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ईरान में राष्ट्रपति चुनाव: जोर पकड़ रही है मतदान के बहिष्कार की मुहिम

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेहरान Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 07 Jun 2021 07:28 PM IST
सार

ईरान के चुनाव नियमों के मुताबिक उम्मीदवारों के पर्चे पर पहले वरिष्ठ धर्मगुरुओं की गार्जियन काउंसिल विचार करती है। वह जिन लोगों को इजाजत देती है, सिर्फ वे ही चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। इस बार गार्जियन परिषद ने जिन लोगों के पर्चे खारिज कर दिए, उनमें पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद भी शामिल हैं...

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Campaign to boycott Iran presidential election on June 18 is intensifying
ईरान के प्रधान न्यायाधीश इब्राहिम रईसी - फोटो : instagram.com/raisi_org
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विस्तार
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ईरान में 18 जून को राष्ट्रपति चुनाव के लिए होने वाले मतदान के बहिष्कार की मुहिम तेज होती जा रही है। वहां सोशल मीडिया पर ‘मैं किसी हाल में वोट नहीं डालूंगा’ जैसे हैशटैग लगातार ट्रेंड कर रहे हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि ये चुनाव वैध नहीं है। ऐसी भावना के पीछे बड़ी वजह गार्जियन काउंसिल का कई लोकप्रिय उम्मीदवारों का पर्चा खारिज कर देने का फैसला किया है। वेबसाइट यूरेशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बहिष्कार की मुहिम को मिल रहे भारी समर्थन को देखते हुए इस बार मतदान प्रतिशत बहुत कम रहने की संभावना है।

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ईरान के चुनाव नियमों के मुताबिक उम्मीदवारों के पर्चे पर पहले वरिष्ठ धर्मगुरुओं की गार्जियन काउंसिल विचार करती है। वह जिन लोगों को इजाजत देती है, सिर्फ वे ही चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। इस बार गार्जियन परिषद ने जिन लोगों के पर्चे खारिज कर दिए, उनमें पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद भी शामिल हैं।
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आरोप है कि गार्जियन परिषद ने कट्टरपंथी नेता सईद इब्राहीम रईसी की जीत का रास्ता साफ करने के लिए अहमदीनेजाद के अलावा तमाम प्रमुख उदारवादी नेताओं को भी मैदान से हटा दिया। अब रईसी के मुकाबले जो उम्मीदवार हैं, उन्हें सियासी तौर पर कमजोर समझा जा रहा है। पहले ये खबर आई थी कि गार्जियन परिषद ने ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामेनई की इच्छा के मुताबिक ये फैसला किया। लेकिन बीते शुक्रवार को खामेनई ने पहली बार इस संबंध में बयान दिया। उन्होंने कहा कि जिन उम्मीदवारों का पर्चा खारिज हुआ, उनमें कुछ के साथ न्याय नहीं हुआ। साथ ही कुछ को बदनाम करने के लिए गलत ऑनलाइन अभियान चलाया गया।

लेकिन खामेनई के इस बयान से असल सूरत में कोई फर्क नहीं पड़ा है। ये धारणा बनी हुई है कि इब्राहिम रईसी उनके करीबी और खास हैं। उन्हें खामेनई का उत्तराधिकारी भी समझा जाता है। हाल ही में उन्हें विशेषज्ञों की परिषद का उपाध्यक्ष चुनाव गया था। यही परिषद सर्वोच्च नेता के निधन की स्थिति में उनका उत्तराधिकारी चुनेगी। अब रईसी के राष्ट्रपति भी बन जाने की संभावना है। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि जब खामेनई को सर्वोच्च नेता चुना गया था, तब वे भी ईरान के राष्ट्रपति थे। खामेनई अयातुल्ला खुमैनी के निधन के बाद 1989 में सर्वोच्च धार्मिक नेता बने थे। वे अभी 82 साल के हैं और हाल में उनकी सेहत को लेकर चिंता भी बढ़ी है।

कई विश्लेषकों का मानना है कि इस बार असल में गार्जियन परिषद ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को इजाजत देने के बजाय एक ऐसे उम्मीदवार का रास्ता साफ किया, जो आगे चल कर सर्वोच्च नेता बन सके। रईसी 2017 के चुनाव में भी उम्मीदवार थे, लेकिन तब वे उदारपंथी नेता हसन रूहानी से हार गए थे। तब उन्हें 38 फीसदी वोट मिले थे। इस बार चूंकि दूसरे उम्मीदवार कमजोर हैं और मतदान कम होने की संभावना है, इसलिए अनुमान है कि पिछली बार जितने वोट भी उन्हें मिले, तो वे आसानी से जीत जाएंगे।

रईसी का दर्जा अभी अयातुल्ला से नीचे हुज्जत-अल-इस्लाम का है। वे अयातुल्ला खामेनई की तरह ही ईरान के उत्तर-पूर्वी शहर मशाद से आते हैं। 2019 में उन्हें ईरान के न्यायिक प्राधिकरण का प्रमुख नियुक्त किया गया था। तब खामेनई ने उन्हें भ्रष्टाचार से लड़ने की जिम्मेदारी सौंपी थी। ईरानी मीडिया में उन्हें खामेनई का भरोसेमंद सिपाही कहा जाता है। विश्लेषकों का कहना है कि सुप्रीम लीडर के इस विश्वस्त को सत्ता के सर्वोच्च पद पर लाने के लिए गार्जियन परिषद ने राष्ट्रपति चुनाव की वैधता दांव पर लगा दी। लेकिन इससे ईरान के सत्ता तंत्र पर तुरंत कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

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