यजीव संघर्ष से कराह रहे परिवार

अमर उजाला नेटवर्क, पिथौरागढ़ Published by: हीरा मेहरा Updated Mon, 15 Dec 2025 01:50 PM IST
सार

पहाड़ी गांवों में वन्यजीवों का आतंक बढ़ गया है। ये जानवर अब खेतों, बागानों और यहां तक कि घरों के अंदर भी घुसकर फसलों, पेड़ों, अनाज और चारे को नष्ट कर रहे हैं। ग्रामीणों को उन्हें भगाने पर वे हमला भी करते हैं। जिससे ग्रामीण परेशान हैं।

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The terror of wild animals has increased in the hilly villages Pithoragarh
बंदर। - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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विस्तार
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पलायन प्रभावित पहाड़ के गांवों में अब सन्नाटे के साथ डर भी बसने लगा है। खेतों की मेड़ों पर, आंगन की देहरी पर और अब तो घरों के भीतर तक वन्यजीव बेखौफ घूम रहे हैं। जो बंदर और लंगूर कभी जंगलों तक सीमित थे, अब ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी पर हावी होते जा रहे हैं। ग्रामीणों की बेबसी और बेचैनी अनसुनी आवाज बनकर रह गई है।

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पहाड़ के ज्यादातर गांवों में इन दिनों नारंगी, नींबू, माल्टा जैसे फलों से लदे बागानों में खुशहाली की जगह तबाही पसरी है। बंदर और लंगूर फल खाने के साथ टहनियां तोड़ रहे हैं। साथ ही पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ग्रामीण हरीश सिंह कहते हैं कि लंगूर अब घरों के भीतर घुसकर अनाज, राशन और मवेशियों की चारा-पत्ती तक नहीं छोड़ रहे। भगाने पर वे काटने दौड़ते हैं। विनियाखोला की निर्मला देवी का कहना है कि पहले इनकी संख्या कम थी जो अब काफी बढ़ गई है। इन पर अंकुश लगाने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने व्यथित होकर कहा कि एक दिन ये बंदर-लंगूर हमें गांव से भगा कर रहेंगे। गांवों में वन्जीवों का डेरा होगा और हमें खेती छोड़ रोजगार के लिए पलायन करना होगा।

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मायूस किसान खेती छोड़ने को मजबूर
थल, झूलाघाट, गंगोलीहाट सहित जिले के अनेक गांवों में हालात अलग नहीं हैं। झूलाघाट बाजार से लेकर कानड़ी, भटेड़ी, मजिरकांड़ा, रावल गांव, हनेरा, खतेड़ा और लाली तक बंदर-लंगूरों ने फलों और बागवानी को भारी नुकसान पहुंचाया है। उधर जंगली सुअरों ने खेत खोदकर फसलों की कमर तोड़ दी है। जो खेत कभी हरियाली से लहलहाते थे, वे अब धीरे-धीरे बंजर होते जा रहे हैं। किसान मायूस हैं और खेती छोड़ने की मजबूरी उनके सामने खड़ी है।

तेंदुए और भालू की भी दहशत
बंदर और लंगूरों के साथ-साथ तेंदुए और भालू की दहशत भी कम नहीं हुई है। धारचूला, मुनस्यारी और नाचनी क्षेत्रों में बीते एक महीने में इन वन्यजीवों के हमलों में आठ लोग घायल हो चुके हैं। घास काटने या खेतों में काम करने जाना अब जोखिम बन गया है। किसान कहते हैं कि जब जंगल और खेत दोनों असुरक्षित हो जाएं तो गांव में रहना ही मुश्किल हो जाता है।

ग्रामीणों का दुख

बंदर और लंगूर अब फलों, फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही घरों के भीतर घुसने लगे हैं। अब तो खेती-किसानी करना भी मुश्किल है। यदि ये वन्य जीव ऐसे ही नुकसान पहुंचाते रहे तो किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होगा और इन्हें रोजगार के लिए पलायन करना होगा। -हीरा सिंह पाल, खोलियागांव

 

जी तोड़ मेहनत कर खेतों में बुआई करते हैं। बंदर और लंगूर फसलों को बर्बाद कर हमारी मेहनत में एक झटके में पानी फेर रहे हैं। अब तो बंदर, लंगूर घरों के भीतर भी घुसने लगे हैं। यदि इन वन्यजीवों से निजात नहीं मिली तो खेती करना मुमकिन नहीं होगा। -गंगा देवी, अस्कोट

रोजगार के लिए खोली गई दुकान में बंदर और लंगूर सामान, फल उठाकर ले जा रहे हैं। भगाने पर ये काटने को दौड़ रहे हैं। इनकी दहशत से न तो खेती करना संभव है और न दुकान चलाना। इन वन्यजीवों के नुकसान से ही रोजगार के लिए पलायन बढ़ गया है। -गोविंद सिंह, व्यापार संघ अध्यक्ष, अस्कोट

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