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Rare Earth Magnet: रेयर अर्थ मैग्नेट की किल्लत से ऑटो उद्योग में संकट, जुलाई 2025 तक स्टॉक खत्म होने की आशंका

ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अमर शर्मा Updated Thu, 12 Jun 2025 08:51 PM IST
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सार

भारतीय और वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। ऐसा अनुमान है कि कुछ ऑटोमोटिव उपयोगों के लिए जरूरी रेयर अर्थ मैग्नेट्स का स्टॉक जुलाई 2025 के मध्य तक खत्म हो सकता है।

what is rare earth magnet crisis Indian and global auto sectors could face significant challenges
Car Plant - फोटो : Volkswagen
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विस्तार
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भारतीय और वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। ऐसा अनुमान है कि कुछ ऑटोमोटिव उपयोगों के लिए जरूरी रेयर अर्थ मैग्नेट्स का स्टॉक जुलाई 2025 के मध्य तक खत्म हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की ओर से इन मैग्नेट्स के निर्यात पर लगाई गई सख्त पाबंदियां और शिपमेंट में हो रही देरी है। इससे वाहन उत्पादन की रफ्तार पर असर पड़ सकता है और बाजार में अस्थिरता आ सकती है।
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पहले चिप की किल्लत, अब मैग्नेट्स की चिंता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ICRA लिमिटेड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट जितिन मक्कर ने बताया कि "रेयर अर्थ मैग्नेट्स की मौजूदा कमी ऑटो इंडस्ट्री के लिए डेजा वू जैसा है। पहले 2021-22 में सेमीकंडक्टर की कमी ने पैसेंजर व्हीकल उत्पादन में करीब 1 लाख यूनिट्स (यानि 4 प्रतिशत) की कटौती कर दी थी। अब एक बार फिर उद्योग के सामने आपूर्ति से जुड़ी एक और बाधा खड़ी हो गई है।"

उनके मुताबिक, अगर चीन का रुख ऐसा ही रहा, तो भारत में ज्यादातर पैसेंजर और टू-व्हीलर वाहनों में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मैग्नेट्स का स्टॉक जुलाई 2025 के मध्य तक ही बचेगा।

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रेयर अर्थ मैग्नेट्स क्या होते हैं?
रेयर अर्थ मैग्नेट्स नीओडाइमियम-आयरन-बोरोन (NdFeB) से बने होते हैं और इन्हें उनकी ताकत व कुशलता के लिए जाना जाता है। ये विशेष रूप से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (जैसे टू-व्हीलर्स और कारों) में इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रैक्शन मोटर्स और पावर स्टीयरिंग मोटर्स में लगते हैं। इसके मुकाबले सामान्य फेराइट मैग्नेट्स (जो आमतौर पर काले रंग के छोटे चुंबक होते हैं) विंडो मोटर, वाइपर और स्टार्टर मोटर जैसे कम शक्ति वाले उपयोगों में लगाए जाते हैं।

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मैग्नेट की कीमत और आयात पर निर्भरता
मक्कड़ बताते हैं कि "इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में इस्तेमाल होने वाली मोटर की कीमत 8,000 से 15,000 रुपये तक होती है। जिसमें रेयर अर्थ मैग्नेट्स की हिस्सेदारी करीब 30 प्रतिशत होती है। वित्त वर्ष 2025 में भारत ने करीब 200 मिलियन डॉलर के ऐसे मैग्नेट्स आयात किए, जिनमें 85 प्रतिशत हिस्सा चीन से आया। दिखने में ये ट्रेड वैल्यू कम लग सकती है, लेकिन इससे हमारी रणनीतिक निर्भरता पूरी तरह उजागर हो जाती है।"

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विकल्प तलाश रहे हैं निर्माता
मौजूदा संकट को देखते हुए कई वाहन निर्माता और ओईएम कंपनियां वैकल्पिक रास्ते तलाश रही हैं। इनमें चीन से तैयार इलेक्ट्रिक मोटर आयात करना, मैग्नेट असेंबली के लिए रोटर चीन भेजकर वापस मंगवाना, रेयर-अर्थ फ्री मटेरियल से बने विकल्पों की खोज और मैग्नेट-फ्री मोटर डिजाइन को अपनाना शामिल हैं। लेकिन हर विकल्प के साथ लॉजिस्टिक्स, टेक्नोलॉजी और नियमों से जुड़ी अपनी चुनौतियां हैं। इन समाधानों को जल्दी विकसित करने और टेस्टिंग प्रक्रिया तेज करने की जरूरत है ताकि उत्पादन में बड़ी बाधा न आए।

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बड़ी रणनीतिक चेतावनी है यह संकट
रिपोर्ट के मुताबिक, केयरएज रेटिंग्स के असिस्टेंट डायरेक्टर मधुसूदन गोस्वामी का कहना है, "भारत में रेयर अर्थ की मौजूदा स्थिति केवल एक सप्लाई चेन की समस्या नहीं, बल्कि रणनीतिक चेतावनी है। चीन की सख्त निर्यात नीति ने भारत की ईवी महत्वाकांक्षाओं की कमजोर नींव को उजागर कर दिया है। अगर हम वाकई आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं, तो हमें घरेलू स्तर पर REE (रेयर अर्थ एलिमेंट्स) का पूरा इकोसिस्टम खड़ा करना होगा।"

वे सुझाव देते हैं कि रणनीतिक भंडारण, सरकारी-निजी क्षेत्र के साथ मिलकर रिसर्च एंड डेवलपमेंट और वैश्विक साझेदारियों के सहारे एक राष्ट्रीय रणनीति बनानी होगी ताकि भविष्य में ऐसा संकट दोबारा न हो।

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