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कांग्रेस में रहे या मुस्लिम लीग में, पर देश के रहे हसरत मोहानी
अर्पण मैथला, अमर उजाला टीवी, कानपुर Updated Tue, 23 May 2017 08:22 PM IST
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हजार खौफ हों पर जुबां हो सच की रफीक, यही रहा है अजल से कलंदरों का तरीक। जी हां, अंग्रेजों के जुल्म के आगे भी सच का साथ ना छोड़ने वाले हसरत मोहानी का ये वो शेर है जो आज भी लाखों पत्रकारों की जिंदगी का फलसफा है। लखनऊ और कानपुर के बीच बसे कस्बा मोहान में जन्मे हसरत मोहानी ने मशहूर गजलें तो लिखी हीं, लेकिन पत्रकारिता को लेकर उनका जो जुनून था, उसके लिए उन्होंने अपना घर बार बेचकर भी अंग्रेजों के विरोध की अलख आखिर तक जलाए रखी। हसरत मोहानी पर अमर उजाला टीवी की एक खास रिपोर्ट।
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