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आस्था की अनोखी कहानी: ट्रेन में आत्माओं के नाम से होती है टिकट बुकिंग, खुद से ज्यादा पितृदंड का रखते हैं ख्याल

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गयाजी Published by: आदित्य आनंद Updated Sat, 17 May 2025 12:51 PM IST
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सार

कच्चे बांस के 13 पोर से बने पितृ स्वरूप पितृदंड का लोगों में बहुत आस्था है। ट्रेन से लाते समय उनके नाम से बुक सीट पर सलकर नैवेद्य भोग लगाकर गयाजी लाया जाता है। आइए जानते हैं पूरी कहानी...

Gayaji News: Ticket booking is done in the name of souls in trains: Pitru Paksha Mela, Pitru Danda
पितरों के लिए पूजा करते श्रद्धालु। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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गया का नाम गयाजी होते ही लोगों के मन में यहां का महत्व और धार्मिक आस्था समाहित होने लगता है। साथ ही पितृदंड की अनोखी कहानी की भी चर्चा शुरू हो जाती है। पितृपक्ष मेला के दौरान मृत आत्माओं के नाम से ट्रेन में टिकट बुक की जाती है। बिहार के गया जी में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला के दौरान एक अनोखी आस्था भी देखने को मिलती है। गयाजी में पिंडदान की एक अनोखी परंपरा भी है। यहां विभिन्न राज्यों से आए पिंडदानी अपने पितरों के आत्माओं का ट्रेन में रिजर्वेशन करा कर गया जी आते हैं। पिंडदानी पितृदंड में को ट्रेन के बोगी में उनके आत्माओं को सुलकर गयाजी आते हैं। कहा जाता है कि ट्रेन में सीट बुक होने के बाद अगर उस सीट पर कोई नहीं है तो ट्रेन में मौजूद टीटीई दूसरे को सीट दे देते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं होता। क्योंकि टीटीई भी आस्था को देखते हुए कुछ भी नहीं कर पाते हैं और पितृदंड उस सीट पर लेटे रहते हैं।

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पितृदंड का रखते हैं खास ख्याल
इस संबंध में गयवाल पंड़ा नीरज कुमार मउआर बताते हैं कि पितृपक्ष मेला के दौरान पिंडदानी अपने पितरों की मोक्ष के लिए गया जी आते हैं। गया जी आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दंड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बना रहता है। उसे दंड को पितृदंड कहते हैं। पिंडदानी उसे पितृदंड को ट्रेन में रिजर्वेशन करा कर, वह भी उन आत्माओं के नाम से रिजर्वेशन कराया जाता है। साथ ही बहुत संभाल कर गया जी लाते हैं।
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इन राज्यों से सबसे ज्यादा पिंडदानी आते हैं

वहीं आगे बताया कि गया जी पितृदंड लेकर बहुत कम पिंडदानी आते हैं। सबसे अधिक उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से आते हैं। उन्होंने बताया कि जो भी पिंडदानी गया जी पितृदंड को लेकर आते हैं, वह पवित्रता पर विशेष ध्यान देते हैं। ट्रेन से यात्रा के दौरान ट्रेन का सीट कंफर्म करवा कर गया जी आते हैं। पिंडदानी सुबह शाम उनकी आराधना करते हैं। साथ ही रात भर जाग कर उनकी रखवाली भी करते हैं। पितृदंड लाने वाले पिंडदानी अपने भोजन करने से पहले पितरों का भोजन करते हैं। अपने सोने से पहले पितरों को सुलाते हैं।

पहले गांव में महिनों होता है भागवत कथा 
गयवाल पंडा नीरज कुमार मउआर बताते हैं कि पितृदंड को गया जी लाने से पहले गांव में सभी परिवार एक साथ होकर कई दिनों तक पूजा पाठ और भागवत कथा कराते हैं। पितर जहां गुजरे थे, वहां के श्मशान घाट से मिट्टी लाते हैं, फिर गांव में भागवत कथा होता है। पूजा के दौरान कच्चा बांस में धीरे-धीरे दरार पड़ने लगता है। तब लोग समझ जाते हैं कि पितर प्रवेश कर गए है। उसके बाद उस दंड को पीले या लाल कपड़े में नारियल बांधकर पितृदंड को गया जी लाते हैं। जहां पितरों की मोक्ष के लिए 17 दिनों तक कर्मकांड किया जाता है।
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