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इक्वाडोर पहुंची वामपंथी लहर, राष्ट्रपति चुनाव में अराउज रहे सबसे आगे

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, क्विटो Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 08 Feb 2021 05:13 PM IST
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सार

इक्वाडोर की चुनाव प्रणाली के मुताबिक पहले दौर में विजयी होने के लिए किसी उम्मीदवार को या तो 50 फीसदी से अधिक वोट या फिर न्यूनतम 40 फीसदी और निटकटम प्रतिद्वंद्वी से 10 फीसदी ज्यादा वोट हासिल करना जरूरी होता है...

Left ideology reaches at Ecuador, andres arauz leading in presidential election
बोलीविया का झंडा - फोटो : For Refernce Only
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विस्तार
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बोलिविया के बाद इक्वाडोर लैटिन अमेरिका का दूसरा देश बना है, जहां वामपंथी लहर वापस आई है। रविवार को यहां हुए राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी उम्मीदवार आंद्रेस अराउज पहले नंबर पर रहे। उन्हें 36 फीसदी से अधिक वोट मिले। जबकि लगभग 22 फीसदी वोट लाकर दक्षिणपंथी उम्मीदवार गुइलेरमो लासो दूसरे नंबर रहे। अब इन दोनों उम्मीदवारों के बीच राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे के मतदान में मुकाबला होगा।

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इक्वाडोर की चुनाव प्रणाली के मुताबिक पहले दौर में विजयी होने के लिए किसी उम्मीदवार को या तो 50 फीसदी से अधिक वोट या फिर न्यूनतम 40 फीसदी और निटकटम प्रतिद्वंद्वी से 10 फीसदी ज्यादा वोट हासिल करना जरूरी होता है। अराउज 40 फीसदी का आंकड़ा नहीं छू सके, इसलिए अब उन्हें दोबारा चुनाव मैदान में उतरना होगा। दूसरे दौर का मतदान अप्रैल में होगा।
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चुनाव परिणाम सामने आने के बाद अराउज ने एक ट्वीट में अपनी जीत का दावा किया। उन्होंने कहा, हमारी अपने खूबसूरत देश के सभी क्षेत्रों में शानदार जीत हुई है। हम 2:1 के अनुपात से बैंकर (गुइलेरमो लासो पेशे से बैंकर हैं) से आगे रहे।’ टीवी चैनल टेलीसुर से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक इसाबेल रामोस ने कहा कि अराउज की जीत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इससे यह जाहिर हुआ कि इक्वाडोर का प्रगतिशील आंदोलन तमाम रुकावटों को पार करने में कामयाब रहा।

हालांकि अराउज के समर्थक आखिर तक कहते रहे कि विदेशों में बसे इक्वाडोर के लोगों की वोट की गिनती होने पर अराउज 40 फीसदी का आंकड़ा छू लेंगे, लेकिन द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर में बताया गया है, अब इसकी संभावना नहीं है। इसके पहले अमेरिका स्थित नौसेना अकेडेमी में लैटिन अमेरिका के विशेषज्ञ याकू पेरेज ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था कि जीत चाहे जिसकी हो, उसके लिए शासन करना आसान नहीं होगा। उसे देश गहरी सामाजिक समस्याओं और राजकोषीय स्थिति का सामना करना होगा।

अराउज को पूर्व राष्ट्रपति रफायल कोरिया का शिष्य समझा जाता है। कोरिया लोकप्रिय वामपंथी राष्ट्रपति थे, जिनके कार्यकाल में जन कल्याण के कार्यों पर भारी खर्च किया गया था। बाद में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। उस कारण पिछले राष्ट्रपति चुनाव में लेनिन मोरेने जीते, जो देश को नव-उदारवादी रास्ते पर ले गए। लेकिन उससे देश में आम जन की मुश्किलें बढ़ीं। ताजा चुनाव नतीजे को उसी के खिलाफ जनादेश समझा जा रहा है।

अराउज हाल तक एक तरह से अनजाने नेता थे। लेकिन उन्होंने रफायल कोरिया के उत्तराधिकारी के रूप में अपना प्रचार किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरिया हालांकि एक विवादास्पद नेता रहे, लेकिन पौने दो करोड़ की आबदी वाले उनके देश में आज भी उनकी लोकप्रियता का स्तर ऊंचा है। विश्लेषकों का कहना है कि इस सदी के आरंभ में लैटिन अमेरिका में चली वामपंथ की लहर के जो चेहरे चर्चित रहे, उनमें एक रफायल कोरिया भी थे। पिछले दशक में इन ज्यादातर देशों वामपंथ बैकफुट पर चला गया।

लेकिन पिछले नवंबर में वहां हुए चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति इवो मोरालेस की पार्टी को भारी जीत मिली। अर्जेंटीना में 2019 में वामपंथी पूर्व राष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडेज की पार्टी सत्ता में लौट आई थी। इसके अलावा क्यूबा, निकरागुआ और वेनेजुएला में वामपंथी पार्टियां सत्ता में बनी हुई हैँ। अब इक्वाडोर के चुनाव नतीजे से लगता है कि इस महाद्वीप में एक बार फिर वामपंथ मजबूत होकर उभर रहा है।

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