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'सीरिया संघर्ष में अकेली पड़ गई हैं महिलाएं'
Updated Wed, 04 Dec 2013 01:30 PM IST
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सीरिया में महिलाओं को सरकारी सुरक्षा बलों और सशस्त्र समूहों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। उनके साथ हिंसक दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं।
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'द यूरो मेडिटरेनियन ह्यूमन राइट्स नेटवर्क' (इएमएचआरएन) के मुताबिक मार्च 2011 से सीरिया का संघर्ष शुरू होने के बाद लगभग 6,000 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं।
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इस समूह की महिला प्रवक्ता ने बताया कि इन महिलाओं को सामाजिक रूप से कलंकित किया गया और उन पर अपने घर छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया।
रिपोर्ट यह भी कहती है कि महिलाओं को बंदूकधारी भी निशाना बना रहे हैं और बच्चों समेत उनका इस्तेमाल मानव सुरक्षा कवच के रूप में किया जा रहा है।
निशाने पर महिलाएं
रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा सीरिया संघर्ष का रिसता हुआ घाव है। यह रिपोर्ट 2013 के पहले छह महीने के दौरान पीड़ितों और मेडिकल स्टॉफ़ के साक्षात्कार पर आधारित है।
रिपोर्ट बताती है कि कैसे सैकड़ों महिलाओं की मनमाने ढंग से गिरफ्तारी की गई और उन्हें मुँह छिपाने को मजबूर किया गया। महिलाओं को कई तरह के उत्पीड़न से गुज़रना पड़ा और यह सब कुछ सरकारी सैन्य कारावास में हुआ।
द यूरो मेडिटरेनियन ह्यूमन राइट्स नेटवर्क की महिला प्रवक्ता हयेत ज़ेगीचे ने बीबीसी को बताया, "महिलाओं का इस्तेमाल विशेषाधिकार के रूप में हो रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनका पक्ष लिया जा रहा है। ऐसा विपक्ष या सरकारी संस्थाओं के सदस्यों से उनके रिश्ते के कारण किया जा रहा है।"
उन्होंने बताया, "राजनीतिक मामलों और कमज़ोर होने के नाते महिलाओं को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है।"
'अकेली और एकाकी'
रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं का अपहरण क़ैदियों की अदला-बदली और बदला लेने की रणनीति सी बन गई है। उनके ख़िलाफ़ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसे अपराध उन्हें एकाकी बना रहे हैं।
महिलाओं की स्थिति के बारे में हयेत ज़ेगीचे कहती हैं, "महिलाओं पर लगा यह धब्बा उनको सामाजिक रूप से अस्वीकार्य बना देता है। इस कारण उन पर अपना क्षेत्र छोड़कर चले जाने का दबाव होता है, लेकिन कुछ महिलाओं के पास तो परिवार के साथ चले जाने का भी विकल्प नहीं होता।"
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक सीरिया में जारी संघर्ष में लगभग एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और बीस लाख से ज़्यादा सीरियाई देश छोड़कर जा चुके हैं।
सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने 22 जनवरी से जेनेवा में शांति वार्ता शुरू करने की घोषणा की थी जिसमें सरकार और विपक्ष पहली बार आमने-सामने होंगे।
उन्होंने कहा," इस अवसर का इस्तेमाल सीरिया में जारी पीड़ा और विनाश के अंत के लिए न करना अक्षम्य होगा।"