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Job: श्रम-प्रधान क्षेत्रों में काम बढ़ा तो बनी रहेगी भारत की वृद्धि दर, जानिए रिपोर्ट में स्वरोजगार पर यह दावा

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: रिया दुबे Updated Fri, 12 Dec 2025 03:18 PM IST
सार

एनसीएईआर की रिपोर्ट बताती है कि भारत की जीडीपी वृद्धि को बनाए रखने के लिए श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार सृजन को मजबूत करना अनिवार्य है। रिपोर्ट के अनुसार देश में हालिया रोजगार वृद्धि का बड़ा हिस्सा स्वरोजगार में बढ़ोतरी से आया है, जो आर्थिक मजबूरी का संकेत है और उत्पादकता बढ़ाने में बाधा बनता है।

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India's growth rate will remain stable if work increases in labor-intensive sectors; learn about this claim
रोजगार - फोटो : Adobestock
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विस्तार
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श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार के अवसर को मजबूत करने से भारत की जीडीपी वृद्धि को बनाए रखने में मदद मिल सकती है। राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (एनसीएईआर) की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार आय में सुधार के साथ-साथ विकास को बनाए रखने के लिए रोजगार को एक केंद्रीय स्तंभ बताया गया है। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था में लगातार विस्तार हो रहा है, लेकिन रोजगार सृजन की गति और गुणवत्ता असमान बनी हुई है। खासकार उन क्षेत्रों में जहां बड़ी संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं। 

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स्वरोजगार में हुई वृद्धि

रिपोर्ट में पाया गया है कि हाल ही में रोजगार में हुई वृद्धि मुख्य रूप से स्वरोजगार में वृद्धि के कारण हुई है, न कि नियमित वेतन वाली नौकरियों या कुशल काम की ओर तेजी से बदलाव के कारण। रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रवृत्ति उत्पादकता में वृद्धि और आय में वृद्धि को सीमित करती है।

रोजगार में कौशल, ऋण और प्रौद्योगिकी की भूमिका 

इस अध्ययन में रोजगार विस्तार में कौशल, ऋण और प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने वाले उद्यम, इनका उपयोग न करने वाले उद्यमों की तुलना में 78 प्रतिशत अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं, और ऋण तक पहुंच में थोड़ी सी भी वृद्धि से भर्ती में तेजी से बढ़ोतरी होती है। 


कार्यबल के संदर्भ में, रिपोर्ट कहती है कि भारत को कौशल विकास से लाभ होता है, विशेष रूप से तब जब नई प्रौद्योगिकियां और एआई नौकरियों को नया स्वरूप दे रही हैं।इसमें आगे कहा गया है कि मध्यम कौशल वाले रोजगार सेवा क्षेत्र में रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देते हैं, जबकि विनिर्माण क्षेत्र मुख्य रूप से कम कौशल वाले रोजगारों पर निर्भर है। अध्ययन के अनुसार, औपचारिक कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल कार्यबल की हिस्सेदारी बढ़ाकर 2030 तक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाया जा सकता है।

स्वरोजगार को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

एनसीएईआर के उपाध्यक्ष मनीष सभरवाल ने कहा कि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है। हालांकि इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी वर्तमान में 128वें स्थान पर है, यह रोजगार और समावेशी विकास को प्राथमिकता देने के बहुमूल्य अवसरों को उजागर करता है।  यह कथन विकास और प्रगति के बीच एक सेतु के रूप में रोजगार पर केंद्रित रिपोर्ट के संदर्भ को स्पष्ट करता है।

प्रोफेसर फर्जाना अफरीदी का कहना है कि भारत में स्वरोजगार अक्सर मजबूरी में अपनाया जाता है, न कि पसंद से। उनके अनुसार देश में स्वरोजगार का बढ़ा हुआ हिस्सा आर्थिक आवश्यकता का परिणाम है, किसी उद्यमी जोश का नहीं। अधिकांश छोटे उद्यम बेहद सीमित पूंजी, कम तकनीकी उपयोग और केवल आजीविका भर चल पाने वाली क्षमता के साथ काम करते हैं।

वह यह भी रेखांकित करती हैं कि भारत के रोजगार भविष्य का बड़ा हिस्सा उसके सबसे छोटे उद्यमों की उत्पादकता बढ़ाने पर निर्भर करेगा, क्योंकि यही वे इकाइयां हैं, जो बड़ी संख्या में लोगों को काम तो देती हैं, लेकिन संसाधनों और दक्षता की कमी के कारण टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण रोजगार उत्पन्न नहीं कर पातीं।

रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि अगर उत्पादन मध्यम गति से बढ़ता है, तो वस्त्र, परिधान, व्यापार, होटल और संबंधित सेवाओं जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में काफी वृद्धि होगी। 

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