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Bihar Election 2025: तेजस्वी यादव को भ्रमित क्यों कर रही कांग्रेस? पप्पू यादव के बाद अब कन्हैया कुमार पर दांव
सार
Bihar News : "बिहार में दिल्ली जैसा प्रयोग चाहती है कांग्रेस! अगर प्रयोग करती है तो परिणाम भी मिलेगा।" कांग्रेस के रुख से राजद के अंदर इसी तरह की बात उठ रही है। तेजस्वी यादव के समानांतर किसी का आना महागठबंधन के लिए मुसीबत होगा, यह आवाज उठ रही है।
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तेजस्वी यादव के समानांतर महागठबंधन में किसी का उभरना
- फोटो : अमर उजाला डिजिटल
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विस्तार
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगा- महागठबंधन के तमाम दिग्गज बीच-बीच में इस बात को उठाकर भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जनता दल यूनाईटेड को भ्रमित करते हैं। लेकिन, दूसरी तरफ भी आग उसी तरह की है। भ्रम की आग। बिहार विधानसभा चुनाव में अभी लगभग सात महीने बाकी हैं, लेकिन कांग्रेस की सक्रियता देखकर राष्ट्रीय जनता दल के अंदर कहीं-न-कहीं उधेड़बुन की स्थिति जरूर है। जिस तरह से अचानक कन्हैया कुमार बिहार कांग्रेस में सक्रिय हुए हैं, उससे अंदरखाने गजब की हलचल है। खासकर राजद में। सवाल उठ रहा कि आखिर तेजस्वी यादव को भ्रमित क्यों कर रही है कांग्रेस?
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तब पप्पू के कारण राजद ने कर दिया था खेल
लोकसभा चुनाव के पहले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने दिल्ली जाकर अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कराते हुए इसकी सदस्यता ली थी। दिल्ली जाने से पहले पप्पू यादव राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से मिलने आए थे। इस मुलाकात के अगले दिन पप्पू यादव ने अपनी पार्टी- जाप का कांग्रेस में विलय करा दिया। दिल्ली से लौटते समय पप्पू यादव पूरी तरह निश्चिंत थे कि उन्हें पूर्णिया लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए मिल जाएगा। लेकिन, जानकार बताते हैं कि यादवों के बीच तेजस्वी यादव के समकक्ष कोई खड़ा न हो, इसलिए लालू यादव ने कांग्रेस को किनारे करते हुए पूर्णिया सीट पर बीमा भारती को राजद का चुनाव चिह्न सौंप दिया। सामने बात यही रही कि बीमा को आश्वासन पहले से दिया गया था, लेकिन अंदर की बात कांग्रेस की पूरी रणनीति को ध्वस्त करने की थी। पप्पू यादव को किनारे किए जाने के मामले में बाहर-बाहर तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह खलनायक बने, लेकिन खेल कहीं और से हो चुका था। नतीजा यह रहा कि पप्पू यादव को कांग्रेस ने अपना सदस्य तक मानने से इनकार कर दिया। निर्दलीय लड़े, जीते, कांग्रेस के प्रति ही आस्था जताई; लेकिन सबकुछ वह एकतरफा ही करते रहे। दूसरी तरफ से प्रेम का इजहार नहीं हुआ।
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यह भी पढ़ें: चुनाव से पहले राहुल ने बता दी बिहार कांग्रेस की तैयारी; तेजस्वी-लालू यादव के लिए दिए कैसे संकेत?
कन्हैया भूमिहार होकर भी वाम चेहरा, इसलिए प्रयोग
राहुल गांधी ने सोमवार को पहले बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ पदयात्रा की और फिर पटना में गरीब-गुरबों, दलित-पिछड़ों की बात की, यह तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव के लिए आया संकेत ही है। कन्हैया कुमार बिहार की बेगूसराय सीट पर 2019 में गिरिराज सिंह से करारी हार के बाद दिल्ली की राजनीति करने लौट गए थे। इस बार कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने भले अपने हटाए गए प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के भूमिहार चेहरे की भरपाई के लिए दिखावट के रूप में लाया है, लेकिन अंदर की बात यही है कि वह इस जाति के होकर भी वाम चेहरा हैं। मतलब, गरीब-गुरबों के बीच का चेहरा। राहुल गांधी ने लालू प्रसाद के वोटरों को लक्ष्य कर भी एक तरह से संदेश दिया है कि कांग्रेस किसी को आगे कर सकती है। वह चेहरा कौन होगा, यह राहुल गांधी अभी पत्ता नहीं खोल रहे। चेहरे के रूप में कन्हैया कुमार की बिहार वापसी को देखें तो यह तेजस्वी यादव के लिए सहज नहीं है।
तब भी तेजस्वी नहीं चाहते थे कन्हैया को, अब भी असहज
जब कन्हैया 2019 के चुनाव में वामपंथी प्रत्याशी थे, तो राजद ने बेगूसराय में अपना भी प्रत्याशी उतार दिया था। दोनों मिलाकर भी भाजपाई गिरिराज सिंह से भले दूर रहे हों, लेकिन यह संदेश साफ था कि राजद कन्हैया कुमार को बिहार में बढ़ते नहीं देखना चाहता है। ऐसे में एक बार फिर कन्हैया ने जब बिहार में वापसी की है तो राजद के अंदर भ्रम की स्थिति है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा तो बता रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी के मुंह से निकली योजना और कन्हैया कुमार की सक्रियता से राजद का भ्रमित होना स्वाभाविक भी है।