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Pakistan: विद्रोह की सुलगती चिंगारी से भीषण संघर्ष के मुहाने पर पहुंचा पाकिस्तान; अस्थिरता और आर्थिक दबाव बढ़ा

अमर उजाला नेटवर्क, इस्लामाबाद Published by: शिवम गर्ग Updated Mon, 01 Dec 2025 06:03 AM IST
सार

पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर ने नाम उजागर किए बिना कहा कि समस्या यह नहीं है कि इमरान लोकप्रिय हैं। समस्या यह है कि संस्थागत वैधता पहली बार लोकप्रिय वैधता से कमजोर महसूस की जा रही है। यह स्थिति सेना के लिए सामरिक खतरा है, न कि केवल राजनीतिक असुविधा।

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Pakistan on Brink of Crisis: Rising Unrest Sparks Intense Political, Military & Economic Turmoil
पाकिस्तान - फोटो : Adobestock
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विस्तार
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पाकिस्तान का वर्तमान संकट इमरान खान बनाम सेना की लड़ाई से कहीं बड़ा है। अब सत्ता का दांव सिर्फ राजनीतिक वर्चस्व का नहीं, बल्कि सेना के संस्थागत प्रभुत्व, प्रांतों की क्षेत्रीय पहचान और अर्थव्यवस्था की बुनियादी जीवंतता से जुड़ चुका है। सैन्य रणनीति, जनसमर्थन का भूगोल और आर्थिक दिवालियापन एक दूसरे से टकराते हैं तो देश खतरनाक मायनों में पुनर्गठन के दौर में प्रवेश करता है। पाकिस्तान में भी यही हो रहा है। विद्रोह की सुलगती चिंगारी से वह भीषण संघर्ष के मुहाने पर पहुंच चुका है।

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पाकिस्तानी सेना की रणनीति का पूरा ढांचा इस बात पर केंद्रित है कि राष्ट्रीय नैरेटिव, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा पर उसकी पकड़ बनी रहे। इमरान को सिर्फ सियासी चुनौती नहीं, संस्थागत नियंत्रण के लिए खतरा माना जा रहा है। आंतरिक खुफिया रिपोर्टों में चिंता जताई गई है कि पहली बार प्रजातंत्र नहीं, सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ जन-आंदोलन जैसी मानसिकता उभर रही है। सूचना नैरेटिव से लेकर मीडिया पर नियंत्रण, राजनीतिक नेतृत्व के पुनर्विन्यास की कोशिश और पीटीआई कैडर को संगठित विरोध से बिखरे विरोध की ओर धकेलने के सेना के दबाव से जनसमर्थन घटने के बजाय बढ़ रहा है।
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पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर ने नाम उजागर किए बिना कहा कि समस्या यह नहीं है कि इमरान लोकप्रिय हैं। समस्या यह है कि संस्थागत वैधता पहली बार लोकप्रिय वैधता से कमजोर महसूस की जा रही है। यह स्थिति सेना के लिए सामरिक खतरा है, न कि केवल राजनीतिक असुविधा।

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संकट केवल राजनीतिक नहीं, केंद्रीय सैन्य सत्ता बनाम प्रांतीय जनसत्ता का संघर्ष
पुलिस-सेना की कार्रवाई के बावजूद पंजाब में पीटीआई के प्रति जनमत बरकरार है। खैबर पख्तूनख्वा में सेना और केंद्र के प्रति असंतोष ऐतिहासिक रूप से बढ़ रहा है। पीटीआई अब प्रांतीय पहचान के प्रतीक के रूप में बदल चुकी है। सिंध यानी कराची में इमरान के लिए भारी समर्थन, लेकिन ग्रामीण सिंध पीपीपी के पीछे परंपरागत रूप से मजबूती से खड़ा है।

बलूचिस्तान का संकट अलग प्रकार का है। इमरान बनाम सेना की लड़ाई से ज्यादा बलूच अस्मिता बनाम इस्लामाबाद का टकराव प्रमुख है। साउथ एशिया पॉलिसी कंसोर्टियम का आकलन है कि केंद्र व सेना की शक्ति इस्लामाबाद रावलपिंडी कॉरिडोर में सिमटी हुई है, जबकि इमरान की लोकप्रियता भौगोलिक रूप से राष्ट्रव्यापी और जनसांख्यिक रूप से गहरी है। यही कारण है कि संकट केवल राजनीतिक नहीं केंद्रीय सैन्य सत्ता बनाम प्रांतीय जनसत्ता का संघर्ष बन चुका है।



अर्थव्यवस्था व सत्ता संघर्ष  
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम सीमा पर है। आईएमएफ की कड़ी शर्तों के बावजूद ऋण राहत का स्थायी मॉडल नहीं और सरकारी सब्सिडी ढहने के कारण खाद्य और ईंधन संकट के साथ बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है। जनता मान चुकी है कि पारंपरिक राजनीतिक व्यवस्था और सैन्य नियंत्रित शासन देश बचाने में विफल रहे हैं। सेना के लिए चुनौती केवल व्यवस्था की रखवाली नहीं, बल्कि ढहती अर्थव्यवस्था के बोझ तले जनता के असंतोष को रोकना भी है। और सेना के पास इस संकट को हल करने का मॉडल नहीं सिर्फ नियंत्रित करने की क्षमता है।

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सैन्य रणनीति बनाम आर्थिक वास्तविकता...
डिफेंस एनालिटिक्स नेटवर्क के अनुसार, सेना के लिए सबसे बड़ा जोखिम यह है कि आर्थिक संकट उस रक्षात्मक सैन्य रणनीति को कमजोर कर सकता है जो जनसमर्थन को दबाव के जरिए निष्क्रिय करना चाहती है। इमरान के समर्थन का विस्तार संगठित राजनीतिक योजना का परिणाम नहीं, बल्कि आर्थिक आशा बनाम सैन्य-प्रशासकीय निराशा के समीकरण का परिणाम है। इसलिए संघर्ष अब त्रिआयामी युद्ध बन चुका है। सैन्य, राजनीतिक व आर्थिक...इनमें से किसी भी मोर्चे पर गलती पाकिस्तान को विभाजनकारी हिंसा में धकेल सकती है।

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