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घर की आठ दिशाएं और उनके स्वामी ग्रह, जानिए दोष होने पर क्या-क्या होते हैं दुष्परिणाम
ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Sat, 20 Dec 2025 05:13 PM IST
सार
वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है। कुल आठ दिशाओं के आधार पर वास्तु के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
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वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर की प्रत्येक दिशा का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता है। यदि कोई दिशा दूषित हो जाए, तो उसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य, संबंध और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। आइए जानते हैं आठों दिशाओं का महत्व और उनके दोषों के प्रभाव।
पूर्व दिशा (सूर्य ग्रह की दिशा)
पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य ग्रह माने जाते हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार, खिड़की होना शुभ माना गया है अथवा इसे खुला रखना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित हो जाए तो पिता से मतभेद, सरकारी कार्यों या नौकरी में अड़चन, मानसिक दुर्बलता, ज्वर, सिरदर्द, पीलिया, नेत्र, हृदय, चर्म, क्षय एवं अस्थि रोग जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
आग्नेय दिशा (अग्नि तत्व का क्षेत्र)
दक्षिण और पूर्व के मध्य स्थित कोण को आग्नेय कोण कहा जाता है। इसके स्वामी शुक्र ग्रह हैं। इस दिशा में रसोईघर, गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि रखना उचित होता है। यदि यह दिशा दोषयुक्त हो जाए तो स्त्री सुख में कमी, वाहन कष्ट, श्रृंगार के प्रति अरुचि, नपुंसकता, हर्निया, मधुमेह, धातु व मूत्र रोग तथा गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
दक्षिण दिशा (मंगल ग्रह का प्रभाव)
दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल ग्रह हैं। इस दिशा में भारी सामान रखना शुभ माना गया है। दोष होने पर गृहस्वामी को कष्ट, भाइयों से विवाद, अत्यधिक क्रोध, दुर्घटनाओं में वृद्धि तथा उच्च रक्तचाप, रक्त विकार, कुष्ठ, फोड़े-फुंसी, बवासीर, चेचक आदि रोगों की आशंका रहती है।
इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह माने जाते हैं। यहां घर के मुखिया का शयनकक्ष, कैश काउंटर या भारी मशीनें रखी जा सकती हैं। यदि यह दिशा दूषित हो जाए तो परिवार में असमय मृत्यु का भय, दादा-नाना से संबंधित परेशानियां, भूत-प्रेत या जादू-टोने का भय तथा त्वचा, मस्तिष्क, रक्त विकार, चेचक, हैजा आदि रोग हो सकते हैं।
पश्चिम दिशा में शनि ग्रह का प्रभाव होता है। यदि पश्चिम दिशा में दोष हो तो नौकरी में रुकावट, वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी की समस्या, भय, कैंसर, कुष्ठ, मिर्गी, नपुंसकता और पैरों से संबंधित रोगों की संभावना बढ़ जाती है।
वायव्य कोण (चंद्र ग्रह की दिशा)
वायव्य दिशा के स्वामी चंद्र ग्रह हैं। इस दिशा में शयनकक्ष, गैरेज या गौशाला होना उचित माना गया है। दोष होने पर माता से संबंधों में तनाव, मानसिक अशांति, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी परेशानी, पथरी और निमोनिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
उत्तर दिशा के स्वामी बुध ग्रह हैं। इस दिशा में खिड़की, दरवाजा, बालकनी या मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। यदि उत्तर दिशा दूषित हो जाए तो बुद्धि और विद्या में कमी, वाणी दोष, स्मरण शक्ति का ह्रास, मस्तिष्क, गले या नाक के रोग, व्यवसाय में हानि और मामा से संबंधों में कटुता देखी जाती है।
ईशान कोण (बृहस्पति ग्रह की दिशा)
ईशान कोण के स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। इस दिशा में पूजास्थल, बोरिंग, जल स्रोत, स्वीमिंग पूल या मुख्य द्वार होना श्रेष्ठ माना गया है। इस दिशा में दोष होने पर पूजा-पाठ में अरुचि, गुरु और देवताओं पर आस्था में कमी, आय व संचित धन में गिरावट, विवाह और संतान में देरी, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज और अनिद्रा जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
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पूर्व दिशा (सूर्य ग्रह की दिशा)
पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य ग्रह माने जाते हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार, खिड़की होना शुभ माना गया है अथवा इसे खुला रखना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित हो जाए तो पिता से मतभेद, सरकारी कार्यों या नौकरी में अड़चन, मानसिक दुर्बलता, ज्वर, सिरदर्द, पीलिया, नेत्र, हृदय, चर्म, क्षय एवं अस्थि रोग जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
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आग्नेय दिशा (अग्नि तत्व का क्षेत्र)
दक्षिण और पूर्व के मध्य स्थित कोण को आग्नेय कोण कहा जाता है। इसके स्वामी शुक्र ग्रह हैं। इस दिशा में रसोईघर, गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि रखना उचित होता है। यदि यह दिशा दोषयुक्त हो जाए तो स्त्री सुख में कमी, वाहन कष्ट, श्रृंगार के प्रति अरुचि, नपुंसकता, हर्निया, मधुमेह, धातु व मूत्र रोग तथा गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
दक्षिण दिशा (मंगल ग्रह का प्रभाव)
दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल ग्रह हैं। इस दिशा में भारी सामान रखना शुभ माना गया है। दोष होने पर गृहस्वामी को कष्ट, भाइयों से विवाद, अत्यधिक क्रोध, दुर्घटनाओं में वृद्धि तथा उच्च रक्तचाप, रक्त विकार, कुष्ठ, फोड़े-फुंसी, बवासीर, चेचक आदि रोगों की आशंका रहती है।
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नैऋत्य कोण (राहु ग्रह की दिशा)इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह माने जाते हैं। यहां घर के मुखिया का शयनकक्ष, कैश काउंटर या भारी मशीनें रखी जा सकती हैं। यदि यह दिशा दूषित हो जाए तो परिवार में असमय मृत्यु का भय, दादा-नाना से संबंधित परेशानियां, भूत-प्रेत या जादू-टोने का भय तथा त्वचा, मस्तिष्क, रक्त विकार, चेचक, हैजा आदि रोग हो सकते हैं।
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पश्चिम दिशा (शनि ग्रह का क्षेत्र)पश्चिम दिशा में शनि ग्रह का प्रभाव होता है। यदि पश्चिम दिशा में दोष हो तो नौकरी में रुकावट, वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी की समस्या, भय, कैंसर, कुष्ठ, मिर्गी, नपुंसकता और पैरों से संबंधित रोगों की संभावना बढ़ जाती है।
वायव्य कोण (चंद्र ग्रह की दिशा)
वायव्य दिशा के स्वामी चंद्र ग्रह हैं। इस दिशा में शयनकक्ष, गैरेज या गौशाला होना उचित माना गया है। दोष होने पर माता से संबंधों में तनाव, मानसिक अशांति, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी परेशानी, पथरी और निमोनिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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उत्तर दिशा (बुध ग्रह का प्रभाव)उत्तर दिशा के स्वामी बुध ग्रह हैं। इस दिशा में खिड़की, दरवाजा, बालकनी या मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। यदि उत्तर दिशा दूषित हो जाए तो बुद्धि और विद्या में कमी, वाणी दोष, स्मरण शक्ति का ह्रास, मस्तिष्क, गले या नाक के रोग, व्यवसाय में हानि और मामा से संबंधों में कटुता देखी जाती है।
ईशान कोण (बृहस्पति ग्रह की दिशा)
ईशान कोण के स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। इस दिशा में पूजास्थल, बोरिंग, जल स्रोत, स्वीमिंग पूल या मुख्य द्वार होना श्रेष्ठ माना गया है। इस दिशा में दोष होने पर पूजा-पाठ में अरुचि, गुरु और देवताओं पर आस्था में कमी, आय व संचित धन में गिरावट, विवाह और संतान में देरी, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज और अनिद्रा जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
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