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Bihar: आज पितृपक्ष मेले का दूसरा दिन, फल्गु नदी के तट पर पिंडदान से कुल की सभी पीढ़ियां होती हैं तृप्त; महत्व
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गया जी
Published by: अमर उजाला ब्यूरो
Updated Sun, 07 Sep 2025 03:06 PM IST
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सार
Bihar News Hindi Today: गयापाल पंडा गोविंद लाल गुपुत बताते हैं कि पितृपक्ष के दूसरे दिन फल्गु श्राद्ध कर्म में फल्गु नदी में स्नान कर खीर के पिंड से पिंडदान करने का विधान है। जिसका गहरा धार्मिक महत्व है। आगे उन्होंने क्या कहा पढ़ें।

फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करते पिंडदानी
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
गयाजी में शनिवार से पितृपक्ष मेला शुरू हो गया है। पितृपक्ष मेला शुरू होते ही देश-दुनिया के विभिन्न प्रांतो से लाखों श्रद्धालु गयाजी आते हैं। मोक्ष नगरी गयाजी के विभिन्न पिंडवेदियों पर जाकर पिंडदान और तर्पण करते हैं। पितृपक्ष मेला के पहले दिन पुनपुन गंगा नदी में स्नान कर श्राद्ध कर्मकांड करने का विधान है।

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आज पितृपक्ष मेले के दूसरे दिन फल्गु नदी में स्नान एवं तट पर खीर के पिंड से पिंडदान श्राद्ध कर्मकांड का विधान है। फल्गु नदी के तट पर खीर के पिंड से पिंडदान करने का मान्यता है। तट पर पिंडदान करने से कुल के सभी पीढ़ियां तृप्त हो जाती है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाता है। मोक्ष नगरी गयाजी में फल्गु नदी तट पर खीर के पिंड से पिंडदान श्राद्ध का बड़ा धार्मिक महत्व है। मान्यता यह भी है कि गयाजी के पूरब में बहने वाली अंत सलिला फल्गु नदी भगवान विष्णु के चरण से स्पर्श कर फल्गु में पवित्र जल प्रवाहित होती है। इस पवित्र नदी भगवान विष्णु की जल माना जाता हैं। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान की बड़ी महत्ता है।
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शांति का स्थल है मोक्ष नगरी
गयाजी के फल्गु देवघाट पर उड़िया से आए श्याम सुंदर दास अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना के लिए पहुंचे हैं। अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां आकर काफी शांति मिल रही है और यहां की व्यवस्था भी काफी अच्छी है।
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गयापाल पंडा गोविंद लाल गुपुत बताते हैं कि पितृपक्ष के दूसरे दिन फल्गु श्राद्ध कर्म में फल्गु नदी में स्नान कर खीर के पिंड से पिंडदान करने का विधान है। जिसका गहरा धार्मिक महत्व है। उन्होंने बताया धार्मिक मान्यता है कि फल्गु नदी में पिंडदान करने से कुल की सभी पीढ़ियां तृप्त होती हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिससे वंश में सुख-समृद्धि आती है। फल्गु नदी को भगवान विष्णु की जल-आपूर्ति माना जाता है और इस पवित्र नदी को मोक्षदायिनी नदी कहीं जाती है।
अमावस्या तक चलेगा यह मेला
मालूम हो कि श्राद्ध कर्मकांड और तर्पण का काम 21 सितंबर पितृ विसर्जन अमावस्या तक चलेगा। इस दौरान पुरोहितों के अनुसार, वंशज अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और श्राद्ध पक्ष के जल और तिल दीवान द्वारा तर्पण किया जाता है जो जन्म से लेकर मोक्ष तक साथ दे, वही जल है. तिलों को देवान्न कहा गया है, इससे ही पितरों को तृप्ति होती है।
कल इन पिंडवेदियों पर लगेगा पिंडदानियों की भीड़
08 सितंबर ब्रह्मकुंड, प्रेतशिला, रामकुंड, रामशिला, कागबलि श्राद्ध।
09 सितंबर उत्तर मानस, उदिची, कनखल, दक्षिण मानस, जिह्वालोल।
10 सितंबर बोधगया के मातंगवापी, धर्मारण्य और सरस्वती।
11 सितंबर ब्रह्मसत, कागवलि, आम्रसचेन।
12 से 14 सितंबर विष्णुपद, सोलह वेदी।
15 सितंबर सीताकुंड और रामगया।
16 सितंबर गयासिर और गया कूप।
17 सितंबर मुंडपृष्ठा, आदि गया, धौतपद।
18 सितंबर भीमगया, गो प्रचार, गदालोल।
19 सितंबर फल्गु में दूध तर्पण व पितरों की दीपावली।
20 सितंबर वैतरणी श्राद्ध, गौदान।
21 सितंबर अक्षयवट, शैय्या दान, सुफल।
22 सितंबर गायत्री घाट, मातामाह श्राद्ध व आचार्य विदाई।