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ईरान में राष्ट्रपति चुनाव: गार्जियन परिषद ने दी कट्टरपंथी नेता इब्राहीम रईसी के नाम को मंजूरी
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेहरान
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 26 May 2021 04:47 PM IST
सार
साल 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान में चुनाव प्रक्रिया नियंत्रित रही है। रईसी को कट्टरपंथी और सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनई का करीबी समझा जाता है। वे परमाणु डील के भी विरोधी रहे हैं। अब चूंकि उनके मुकाबले कोई मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं होगा, इसलिए 18 जून को होने वाले चुनाव में उनकी जीत लगभग पक्की मानी जा रही है...
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ईरान के कट्टरपंथी नेता इब्राहीम रईसी
- फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
ईरान परमाणु समझौते के पुनर्जीवित होने को लेकर मंगलवार को कुछ सकारात्मक संकेत मिले, लेकिन उसके साथ ही एक ऐसी खबर आई, जिससे आशंकाएं फिर गहरा गईं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में संयुक्त व्यापक कार्य योजना यानी परमाणु डील को लेकर इस समय वियना में बातचीत चल रही है। यहां ईरान और अमेरिका परोक्ष रूप से एक दूसरे से बातचीत कर रहे हैं।
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मंगलवार को ईरान सरकार के प्रवक्ता अली राबेई ने ‘उम्मीद’ जताई कि ईरान परमाणु डील के फिर से अमल में आने की राह वार्ता के इसी दौर में निकल आएगी। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) में रूस के राजदूत मिखाइल उल्यानोव ने भी कहा कि बातचीत सकारात्मक दिशा में है। इसके पहले परमाणु वार्ता से जुड़े रहे अमेरिकी वार्ताकार रॉबर्ट मेले ने एक ट्विट में कहा था कि अब तक बातचीत रचनात्मक रही है, लेकिन अभी भी काफी काम होना बाकी है।
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राबेई ने तेहरान में बताया कि प्रमुख विवादों पर आम सहमति बन गई है। उन्होंने कहा कि पांचवें दौर की वार्ता आखिरी हो सकती है। लेकिन जिस समय उन्होंने ये बयान दिया, लगभग तभी ये खबर आई कि ईरान के चुनावों की गार्जियन परिषद ने अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में कट्टरपंथी नेता इब्राहीम रईसी की जीत का रास्ता तैयार कर दिया है। ईरान की चुनाव प्रणाली के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ वे उम्मीदवार ही मैदान में उतर सकते हैं, जिन्हे गार्जियन परिषद मंजूरी देती है। इस बार परिषद ने रईसी को टक्कर दे सकने वाले सभी प्रमुख मजबूत उम्मीदवारों को मैदान से हटा दिया है। जिन उम्मीदवारों की दावेदारी रद्द की गई है, उनमें पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद और ईरानी संसद के पूर्व स्पीकर अली लरिजानी भी हैं।
साल 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान में चुनाव प्रक्रिया नियंत्रित रही है। रईसी को कट्टरपंथी और सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनई का करीबी समझा जाता है। वे परमाणु डील के भी विरोधी रहे हैं। अब चूंकि उनके मुकाबले कोई मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं होगा, इसलिए 18 जून को होने वाले चुनाव में उनकी जीत लगभग पक्की मानी जा रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस बार गार्जियन परिषद ने कुछ ज्यादा ही सख्त रुख अपनाया है। इससे ईरान की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल गहराएंगे। आशंका जताई जा रही है कि असली मुकाबले के अभाव के कारण मतदान प्रतिशत बेहद कम रहेगा, जिससे चुनाव प्रक्रिया की साख काम होगी। सवाल यह उठा है कि दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति रह चुके अहमदीनेजाद और संसद के स्पीकर रह चुके लरिजानी किस आधार पर अब राष्ट्रपति बनने के अयोग्य करार दिए गए हैं? गार्जियन परिषद ने उप राष्ट्रपति और मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी के करीबी इशहाक जहांगीरी को भी अयोग्य ठहरा दिया है।
शुरुआती तौर पर लगभग 600 लोगों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना पर्चा भरा था। लेकिन पर्चों की जांच के बाद 40 लोग मैदान में रह गए। गार्जियन परिषद ने उनमें से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की अनुमति दी है। उनमें सईद जलीली जैसे उदारपंथी भी हैं, लेकिन उनके सहित कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं है, जो सचमुच जीतने की स्थिति में हो।
साल 2015 में ईरान परमाणु डील को कार्यरूप देने में रूहानी की अहम भूमिका थी। जहांगीरी और लरिजानी भी इस समझौते के समर्थकों में रहे हैं। जबकि रईसी यह मानते हैं कि अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए परमाणु डील को फिर से अमल में लाने के प्रयासों का उन्होंने विरोध किया है। अब विश्लेषकों का कहना है कि अगर 18 जून के पहले परमाणु डील को पुनर्जीवित करने का समझौता नहीं हो जाता है, तो उसके बाद ऐसा कर पाना बेहद कठिन होगा।