What is Ghost Jobs: क्या अमेरिका में हर तीसरी नौकरी फर्जी? जानिए सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ों का सच
अमेरिका के श्रम बाजार में दिख रही लाखों नौकरियां वास्तव में मौजूद नहीं हैं। हालिया आंकड़ों के मुताबिक, जून 2025 में हर तीन में से एक जॉब पोस्टिंग पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई। 2021 के बाद से जॉब ओपनिंग्स और वास्तविक हायरिंग के बीच गहरी खाई बन गई है। आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर ‘Ghost Jobs’ की समस्या कैसे पैदा हुई और यह अमेरिका समेत कई देशों में क्यों गंभीर बनती जा रही है।
विस्तार
अमेरिकी श्रम बाजार की मजबूती का आकलन लंबे समय से जॉब ओपनिंग्स के आंकड़ों के आधार पर किया जाता रहा है, लेकिन ताजा विश्लेषण एक परेशान करने वाली सच्चाई उजागर करता है। बड़ी संख्या में ऐसी नौकरियां विज्ञापित की जा रही हैं, जिन पर वास्तव में किसी की भर्ती ही नहीं होती। इस प्रवृत्ति को अब 'घोस्ट जॉब इकोनॉमी' कहा जा रहा है।
सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो (BLS) के जॉब ओपनिंग्स एंड लेबर टर्नओवर सर्वे (JOLTS) के अनुसार, जून 2025 में नियोक्ताओं ने 74 लाख नौकरियों के खाली पद दिखाए, लेकिन उसी महीने केवल 52 लाख लोगों को ही नौकरी मिली। यानी करीब 22 लाख ऐसे पद थे, जो कभी वास्तविक नौकरी में तब्दील ही नहीं हुए। इसका सीधा असर नौकरी तलाशने वालों, नीति निर्माताओं और खुद कंपनियों की साख पर पड़ रहा है।
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हर तीन में से एक नौकरी सिर्फ दिखावा
आंकड़े बताते हैं कि जून 2025 में करीब 30 फीसदी जॉब पोस्टिंग्स पर कोई भर्ती नहीं हुई। यह कोई नई समस्या नहीं है। 2021 से हर महीने जॉब ओपनिंग्स और हायरिंग के बीच 28 से 38 फीसदी का अंतर बना हुआ है। यह फासला 2021 में चरम पर पहुंचा, जब जॉब पोस्टिंग्स 1.1 करोड़ से ऊपर चली गईं, लेकिन भर्ती 60-70 लाख के आसपास ही अटकी रही। अनुमान है कि 38 फीसदी कंपनियों ने ऐसी नौकरियों के विज्ञापन दिए, जिन पर भर्ती का कोई इरादा नहीं था। कई मामलों में कंपनियां सिर्फ यह दिखाने के लिए पद निकालती हैं कि उनका कारोबार अच्छा चल रहा है और वे विस्तार कर रही हैं। 2023-2025 के बीच स्थिति और खराब हो गई। अर्थव्यवस्था में मंदी आई, लेकिन अंतर बना रहा। आज भी 'घोस्ट जॉब रेट' 28%-32% के बीच है।
यह समस्या केवल यूएस तक सीमित नहीं
यह समस्या सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है, बल्कि अटलांटिक के दोनों ओर लगातार गंभीर होती जा रही है। भर्ती सॉफ्टवेयर कंपनी ग्रीनहाउस द्वारा अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले साल ऑनलाइन विज्ञापित की गई करीब 22 फीसदी नौकरियों में वास्तव में किसी को नियुक्त करने का इरादा ही नहीं था। यानी ये पद केवल कागजों पर मौजूद थे।
ब्रिटेन में स्थिति और भी चिंताजनक नजर आती है। एक अलग अध्ययन के अनुसार, वहां यह आंकड़ा 34 फीसदी तक पहुंच गया है, जो बताता है कि हर तीन में से एक नौकरी विज्ञापन वास्तविक भर्ती से जुड़ा नहीं था।
बीएलएस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त में यूएस में 72 लाख जॉब वैकेंसी दर्ज की गई थीं, लेकिन उसी अवधि में केवल 51 लाख लोगों को ही नौकरी मिली। यह बड़ा अंतर दर्शाता है कि बड़ी संख्या में जॉब पोस्टिंग्स हायरिंग में तब्दील ही नहीं हो रहीं, जिससे ‘घोस्ट जॉब’ की समस्या और गहरी होती जा रही है।
कौन से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित?
सेक्टरवार आंकड़ों से पता चलता है कि घोस्ट जॉब्स का असर हर जगह समान नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में करीब 50 फीसदी, सरकारी क्षेत्र में 60 फीसदी, सूचना प्रौद्योगिकी में 48 फीसदी और वित्तीय सेवाओं में 44 फीसदी तक नौकरियां कभी हायरिंग में नहीं बदलीं। इसके उलट कंस्ट्रक्शन और हॉस्पिटैलिटी जैसे उपभोक्ता-केंद्रित क्षेत्रों में जॉब पोस्टिंग्स और हायरिंग के बीच बेहतर तालमेल दिखा, जहां कई बार भर्तियां पोस्टिंग्स से भी ज्यादा रहीं।
यह समस्या कैसे पैदा हुई?
महामंदी के बाद करीब एक दशक तक जॉब ओपनिंग्स और हायरिंग लगभग साथ-साथ चलती रहीं। 2010 से 2019 तक अंतर सीमित था और ज्यादातर मामलों में 10 फीसदी से कम रहता था। महामारी के दौरान दोनों में गिरावट आई, लेकिन रिकवरी भी साथ-साथ हुई। असली टूट 2021 में आई, जब कंपनियों ने रिकॉर्ड संख्या में नौकरियां दिखाईं, लेकिन वास्तविक भर्तियां उसी अनुपात में नहीं बढ़ीं।
क्यों पोस्ट की जाती हैं घोस्ट जॉब्स?
विशेषज्ञों के अनुसार हर खाली पद जानबूझकर फर्जी नहीं होता। कई कंपनियां भविष्य के लिए उम्मीदवारों का डाटाबेस बनाने के लिए पद खुले रखती हैं। कुछ जगह बजट फ्रीज, आंतरिक मंजूरियों में देरी या प्राथमिकताओं में बदलाव के कारण भर्तियां अटक जाती हैं। वहीं स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में योग्य कर्मियों की कमी भी एक कारण है। लेकिन इसके बावजूद, जिस पैमाने पर यह अंतर दिख रहा है, वह संकेत देता है कि बड़ी संख्या में लोग ऐसी नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं, जो शायद कभी थीं ही नहीं।

नौकरी तलाशने वालों पर असर
इस प्रवृत्ति का सबसे बड़ा नुकसान नौकरी चाहने वालों को हो रहा है। सैकड़ों आवेदन, इंटरव्यू की तैयारी और फिर कोई जवाब नहीं यह न सिर्फ समय की बर्बादी है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। अमेरिका में टेक सेक्टर के एक जॉबसीकर एरिक थॉम्पसन का अनुभव इसका उदाहरण है। नौकरी छूटने के बाद उन्होंने महीनों तक सैकड़ों आवेदन किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। बाद में उन्हें एहसास हुआ कि कई नौकरियां वास्तव में मौजूद ही नहीं थीं।
कानूनी पहल की मांग
थॉम्पसन ने इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाते हुए 'ट्रूथ इन जॉब एडवर्टाइजिंग एंड अकाउंटेबिलिटी एक्ट' नाम से प्रस्तावित कानून का मसौदा तैयार करने में भूमिका निभाई है। इसमें नौकरी विज्ञापनों के लिए एक्सपायरी डेट, ऑडिट योग्य हायरिंग रिकॉर्ड और भ्रामक विज्ञापन देने वाली कंपनियों पर जुर्माने का प्रावधान शामिल है। अमेरिका के न्यू जर्सी और कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में भी घोस्ट जॉब्स पर रोक लगाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं।
भरोसे का संकट
विश्लेषकों का कहना है कि कागजों पर मजबूत दिखने वाला अमेरिकी श्रम बाजार हकीकत में उतना ठोस नहीं है। जब तक जॉब पोस्टिंग्स वास्तविक भर्ती को सही ढंग से नहीं दर्शाएंगी, तब तक नौकरी तलाशने वाले गैर-मौजूद अवसरों के पीछे भागते रहेंगे और श्रम बाजार पर भरोसा धीरे-धीरे कमजोर होता जाएगा।