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BR Gavai: 'बिना समानता के नहीं बन सकता प्रगतिशील देश', इटली में एक कार्यक्रम के दौरान बोले सीजेआई गवई
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, मेलान
Published by: शुभम कुमार
Updated Thu, 19 Jun 2025 01:54 AM IST
सार
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मिलान में कहा कि जब तक समाज की संरचनात्मक असमानताएं दूर नहीं होतीं, कोई देश प्रगतिशील या लोकतांत्रिक नहीं बन सकता। इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक-आर्थिक न्याय को स्थिरता और विकास के लिए अनिवार्य बताया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मिलान में कहा कि जब तक समाज की संरचनात्मक असमानताएं दूर नहीं होतीं, कोई देश प्रगतिशील या लोकतांत्रिक नहीं बन सकता। इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक-आर्थिक न्याय को स्थिरता और विकास के लिए अनिवार्य बताया।
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सीजेआई बी.आर. गवई
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
. इस अवभारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने बुधवार को समाज की संरचनात्मक असमानताओं पर बातचीत की। इटली के मिलान में आयोजित एक कार्यक्रम में गवाई ने कहा कि जब तक समाज के बड़े वर्गों को हाशिए पर डालने वाली संरचनात्मक असमानताओं को दूर नहीं किया जाता, तब तक कोई भी देश खुद को वास्तव में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक नहीं कह सकता।
समाजिक आर्थिक न्यया में संविधान की भूमिका
बता दें कि जिस कार्यक्रम में गवई बोल रहे थे उस कार्यक्रम का कार्यक्रम का विषय था ..देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय में संविधान की भूमिका। इस अवसर पर सीजेआई ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय कोई कल्पनात्मक आदर्श नहीं है, बल्कि यह समाज में स्थिरता, समरसता और टिकाऊ विकास के लिए एक व्यावहारिक आवश्यकता है।
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'हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का हक'
सीजेआई गवई ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय केवल संपत्ति के पुनर्वितरण या कल्याण योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन जीने, अपनी पूर्ण संभावनाओं को साकार करने और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन में समान भागीदारी के अवसर देने का सवाल है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय संविधान सिर्फ एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक क्रांतिकारी वादा और आशा की किरण है, जो आज़ादी के बाद के भारत में गरीबी, असमानता और सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लक्ष्य के साथ बना था। उन्होंने कहा KF मैं खुद एक वंचित समुदाय से आता हूं। आज मैं भारत का मुख्य न्यायाधीश हूं, यह संविधान की समावेशी सोच और अवसरों के लोकतंत्रीकरण का परिणाम है।
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आरक्षण और प्रतिनिधित्व पर जोर
सीजेआई ने शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की बात करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने और दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों को बराबरी का हक़ देने के लिए संविधान का एक ठोस प्रयास है। उन्होंने कहा कि संविधान ने लोगों को सोचने की दिशा, औजार और नैतिक मार्गदर्शन दिया है। कानून को सामाजिक बदलाव, सशक्तिकरण और कमजोर वर्गों की सुरक्षा का जरिया बनाया गया है।
संसद और न्यायपालिका दोनों ने बढ़ाया अधिकारों का दायरा
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में भारत में गरीबी हटाने, रोजगार सृजन और भोजन, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। इसमें संसद और न्यायपालिका दोनों की अहम भूमिका रही है।
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समाजिक आर्थिक न्यया में संविधान की भूमिका
बता दें कि जिस कार्यक्रम में गवई बोल रहे थे उस कार्यक्रम का कार्यक्रम का विषय था ..देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय में संविधान की भूमिका। इस अवसर पर सीजेआई ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय कोई कल्पनात्मक आदर्श नहीं है, बल्कि यह समाज में स्थिरता, समरसता और टिकाऊ विकास के लिए एक व्यावहारिक आवश्यकता है।
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'हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का हक'
सीजेआई गवई ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय केवल संपत्ति के पुनर्वितरण या कल्याण योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन जीने, अपनी पूर्ण संभावनाओं को साकार करने और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन में समान भागीदारी के अवसर देने का सवाल है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय संविधान सिर्फ एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक क्रांतिकारी वादा और आशा की किरण है, जो आज़ादी के बाद के भारत में गरीबी, असमानता और सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लक्ष्य के साथ बना था। उन्होंने कहा KF मैं खुद एक वंचित समुदाय से आता हूं। आज मैं भारत का मुख्य न्यायाधीश हूं, यह संविधान की समावेशी सोच और अवसरों के लोकतंत्रीकरण का परिणाम है।
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आरक्षण और प्रतिनिधित्व पर जोर
सीजेआई ने शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की बात करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने और दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों को बराबरी का हक़ देने के लिए संविधान का एक ठोस प्रयास है। उन्होंने कहा कि संविधान ने लोगों को सोचने की दिशा, औजार और नैतिक मार्गदर्शन दिया है। कानून को सामाजिक बदलाव, सशक्तिकरण और कमजोर वर्गों की सुरक्षा का जरिया बनाया गया है।
संसद और न्यायपालिका दोनों ने बढ़ाया अधिकारों का दायरा
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में भारत में गरीबी हटाने, रोजगार सृजन और भोजन, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। इसमें संसद और न्यायपालिका दोनों की अहम भूमिका रही है।