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नेपाल: चीफ जस्टिस के पलटवार से और गहराया न्यायपालिका का संकट, जानिए क्या है मामला

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडू Published by: अभिषेक दीक्षित Updated Thu, 23 Dec 2021 05:16 PM IST
सार

नेपाल बार एसोसिएशियन के अध्यक्ष चंद्रेश्वर श्रेष्ठ ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘कोर्ट के मुख्य गेट से बाधाएं हटाने का निर्देश और न्यायिक सेवा आयोग की बैठक बुलाने का फैसला इस बात का संकेत है कि जस्टिस राणा अपना सिर उठाने की कोशिश कर रहे हैं।’

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Nepal: The crisis of the judiciary deepens further due to the Chief Justices counter attack Latest News Update
नेपाल - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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नेपाल की न्यायपालिका में दो महीने से चल रहा संकट अब और गहरा गया है। ये संकट प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के खिलाफ वकीलों और कुछ जजों के बागी रुख अपना लेने की वजह से पैदा हुआ था। तब से राणा ने अपने को अलग-थलग कर रखा था। लेकिन अब उन्होंने सक्रिय होने का संकेत दिया है।

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जस्टिस राणा ने इस सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ रजिस्ट्रार लाल बहादुर कुंवर को निर्देश दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट की इमारत के सामने चल रहे वकीलों के विरोध प्रदर्शन को वहां से हटाने की पहल करें। इसके अलावा बुधवार को उन्होंने न्यायिक सेवा आयोग की एक बैठक भी बुलाई। आयोग ने बीते 28 सितंबर को जिला अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित की थी। अब वह उसका परिणाम घोषित करने की तैयारी में है। बुधवार की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाई गई।
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जस्टिस राणा पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप हैं। इस पर विरोध जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों ने अपनी एक बैठक में चीफ जस्टिस को रोस्टर तैयार करने के अधिकार से वंचित करने का फैसला किया था। उन्होंने तब लॉटरी के जरिए मामलों की सुनवाई तय करने का निर्णय लिया था। उसके बाद जज इसी निर्णय के मुताबिक मुकदमों की सुनवाई कर रहे हैं।

जस्टिस राणा को हटाने की मांग करते हुए वकील लगातार आंदोलन चला रहे हैं। उन्होंने बाकी जजों को चेतावनी दी है कि वे जस्टिस राणा के साथ किसी बेंच में ना बैठें। अब तक जजों ने इस बात का पालन किया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि अब कोर्ट में टकराव बढ़ सकता है। जस्टिस राणा के ताजा कदमों से संकेत मिला है कि उन्होंने अब अपना अधिकार जताने का फैसला किया है।

नेपाल बार एसोसिएशियन के अध्यक्ष चंद्रेश्वर श्रेष्ठ ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘कोर्ट के मुख्य गेट से बाधाएं हटाने का निर्देश और न्यायिक सेवा आयोग की बैठक बुलाने का फैसला इस बात का संकेत है कि जस्टिस राणा अपना सिर उठाने की कोशिश कर रहे हैं।’ चंद्रेश्वर श्रेष्ठ ही प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ वकीलों के चल रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। वकीलों का आंदोलन तेज होने के बाद पिछले 25 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जस्टिस राणा का बहिष्कार शुरू कर दिया था। उन्होंने मांग की थी कि जस्टिस राणा इस्तीफा दे दें, ताकि नेपाली न्यायपालिका में पैदा हुए संकट का हल निकल सके।

कई विधि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जस्टिस राणा ने अपने अधिकार जताने की कोशिश जारी रखी, तो उससे न्यायपालिका में काफी उथल-पुथल मच सकती है। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि जस्टिस राणा अभी भी प्रधान न्यायाधीश पद पर हैं और उनके अधिकारों को निलंबित नहीं किया गया है। लेकिन राणा विरोधी विश्लेषकों का कहना है कि चूंकि जज चीफ जस्टिस का बहिष्कार कर रहे हैं, इसलिए व्यावहारिक रूप में उनके अधिकार निलंबित हो चुके हैं।

विधि विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- “चूंकि जस्टिस राणा ने यह साफ संकेत दिया है कि वे इस्तीफा नहीं देंगे, इसलिए न्यायपालिका में समस्या अधिक से अधिक जटिल होती जा रही है।”

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