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Pitru Paksha.: सात गोत्रों के उद्धार और 121 कुलों की मुक्ति का मार्ग है गयाजी में पिंडदान; पितृपक्ष कब से है?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गयाजी Published by: अमर उजाला ब्यूरो Updated Fri, 05 Sep 2025 06:05 PM IST
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सार

Pitru Paksha 2025 : समृद्धि और खुशहाली के लिए पितरों का आशीर्वाद सनातन हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके लिए पितृपक्ष सबसे अच्छा समय है। सात गोत्रों के उद्धार और 121 कुलों की मुक्ति का मार्ग गयाजी में पिंडदान है। पढ़िए, विस्तार से।

Gayaji pind daan rituals in pitru Paksha 2025 gaya Bihar News pitripaksh mela gaya
विष्णुपद मंदिर की तस्वीर
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विस्तार
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पितरों की पूजा का महापर्व पितृपक्ष मेला इस वर्ष छह सितंबर 2025 से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या, यानी 21 सितंबर 2025 तक रहेगा। इस दौरान पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गयाजी समेत अन्य जगहों पर मेले में पहुंचेंगे। राजकीय पितृपक्ष मेला को यादगार बनाने के लिए जिला प्रशासन युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है। गयाजी में अपने पितरों का पिंडदान करने से सात गोत्रों का उद्धार होने की मान्यता है। पितृपक्ष मेला के दौरान गया में मुख्य रूप से पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, खासकर फल्गु नदी और विष्णुपद मंदिर के पास। इस अवधि में लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।

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महालया पर्व के रूप में जाना जाता है पितृपक्ष मेला
पितृपक्ष मेला के महत्व को गया पाल पंडा महेश लाल गुपुत ने बताया कि हमारे शास्त्र पुराणों में गयाजी को मुक्ति तीर्थ के रूप में भगवान विष्णु का वरदान मिला हुआ है। ईश्वर के अनुसार विश्व के सनातन धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गयाजी के विष्णु नगरी में पधारते हैं और कर्मकांड करते हैं। बहुत सारे धर्म शास्त्रों में इसका उल्लेख है कि गयाजी में ही पिंडदान करने से उनके पूर्वजों की आत्मा की शांति होती है। पिंडदान करने से उनका आशीर्वाद मिलता है, जिससे धन, सुख, शांति समेत अन्य समृद्धि की प्राप्ति होती है। जहां तक पितृपक्ष मेला विशेष की बात है, तो इसे महालय काल, महालया पर्व और पितरों के पर्व के रूप में जाना जाता है। महालया, यानी ईश्वर की प्राप्ति हो जाना। इसलिए इसको महालय तिथि भी कहते हैं और महालय पक्ष भी कहते हैं। यह काल पूर्णिया से अमावस्या तक होता है। यह 17 दिनों का पक्ष होता है।
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पितृ मुक्ति के लिए एक मात्र स्थान है गयाजी
विष्णुपद प्रबंधकारणी समिति के अध्यक्ष सह गयापाल पंडा शंभू लाल बिठल बताते हैं कि सनातन धर्म को मानने वाले पूरे विश्व से गयाजी अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए आते हैं। यह स्थान पूरी पृथ्वी पर पितृ मुक्ति के रूप में जाना जाता है। यह श्राद्ध स्थल है। गयाजी में भगवान विष्णु का चरण आदिकाल से है। गयासुर ने वरदान लिया था कि हम स्थिर तब होंगे, जब आप हमारे ऊपर अपना चरण रखेंगे। चरण पर जो भी लोग अपने मरे हुए पूर्वजों के नाम से पिंडदान करेंगे, वैसे पिंडदानियों के 7 गोत्रों का उद्धार हो जाएगा। सात गोत्रों में 108 कुल आते हैं। मतलब, सभी का उद्धार। 

सनातन धर्म के लोग अन्य स्थानों पर भी पिंडदान करते हैं। उस स्थान का महत्व अलग है, लेकिन पितृ मुक्ति के लिए एकमात्र स्थान गयाजी है। उसको पुराणों में कहा गया है कि गया तीर्थ का प्राण है। यह तीर्थ का प्राण इसलिए है क्योंकि यहां भगवान विष्णु का चरण है। इस पृथ्वी पर और यह कहीं नहीं है। मूर्ति का दर्शन अनेक रूप में भगवान को देखने को मिलेगा, लेकिन चरण का दर्शन यहीं मिलेगा। कहा जाता है कि गयाजी में भगवान का चरण का स्पर्श कर लिया तो पितरों को मुक्ति प्राप्त हो गया। शास्त्रों में यह वर्णन है। वायु पुराण, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, श्रीमद् भागवत कथा और देवी भागवत पुराण समेत अन्य पुराणों में भी इसी तरह का वर्णन है।

फल्गु नदी भगवान विष्णु को स्पर्श कर बहती है
फल्गु नदी का महत्व बताते हुए गयापाल पंडा रवि मउआर बताते हैं कि फल्गु नदी का जल जमीन के अंदर बहता है। पूरी पृथ्वी पर अनेकों तीर्थ हैं, लेकिन फल्गु नदी को महान तीर्थ इसलिए कहा जाता है कि यहां भगवान का चरण है। प्रतिदिन भगवान विष्णु के चरण स्पर्श कर अंत:सलिला फल्गु नदी बहती है। यह जमीन के अंदर से भगवान विष्णु के चरण को स्पर्श करती है। 


इन तारीखों में पिंडदान

06 सितंबर पुनपुन या गोदावरी श्राद्ध।
07 सितंबर फल्गु श्राद्ध।
08 सितंबर ब्रह्मकुंड, प्रेतशिला, रामकुंड, रामशिला, कागबलि श्राद्ध।
09 सितंबर उत्तर मानस, उदिची, कनखल, दक्षिण मानस, जिह्वालोल।
10 सितंबर बोधगया के मातंगवापी, धर्मारण्य और सरस्वती।
11 सितंबर ब्रह्मसत, कागवलि, आम्रसचेन।
12 से 14 सितंबर विष्णुपद, सोलह वेदी।
15 सितंबर सीताकुंड और रामगया।
16 सितंबर गयासिर और गया कूप।
17 सितंबर मुंडपृष्ठा, आदि गया, धौतपद।
18 सितंबर भीमगया, गो प्रचार, गदालोल।
19 सितंबर फल्गु में दूध तर्पण व पितरों की दीपावली।
20 सितंबर वैतरणी श्राद्ध, गौदान।
21 सितंबर अक्षयवट, शैय्या दान, सुफल।
22 सितंबर गायत्री घाट, मातामाह श्राद्ध व आचार्य विदाई।

विष्णुपद मंदिर की तस्वीर

विष्णुपद मंदिर की तस्वीर।


(इनपुट- रंजन सिन्हा, गयाजी)

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