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Maharashtra BMC Elections: Discord in Mahagathbandhan over seat sharing, efforts to persuade Athawale intensif
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Maharashtra BMC Elections: सीट बंटवारे पर महायुति में कलह,आठवले को मनाने की कवायद तेज!
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Wed, 31 Dec 2025 06:45 AM IST
केंद्रीय मंत्री और RPI(A) अध्यक्ष रामदास आठवले ने कहा, "प्रवीण दरेकर आए थे, उन्होंने कहा कि आपकी नाराजगी हम समझ सकते हैं, भाजपा के साथ चर्चा कई दिनों तक चलती रही.मुख्यमंत्री ने भी आज सुबह मुझे फ़ोन किया था, और प्रवीण दारेकर उनका मैसेज लेकर आए थे। उन्होंने कहा कि हमने जो 39 लोगों की लिस्ट जारी की थी, उन 39 लोगों ने फ़ॉर्म भर दिए हैं. हमने प्रवीण दारेकर से कहा कि कल मुख्यमंत्री के साथ एक बैठक आयोजित करें, और हमें कुछ सीटें दी जाएं. हमने यह भी कहा कि अगर हम उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मिलते हैं, और अगर उनके कोटे से कुछ सीटें मिल सकती हैं, तो उस पर विचार किया जा सकता है.अगर हमें साथ मिलकर आगे बढ़ना है, तो फ़ैसला लेना होगा। अगर हमें 6-7 सीटें भी मिल जातीं, तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन आपने जो सीटें दीं, वे ऐसी सीटें थीं जो हमने मांगी भी नहीं थीं। इसीलिए आज हमारी बातचीत हुई, और मुख्यमंत्री से बात करने के बाद हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है।
महाराष्ट्र की राजनीति में बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) चुनावों को लेकर महायुति (भाजपा, शिवसेना-एकनाथ शिंदे और एनसीपी-अजित पवार) के बीच सीट बंटवारे का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है। इस कलह की मुख्य वजह तीनों दलों की अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने की होड़ और 'मुंबई का किंग' कहलाने की चाहत है।
मुंबई नगर निगम की कुल 227 सीटों पर कब्जे के लिए महायुति के भीतर खींचतान जारी है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) पिछले कई साल से मुंबई में अपना आधार बढ़ा चुकी है और वह 'बड़े भाई' की भूमिका निभाते हुए करीब 140 से 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा रखती है। वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना का तर्क है कि असली शिवसेना वही हैं और मुंबई उनका पारंपरिक गढ़ रहा है, इसलिए उन्हें कम से कम 80 से 90 सीटें मिलनी चाहिए। इस बीच, अजित पवार की एनसीपी ने भी मुंबई के मुस्लिम और उत्तर-भारतीय बहुल इलाकों में अपनी दावेदारी ठोक दी है, जिससे गणित और उलझ गया है।
कलह का एक बड़ा कारण 'सिटिंग गेटिंग' फॉर्मूला (जिसकी सीट है, वही लड़ेगा) भी है। शिंदे गुट के कई पार्षद जो उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर आए हैं, वे अपनी पुरानी सीटों पर दावा कर रहे हैं, जबकि भाजपा उन सीटों पर अपना मजबूत उम्मीदवार उतारना चाहती है। इसके अतिरिक्त, वर्चस्व की लड़ाई भी अहम है; शिंदे गुट खुद को मुंबई का असली वारिस साबित करना चाहता है, जबकि भाजपा इस बार बीएमसी की सत्ता से उद्धव गुट को पूरी तरह बेदखल कर अपना मेयर बिठाने के संकल्प पर अड़ी है। इन विरोधाभासी हितों के कारण बैठकों के कई दौर होने के बावजूद अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया है और अंदरूनी असंतोष बना हुआ है।
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