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Gaza Crisis: गाजा में IDF की बमबारी में 13 की मौत, हर दिन विस्थापित हो रहे हजारों लोग; कोई जगह सुरक्षित नहीं

वर्ल्ड डेस्क,अमर उजाला, गाजा सिटी। Published by: निर्मल कांत Updated Sun, 14 Sep 2025 07:23 PM IST
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सार

Gaza Crisis: इस्राइली सेना की बमबारी में रविवार को उत्तरी गाजा में 13 फलस्तीनियों की मौत हो गई। गाजा सिटी में हालात बेहद खराब हो चुके हैं, जहां हजारों फलस्तीनी हर दिन जान बचाकर पलायन कर रहे हैं। लोगों को जबरन अल-मवासी भेजा जा रहा है, जहां भीड़भाड़, भूख और पानी की भारी किल्लत है। विस्थापितों का कहना है कि अब कोई जगह सुरक्षित नहीं बची है।

Gaza: Thousands displaced daily as Israel steps up bombardment
गाजा में तबाही का मंजर। - फोटो : यूनिसेफ
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विस्तार
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इस्राइल की ओर से अंधाधुंध बमबारी में उत्तरी गाजा में रविवार को 13 फलस्तीनी मारे गए हैं। गाजा सिटी से हर दिन हजारों फलस्तीनी भागने को मजबूर हो रहे हैं, जिसमें रोजाना दर्जनों नागरिक मारे जा रहे हैं। परिवार दक्षिण की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसमें कई भीड़भाड़ वाले और कई बार निशाना बनाए जाने वाले अल-मवासी शिविर की ओर जा रहे हैं। अल-जजीरा की रिपोर्ट में रविवार को यह जानकारी दी गई। 
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फलस्तीनी नागरिक सुरक्षा के मुताबिक, इस्राइली सेना के लगातार हमलों के कारण शनिवार को छह हजार से ज्यादा लोग गाजा सिटी छोड़कर चले गए। हालांकि, करीबी नौ लाख फलस्तीनी अभी भी शहर में हैं, लेकिन यह संख्या तेजी से घट रही है। अल-जजीरा के हमजा मोहम्मद ने कहा, गाजा सिटी इमारत दर इमारत, परिवार दर परिवार खाली होता जा रहा है। जल्द ही जो बचेगा वह शायद एक शहर नहीं, बस एक शहर की याद बनकर रह जाएगा। 
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हमले के डर के कारण भागने वाले लोगों ने अपनी स्थिति के बारे में बताया। दक्षिण की ओर जा रहे एक फलस्तीनी खलील मतर ने कहा, हम चल ही रहे हैं। हमारे साथ बीमार लोग हैं और हमें नहीं पता कि कहां जाएंगे। कोई जगह सुरक्षित नहीं है। कई निवासियों ने कहा कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है, इसलिए उन्होंने इस्राइल की निकासी चेतावनियों का पालन करते हुए अल-मवासी की ओर रुख किया है। हालांकि, जिसे सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है, उस शिविर से मिल रही रिपोर्ट में भारी भीड़ और खाने, पीने के पानी व आश्रय की गंभीर कमी की जानकारी दी गई है। 

लोगों को शरण लेने के लिए नई जगह तलाशने में भी मुश्किल हो रही है। एक विस्थापित फलस्तीनी व्यक्ति ने बताया, करीब एक हफ्ते से हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कहां जाकर शरण लें। मेरा परिवार बहुत बड़ा है। मेरे बच्चे हैं, मां हैं और दादी भी हैं। हमारे सिर पर केवल मिसाइलें ही नहीं गिर रहीं, बल्कि अब भूख भी हमें निगल रही है। उन्होंने आगे कहा कि दो साल से उनका परिवार जिस तंबू में रह रहा था, वह अब रहने लायक नहीं रह गया है और उन्हें नहीं पता कि वे अब कहां शरण लेंगे। उन्होंने कहा, विस्थापन ऐसा दर्द है जैसे शरीर से आत्मा बाहर निकल गई हो। हमें नहीं पता कि अब कहां जाएं। 

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