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चीन की मानें तो अब बहुत करीब है ईरान परमाणु डील पर सहमति

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग Published by: Harendra Chaudhary Updated Sat, 12 Jun 2021 04:45 PM IST
सार

वांग ने ये अहम संकेत संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से हो रहे निरस्त्रीकरण के बारे में एक सम्मेलन में दिए। इसमें उन्होंने ईरान समझौते में शामिल देशों से अपील की कि वे इस समझौते को पुनर्जीवित करने की अपनी कोशिशें और तेज कर दें...

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China's Foreign Minister Wang Yi said that the Iran nuclear deal was in trouble because of America threat policy
चीन के विदेश मंत्री वांग यी और ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफी - फोटो : Agency
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विस्तार
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ईरान परमाणु डील को फिर से जिंदा करने के लिए चल रही वार्ता में अहम प्रगति होने की खबर है। इसका संकेत चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दिया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका ने एकतरफा ढंग से डराने-धमकाने की जो नीति अपनाई, उसकी वजह से ईरान परमाणु समझौता संकट में पड़ा। लेकिन 2015 में हुए उस समझौते को फिर से लागू करने के लिए जो बातचीत चल रही है, अब वह पूरी होने वाली है। गौरतलब है कि ये वार्ता वियना में चल रही है।

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वांग ने ये अहम संकेत संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से हो रहे निरस्त्रीकरण के बारे में एक सम्मेलन में दिए। इसमें उन्होंने ईरान समझौते में शामिल देशों से अपील की कि वे इस समझौते को पुनर्जीवित करने की अपनी कोशिशें और तेज कर दें। संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) नाम से ये समझौता 2015 में तब हुआ था, जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे। लेकिन उनके बाद जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने 2018 में अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया। इस साल जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से इसे पुनर्जीवित करने के लिए बातचीत फिर से शुरू हुई है।
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2015 के समझौते के तहत ईरान के परमाणु हथियार बनाने की कोशिशों पर रोक लगा दी गई थी। बदले में उस पर से प्रतिबंध हटाए गए थे। आम राय है कि समझौते पर ठीक से अमल हो रहा था। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने अचानक इससे अमेरिका को निकाल कर इसके भविष्य को अधर में लटका दिया। वांग ने कहा कि अब चल रही बातचीत अपनी मंजिल पर पहुंचने ही वाली है।

वियना में पिछले कई महीनों से बातचीत चल रही है। यहां अमेरिका और ईरान के बीच हाल के वर्षों में पहली बार सीधी बात हो रही है। 2015 में इस समझौते पर एक तरफ से ईरान और दूसरी तरफ से अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने दस्तखत किए थे। अमेरिका के अलावा बाकी सभी देश इस समझौते के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराते रहे हैं।

लेकिन ट्रंप प्रशासन के ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा देने के बाद से ईरान ने फिर से यूरेनियम का संवर्धन शुरू कर दिया था। समझौते में प्रावधान था कि ईरान यूरेनियम का अधिकतम 3.67 फीसदी तक संवर्धन कर सकेगा। लेकिन अमेरिका के समझौते से निकलने के बाद ईरान ने अपनी ये क्षमता बढ़ानी शुरू कर दी। अब उसने अपनी ये क्षमता 60 फीसदी तक ले जाने का इरादा जताया है। पमाणु बम बनाने के लिए यूरेनियम का 90 फीसदी तक संवर्धन करना पड़ता है।

इस महीने के शुरुआत में ईरान सरकार के प्रवक्ता अली राबेई ने कहा था कि परमाणु डील पर जल्द ही सहमति बनने वाली है। लेकिन इस बीच ईरान में राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है, जिसमें कट्टरपंथी नेता इब्राहीम रईसी का जीतना तय माना जा रहा है। आम धारणा है कि अगर मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी के रहते समझौता नहीं हुआ, तो बाद में ऐसा होना और मुश्किल हो जाएगा। चीन के विदेश मंत्री के ताजा बयान को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।

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