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यूरोपीय देशों ने पुतिन के खिलाफ लिखा लेख, भारत ने दिया जवाब
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 03 Dec 2025 04:34 AM IST
इस हफ्ते रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिन की भारत यात्रा पर आ रहे हैं। यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि मौजूदा वैश्विक तनावों और आर्थिक परिस्थितियों के बीच भारत और रूस कई अहम क्षेत्रों में सहयोग को नई दिशा देने वाले समझौते कर सकते हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस दौरान व्यापार, रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, संस्कृति और श्रमिक गतिशीलता (मोबिलिटी) जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रगति होने की उम्मीद है।
दोनों देशों के बीच जिस समझौते पर सबसे ज्यादा नज़र है, वह है भारतीय कामगारों के लिए मोबिलिटी पैक्ट। इस समझौते के लागू होने के बाद रूस में काम के अवसर तलाशने वाले भारतीय नागरिकों के लिए प्रक्रिया पहले से कहीं आसान हो जाएगी।
इस समझौते में भर्ती की प्रक्रिया, शर्तें, कार्यस्थल नियम और दायित्वों का भी उल्लेख होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रूस में निर्माण, स्वास्थ्य सेवा, कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत है, और भारत इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच होने वाली वार्ता में व्यापार बढ़ाने और द्विपक्षीय रक्षा साझेदारी पर व्यापक चर्चा होगी।
इस समय भारत रूस से सालाना लगभग 65 अरब डॉलर का आयात करता है, जबकि निर्यात केवल 5 अरब डॉलर के आसपास है। यह भारी व्यापार असंतुलन भारत के लिए चिंता का विषय है।
भारत चाह रहा है कि रूस को दवाइयों, कृषि उत्पादों, प्रोसेस्ड फूड, टेक्सटाइल और उपभोक्ता वस्तुओं का निर्यात बढ़ाया जाए। माना जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान इन क्षेत्रों में नए रास्ते खुल सकते हैं।
बैठक में यूक्रेन संघर्ष पर भी चर्चा होना तय है। भारत ने हमेशा की तरह इस बार भी साफ किया है कि यह संघर्ष “युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि बातचीत और कूटनीति से समाप्त हो सकता है।”
भारत का कहना है कि किसी भी शांति पहल का समर्थन वह तभी करेगा, जब प्रयास बातचीत, युद्धविराम और शांति बहाली के लिए हों।
हाल ही में फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के राजदूतों ने एक भारतीय अखबार में एक संयुक्त लेख प्रकाशित किया, जिसमें पुतिन की आलोचना की गई थी और उन्हें शांति प्रयासों में बाधा डालने वाला बताने का प्रयास किया गया।
भारत ने इस लेख पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे “असामान्य और अनुचित राजनयिक व्यवहार” बताया। अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की टिप्पणी भारत-रूस संबंधों को प्रभावित करने की नीयत से की गई।
इस यात्रा में दोनों देशों के बीच उर्वरक क्षेत्र में सहयोग को और मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा। रूस हर साल भारत को तीन से चार मिलियन टन उर्वरक सप्लाई करता है।
इसके अलावा यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने पर भी महत्वपूर्ण बातचीत होगी। सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान, कृषि साझेदारी और श्रमिक गतिशीलता पर भी कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
पिछले कुछ महीनों में रूस से कच्चे तेल के आयात में गिरावट देखी गई है। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह गिरावट अमेरिकी प्रतिबंधों और वैश्विक तेल कीमतों की वजह से स्वाभाविक है। खरीद का निर्णय पूरी तरह बाजार परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
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