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India Economy: वैश्विक उथल-पुथल के बीच भारत की अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत, सुधारों ने दी विकास को नई रफ्तार

अमिताभ कांत, पूर्व जी20 शेरपा एवं नीति आयोग के सीईओ Published by: शिवम गर्ग Updated Tue, 30 Dec 2025 05:38 AM IST
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सार

वैश्विक अशांति, व्यापारिक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था ने मजबूती दिखाई है। सुधारों, कर राहत और घरेलू मांग ने विकास दर को नई ऊंचाई दी है।

India’s Economy Stands Resilient Amid Global Turmoil, Reforms Accelerate Growth
भारतीय अर्थव्यवस्था। - फोटो : amarujala
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विस्तार
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पिछले पांच वर्षों में आए कई वैश्विक झटकों ने दुनियाभर में अस्थिरता और अनिश्चितता का माहौल पैदा किया है। साल 2025 अब तक भू-राजनीतिक बिखराव, व्यापारिक अनिश्चितता, आपूर्ति शृंखला में बदलाव और तकनीकी वर्चस्व की जंग के नाम रहा है। दुनिया के इस अशांत माहौल के बीच, भारत की सूक्ष्म अर्थव्यवस्था सबसे अलग दिखती है। हालिया तिमाही में भारत की विकास दर 8.2 फीसदी रही है, जिसने बड़े-बड़े जानकारों के अनुमानों को भी पीछे छोड़ दिया है। राहत की बात है कि महंगाई और राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है। तमाम बाहरी चुनौतियों के बावजूद, भारत की नीतियों का मुख्य उद्देश्य घरेलू अर्थव्यवस्था को और अधिक मजबूत एवं लचीला बनाना रहा है।

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किसी भी मजबूत अर्थव्यवस्था की असली बुनियाद घरेलू मांग होती है। करोड़ों भारतीय परिवारों के लिए कर नीतियों में बदलाव, खपत बढ़ाने का बड़ा जरिया साबित हुआ है। इस साल भारत ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के टैक्स सुधारों को अपनाया है। फरवरी, 2025 में पेश किए गए बजट में 12 लाख रुपये तक की सालाना आय को करमुक्त किया गया था, जिससे लोगों के हाथों में ज्यादा पैसा आया। साथ ही, पुराने जटिल कानूनों की जगह नया आयकर अधिनियम-2025 लागू किया गया। इसके बाद सितंबर में जीएसटी को और आसान बनाते हुए इसे दो स्लैब में रखा गया। इन सुधारों का असर यह रहा कि त्योहारी सीजन में 6 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड बिक्री हुई।
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खास बात है कि टैक्स में राहत देने से सरकारी खजाने को नुकसान नहीं हुआ है, बल्कि बाजार में बढ़ी मांग एवं खपत के कारण आने वाले समय में टैक्स संग्रह के और बढ़ने की उम्मीद है। हमारी अर्थव्यवस्था का करीब 55-60 फीसदी हिस्सा घरेलू खपत पर आधारित है। जैसे-जैसे खपत बढ़ती है, उद्योगों की उत्पादन क्षमता का भी बेहतर इस्तेमाल होने लगता है। उत्पादन जब अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच जाता है, तो अर्थव्यवस्था में निवेश भी बढ़ता है, जिसके कई सकारात्मक प्रभाव होते हैं।



श्रम कानूनों में सुधार से बढ़ेगी आय
उपभोक्ता मांग लंबे समय तक तभी बनी रह सकती है, जब लोगों की आय में भी लगातार बढ़ोतरी हो। श्रम कानूनों में सुधार यह सुनिश्चित करेंगे। 29 पुराने और बिखरे कानूनों की जगह चार आधुनिक श्रम संहिताएं लागू होने से अब भारत का श्रम ढांचा व्यवसायों के लिए अधिक पारदर्शी और श्रमिकों के लिए ज्यादा सुरक्षित हो गया है। श्रम कानूनों में ये आवश्यक सुधार यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारा 64 करोड़ का विशाल कार्यबल समृद्ध बने एवं भारत की विकास की रफ्तार को और तेज बनाए।

कमाई, बचत, निवेश और प्रतिस्पर्धा
परिवारों की आय जैसे-जैसे बढ़ेगी, उनके पास ज्यादा खर्च या बचत करने या फिर दोनों विकल्प होंगे। संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ने से भविष्य निधि, पेंशन और बीमा कोष में निवेश बढ़ेगा। बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने से भारत का पूंजी बाजार और मजबूत होगा। प्रतिस्पर्धा और सेवाओं की गुणवत्ता भी सुधरेगी। बीमा क्षेत्र में निवेश सीमा बढ़ाना न सिर्फ वित्तीय सुधार है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने वाला बड़ा कदम है।

रोजगार, उत्पादन व एमएसएमई
रोजगार के अवसर और निर्यात की मजबूती बड़े स्तर की कंपनियों से ही आती है। लंबे समय तक हमारी नीतियां ऐसी रहीं, जिनसे कंपनियों को छोटा बने रहने में ही फायदा दिखता था। अब पांच साल में दूसरी बार एमएसएमई की सीमा को बढ़ाया गया है। अगर 2020 से पहले की परिभाषा से तुलना करें, तो यह सीमा अब 10 गुना बढ़ चुकी है। इस बदलाव से कंपनियों को सरकारी मदद का लाभ लेते हुए भी बढ़ने में मदद मिलती है।

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