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E-Rickshaw: किसने बनाया भारत का पहला ई-रिक्शा? शहर से लेकर गांव तक, लोगों की है पहली पसंद
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Wed, 25 Dec 2024 04:31 PM IST
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सार
हाथ और पैरों से खींचे जाने वाले पुराने रिक्शा के मुकाबले, आजकल के ई-रिक्शा (E-Rickshaw) कहीं ज्यादा आधुनिक, सुविधाजनक और पर्यावरण के अनुकूल साबित हो रहे हैं।

ई-रिक्शा
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
आजकल सड़कों पर दौड़ते हुए ई-रिक्शा (E-Rickshaw) परिवहन का किफायती साधन बन गए हैं। ये ई-रिक्शा न सिर्फ प्रदूषण रहित होते हैं, बल्कि सस्ते और ईको-फ्रेंडली भी होते हैं। इनकी बढ़ती लोकप्रियता ने प्रदूषण की समस्या से जूझते देशों में एक नई उम्मीद जगा दी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सबसे पहला ई-रिक्शा किसने बनाया था और इसकी शुरुआत कब हुई थी? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले ई-रिक्शा को सबसे पहले किसने बनाया था.
हाथ और पैरों से खींचे जाने वाले पुराने रिक्शा के मुकाबले, आजकल के ई-रिक्शा कहीं ज्यादा आधुनिक, सुविधाजनक और पर्यावरण के अनुकूल साबित हो रहे हैं। ये न सिर्फ शोर और प्रदूषण से मुक्त हैं, बल्कि शहरों की बढ़ती ट्रैफिक समस्या का भी एक अच्छा हल साबित हो रहे हैं। लेकिन ई-रिक्शा का विचार किसी और नहीं, बल्कि एक भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर डॉ. अनिल राजवंशी के दिमाग से आया था।
साल 2000 में तैयार हुआ पहला ई-रिक्शा
IIT कानपुर के क्षात्र रहे डॉ. अनिल राजवंशी ने 1995 में महाराष्ट्र के फाल्टन में ई-रिक्शा पर काम करना शुरू किया था। उन्होंने 2000 में इसका पहला प्रोटोटाइप तैयार किया, जो पूरी दुनिया में एक नई शुरुआत के रूप में सामने आया। जब इस प्रोटोटाइप का दुनिया में पहला प्रदर्शन हुआ, तो कई कंपनियों ने इसे कॉपी किया और कई ने इसमें अपने-अपने सुधार भी किए।
कौन हैं डॉ. अनिल राजवंशी
डॉ. अनिल राजवंशी का जीवन बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई अमेरिका के फ्लोरिडा से की थी, और 1981 में भारत लौट आए थे। उनके इस फैसले पर उनके पिता ने उन्हें आलोचना की थी, लेकिन उनकी पत्नी ने हमेशा उनका साथ दिया। उनकी मेहनत और जज्बे के कारण ही वह भारतीय इंजीनियरिंग के एक मशहूर नाम बने।
डॉ. अनिल राजवंशी ने न केवल ई-रिक्शा का निर्माण किया, बल्कि कुछ अन्य पर्यावरण अनुकूल तकनीकों पर भी काम किया। इनमें से एक एल्कोहल पर काम करने वाला स्टोव भी था, जो आजकल के कुकिंग स्टोव्स से कहीं ज्यादा स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल था।
ई-रिक्शा का बढ़ता महत्व
ई-रिक्शा का निर्माण भारत में प्रदूषण कम करने के लिए एक अहम कदम था। पारंपरिक रिक्शा या टेम्पो से उत्पन्न होने वाली ध्वनि और वायु प्रदूषण की समस्या को देखते हुए, इलेक्ट्रिक रिक्शा ने एक सशक्त समाधान पेश किया। यह न केवल शहरों में प्रदूषण को कम करने में मदद करता है, बल्कि लोगों को सस्ती यात्रा सुविधा भी प्रदान करता है।
ई-रिक्शा के आने से लोगों की जिंदगी आसान हो गई है, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में। चूंकि ये इलेक्ट्रिक होते हैं, इसलिए इनकी मेंटेनेंस पर खर्च भी कम होता है और चालकों को पेट्रोल या डीजल की चिंता नहीं होती। इसके अलावा, इनका पर्यावरण पर भी बहुत कम असर पड़ता है, जो भविष्य के लिए एक सकारात्मक बदलाव है।

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साल 2000 में तैयार हुआ पहला ई-रिक्शा
IIT कानपुर के क्षात्र रहे डॉ. अनिल राजवंशी ने 1995 में महाराष्ट्र के फाल्टन में ई-रिक्शा पर काम करना शुरू किया था। उन्होंने 2000 में इसका पहला प्रोटोटाइप तैयार किया, जो पूरी दुनिया में एक नई शुरुआत के रूप में सामने आया। जब इस प्रोटोटाइप का दुनिया में पहला प्रदर्शन हुआ, तो कई कंपनियों ने इसे कॉपी किया और कई ने इसमें अपने-अपने सुधार भी किए।
कौन हैं डॉ. अनिल राजवंशी
डॉ. अनिल राजवंशी का जीवन बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई अमेरिका के फ्लोरिडा से की थी, और 1981 में भारत लौट आए थे। उनके इस फैसले पर उनके पिता ने उन्हें आलोचना की थी, लेकिन उनकी पत्नी ने हमेशा उनका साथ दिया। उनकी मेहनत और जज्बे के कारण ही वह भारतीय इंजीनियरिंग के एक मशहूर नाम बने।
डॉ. अनिल राजवंशी ने न केवल ई-रिक्शा का निर्माण किया, बल्कि कुछ अन्य पर्यावरण अनुकूल तकनीकों पर भी काम किया। इनमें से एक एल्कोहल पर काम करने वाला स्टोव भी था, जो आजकल के कुकिंग स्टोव्स से कहीं ज्यादा स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल था।
ई-रिक्शा का बढ़ता महत्व
ई-रिक्शा का निर्माण भारत में प्रदूषण कम करने के लिए एक अहम कदम था। पारंपरिक रिक्शा या टेम्पो से उत्पन्न होने वाली ध्वनि और वायु प्रदूषण की समस्या को देखते हुए, इलेक्ट्रिक रिक्शा ने एक सशक्त समाधान पेश किया। यह न केवल शहरों में प्रदूषण को कम करने में मदद करता है, बल्कि लोगों को सस्ती यात्रा सुविधा भी प्रदान करता है।
ई-रिक्शा के आने से लोगों की जिंदगी आसान हो गई है, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में। चूंकि ये इलेक्ट्रिक होते हैं, इसलिए इनकी मेंटेनेंस पर खर्च भी कम होता है और चालकों को पेट्रोल या डीजल की चिंता नहीं होती। इसके अलावा, इनका पर्यावरण पर भी बहुत कम असर पड़ता है, जो भविष्य के लिए एक सकारात्मक बदलाव है।