Egoz Row: क्या अंडों के नाम पर थाली में परोसा जा रहा है कैंसर? प्रतिबंधित रसायनों से जुड़े विवाद की पूरी कहानी
Egoz Row: सोशल मीडिया पर फैले एगोज विवाद ने भारतीय किचन में अंडों को लेकर डर पैदा कर दिया है। क्या वाकई अंडों में मौजूद रसायन आपका डीएनए बदल सकते हैं? एफएसएसएआई और वैश्विक मानकों के आधार पर आपकी सेहत पर मंडराते इस असली खतरे की पूरी पड़ताल, पढ़िए इस विस्तृत रिपोर्ट में।
विस्तार
भारत में भोजन की थाली में पिछले एक दशक में क्रांतिकारी बदलाव आया है। कभी सड़क के किनारे खुली रेहड़ियों पर बिकने वाले और अखबार के कागज में लिपटे मिलने वाले अंडे, आज वातानुकूलित सुपरमार्केट के रैक पर, आकर्षक पैकेजिंग में, 'प्रीमियम', 'एंटीबायोटिक-मुक्त' और 'हर्बल' जैसे दावों के साथ अपनी जगह बना चुके हैं। शहरी भारत, जो स्वास्थ्य के प्रति पहले से कहीं अधिक जागरूक है, इन दावों पर भरोसा करता है और इसके लिए दोगुनी कीमत चुकाने को तैयार रहता है। इसी भरोसे की नींव पर बीते कुछ वर्षों में एक घरेलू ब्रांड ने अपनी पहचान बनाई है। अब इससे जुड़ा एक विवाद सामने आया है।
सोशल मीडिया पर कुछ दिनों पहले वायरल हुई एक लैब रिपोर्ट और वीडियो ने भारतीय मध्यम वर्ग के बीच दहशत फैला दी। पैकेट बंद अंडे बेचने वाले वाले ब्रांड एगोज लैब रिपोर्ट के आधार पर खतरनाक कैमिकल मिलने का दावा किया गया। अंडे को सुपरफूड माना जाता है क्योंकि यह उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आवश्यक विटामिन (A, D, B12, B6), खनिज, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। ये पोषक तत्व इसे शरीर के लिए एक संपूर्ण और पौष्टिक भोजन बनाते हैं। यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध भी है। इसलिए जब इससे नुकसान की बात सामने आई तो इंटरनेट पर लोग परेशान हो गए। सवाल उठने लगे कि हम जो 'सेहतमंद' समझकर खा रहे हैं, क्या वह असल में हमारे शरीर में धीमा जहर घोल रहा है? क्या इन अंडों से हमारे डीएनए के बदलने का खतरा है? आइए पूरे विवाद की कहानी आसानी से समझते हैं। पहले जानते हैं एगोज कंपनी के बारे में।
कितना बड़ा है एगोज का कारोबार?
इस विवाद की गंभीरता को समझने के लिए, हमें सबसे पहले उस कंपनी के कद और बाजार में उसकी स्थिति को समझना होगा जिस पर आरोप लगे हैं। एगोज कोई साधारण अंडा विक्रेता नहीं है; यह भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम का एक चमकता सितारा है। एगोज की मूल कंपनी नुपा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड है। इसकी स्थापना वर्ष 2017 में हुई थी। इसके पीछे तीन युवा दिमाग थे- अभिषेक नेगी, आदित्य सिंह और उत्तम कुमार। ये तीनों आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र हैं। संस्थापकों ने भारतीय अंडा बाजार में एक बड़ी समस्या की पहचान की थी।
एगोज ने कैसे फैलाया कारोबार?
भारत में सालाना 140 अरब से अधिक अंडों का उत्पादन होता है, लेकिन इसका 95% से अधिक हिस्सा असंगठित है। खुले में बिकने वाले अंडों की गुणवत्ता, ताजगी और उत्पादन की प्रक्रिया पर कोई निगरानी नहीं थी। एगोज ने इसी गैप को भरने का बीड़ा उठाया। निवेशकों ने इस मॉडल पर जमकर भरोसा जताया। कंपनी ने अपनी शुरुआती फंडिंग में अच्छी खासी रकम जुटाई। 2022 में, उन्होंने सीरीज बी राउंड में 8.8 मिलियन डॉलर (लगभग 73 करोड़ रुपये) जुटाए, जिसका नेतृत्व आइवीकैप वेंचर्स ने किया था( हालिया विवाद से ठीक पहले एगोज ने अपनी सबसे बड़ी फंडिंग हासिल की। जून 2025 के आसपास, कंपनी ने सीरीज सी राउंड में 20 मिलियन डॉलर (लगभग 167 करोड़ रुपये) जुटाए। एगोज भारत के 11 प्रमुख शहरों में अपनी सेवाएं दे रहा है, जिनमें दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, मुंबई और पुणे शामिल हैं ।
एगोज पर क्यों लगे आरोप?
इस पूरे विवाद की शुरुआत एक यूट्यूब चैनल से हुई। यह चैनल स्वास्थ्य सप्लीमेंट्स और खाद्य उत्पादों की स्वतंत्र, ब्लाइंड लैब टेस्टिंग करने के लिए जाना जाता है। चैनल ने बाजार से एगोज ब्रांड के अंडों के नमूने खरीदे और उन्हें एक एनएबीएल के मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा । जांच के परिणाम ने सबको चौंका दिया। लैब रिपोर्ट में एगोज के अंडों में नाइट्रोफ्यूरान और एओजेड (3-amino-2-oxazolidinone) नामक रसायन की मौजूदगी का पता चला। रिपोर्ट के अनुसार, नमूने में AOZ की मात्रा 0.73 µg/kg से 0.74 µg/kg (माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम) पाई गई । यह रसायन दुनिया के गई देशों में प्रतिबंधित है। जैसे ही यह वीडियो सार्वजनिक हुआ, सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया। कई वायरल वीडियो में दावा किया गया कि इन रसायनों की मौजूदगी वाले अंडे शरीर के डीएनए तक पर असर डाल सकते हैं।
एगोज क्या दावा करता है?
एगोज की पूरी मार्केटिंग इस वादे पर टिकी है कि उनके अंडे 'हर्बल फीड' से तैयार होते हैं और उनमें किसी भी तरह के एंटीबायोटिक्स या रसायनों का इस्तेमाल नहीं होता। AOZ का मिलना सीधे तौर पर इस वादे का उल्लंघन है। एओजेड एक प्रतिबंधित पदार्थ का मेटाबोलाइट है, जिसे कैंसरकारी (Carcinogenic) माना जाता है। उपभोक्ताओं का आरोप है कि कंपनी मुनाफे के लिए लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रही है।
क्या अंडे आपके डीएनए पर असर डाल सकते हैं?
उपभोक्ताओं के मन में सबसे बड़ा डर जो इस विवाद से उभरा है, वह यह है: "क्या ये अंडे खाने से मेरा या मेरे बच्चों का डीएनए बदल जाएगा?" यह डर 'जेनेटिक म्यूटेशन' और 'जीन एडिटिंग' (Gene Editing) के बीच की वैज्ञानिक समझ की कमी के कारण है। हमें इस भ्रांति को दूर करना होगा। अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर हम किसी जानवर का डीएनए या कोई क्षतिग्रस्त डीएनए खाते हैं, तो वह हमारे शरीर के डीएनए में घुल-मिल जाएगा। यह वैज्ञानिक रूप से गलत है। जब आप कोई भी भोजन (चाहे वह पौधा हो या मांस) खाते हैं, तो उसमें मौजूद डीएनए आपके पेट में जाता है। हमारा पाचन तंत्र बेहद शक्तिशाली है। पेट का एसिड और एंजाइमभोजन में मौजूद डीएनए और आरएनए को उनके सबसे छोटे टुकड़ों- न्यूक्लियोटाइड्स में तोड़ देते हैं। हमारी आंतें इन न्यूक्लियोटाइड्स को अवशोषित करती हैं और शरीर इनका उपयोग नए सिरे से अपना खुद का डीएनए बनाने के लिए करता है। मुर्गी का डीएनए या अंडे में मौजूद कोई भी जेनेटिक सामग्री सीधे मानव जीनोम में घुसकर उसे बदल नहीं सकती । इसलिए, साइंस फिक्शन फिल्मों की तरह, इन अंडों को खाने से आप 'म्यूटेंट' नहीं बनेंगे।
डीएनए से जुड़े दावों की हकीकत क्या है?
हालांकि, 'डीएनए बदलने' का खतरा न होने का मतलब यह नहीं है कि खतरा शून्य है। असली खतरा 'जीनोटॉक्सिसिटी' है। जीनोटॉक्सिसिटी का अर्थ है किसी रसायन की वह क्षमता जिससे वह कोशिकाओं के अंदर मौजूद डीएनए को क्षतिग्रस्त कर सकता है। एगोज के अंडों में पाए गए रसायन नाइट्रोफ्यूरान और एओजेड को 'जीनोटॉक्सिक' माना जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि यह आपके डीएनए को नए सिरे से लिखेगा, बल्कि यह है कि यह आपके डीएनए के धागों को तोड़ सकता है या उनमें त्रुटियां पैदा कर सकता है। जब डीएनए क्षतिग्रस्त होता है, तो शरीर उसे ठीक करने की कोशिश करता है। अगर यह मरम्मत ठीक से नहीं होती, तो कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती हैं। इसी अनियंत्रित विभाजन को हम कैंसर कहते हैं । ऐसे में उक्त रसायनों की अधिकता से कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।
क्या है नाइट्रोफ्यूरान और एओजेड, जिसके अंडों के सेंपल में मिलने का दावा?
इस विवाद की जड़ में नाइट्रोफ्यूरान (Nitrofurans) नामक एंटीबायोटिक्स का एक वर्ग एओजेड है। यह अपने आप में कोई दवा नहीं है। यह फ्यूराजोलिडोन नामक एंटीबायोटिक का एक मेटाबोलाइट (Metabolite) या अपशिष्ट उत्पाद है । जब किसी मुर्गी को फ्यूराजोलिडोन खिलाया जाता है, तो उसका शरीर दवा को बहुत तेजी से पचा लेता है (कुछ ही घंटों में)। इसलिए, सीधे दवा को पकड़ना मुश्किल होता है। लेकिन, दवा पचने के बाद AOZ के रूप में शरीर के ऊतकों (मांस और अंडे) में जम जाती है और हफ्तों या महीनों तक वहां बनी रहती है। इसलिए, वैज्ञानिक लैब टेस्ट में दवा को नहीं, बल्कि एओजेड को ढूंढते हैं। अगर अंडे में एओजेड मिले तो यह इस बात का सबूत है कि मुर्गी को कभी न कभी नाइट्रोफ्यूरान एंटीबायोटिक दिया गया था ।
नाइट्रोफ्यूरान का अवैध इस्तेमाल क्यों होता है?
अगर यह प्रतिबंधित है, तो किसान इसका इस्तेमाल क्यों करते हैं? नाइट्रोफ्यूरान बहुत सस्ते होते हैं और मुर्गियों को बैक्टीरिया (जैसे साल्मोनेला और ई. कोलाई) और प्रोटोजोआ के संक्रमण से बचाने में बेहद कारगर होते हैं । यह मुर्गियों का वजन तेजी से बढ़ाने और अंडा उत्पादन की दर को बनाए रखने में मदद करता है। भारत में पोल्ट्री फार्मों में मुर्गियों को बहुत कम जगह में ठूंस कर रखा जाता है। ऐसी जगहों पर बीमारी फैलने का खतरा ज्यादा होता है, इसलिए किसान 'सुरक्षा' के तौर पर पहले ही ये दवाएं चारे में मिला देते हैं ।
आम आदमी के लिए खतरा कितना और कैसे?
लैब रिपोर्ट में AOZ की मात्रा 0.74 µg/kg (माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम) पाई गई है। इसे 'पार्ट्स पर बिलियन' (ppb) भी कहा जाता है। यानी एक अरब हिस्सों में एक हिस्सा। यह मात्रा सुनने में बहुत कम लगती है, तो क्या यह वास्तव में खतरनाक है? नाइट्रोफ्यूरान को 'संभावित मानव कार्सिनोजन' की श्रेणी में रखा गया है। 0.74 ppb की मात्रा इतनी कम है कि इसे खाने से आपको तुरंत कोई बीमारी, उल्टी या चक्कर नहीं आएंगे। पर लंबे समय में इससे परेशानी हो सकती है। कैंसरकारी तत्वों के लिए सुरक्षा एजेंसियां मानती हैं कि 'कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है।'
कैंसर के अलावे और क्या खतरा?
आम आदमी के लिए असली खतरा कैंसर नहीं, बल्कि एंटिमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) है। यह वह पहलू है जिस पर कम चर्चा हो रही है लेकिन यह सबसे घातक है। जब किसान मुर्गियों को लगातार नाइट्रोफ्यूरान जैसी एंटीबायोटिक्स खिलाते हैं, तो मुर्गियों के पेट में मौजूद बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। ये 'सुपरबग्स' (Superbugs) बन जाते हैं । ये सुपरबग्स अंडे की सतह, मांस या फार्म के कचरे के जरिए इंसानों तक पहुंचते हैं। अगर आप ऐसे किसी बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाते हैं (जैसे टाइफाइड या फूड पॉइजनिंग), तो डॉक्टर की दी गई आम एंटीबायोटिक्स आप पर असर नहीं करेंगी। एक मामूली संक्रमण जानलेवा बन सकता है। 'सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट' (CSE) ने पाया है कि भारतीय पोल्ट्री फार्मों में पलने वाले बैक्टीरिया कई तरह की दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं । इसलिए, एगोज का मामला सिर्फ एक रसायन का नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था का है जो भविष्य की महामारियों को जन्म दे रही है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों का क्या रुख है?
पश्चिमी देश खाद्य सुरक्षा के मामले में बेहद सख्त हैं, विशेषकर नाइट्रोफ्यूरान को लेकर। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने 2002 में ही खाद्य-उत्पादक जानवरों में नाइट्रोफ्यूरान के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिका में इसके लिए कोई भी सुरक्षित सीमा नहीं है। इसका मतलब है कि अगर किसी उत्पाद में लैब मशीन द्वारा पकड़ी जा सकने वाली सबसे छोटी मात्रा भी मिलती है, तो वह उत्पाद अवैध है। ऐसी खेप को तुरंत जब्त कर नष्ट कर दिया जाता है और निर्माता को 'इम्पोर्ट अलर्ट' (ब्लैकलिस्ट) में डाल दिया जाता है । यूरोपीय संघ (EU) ने भी इसे प्रतिबंधित कर रखा है। 2019 और 2023 के संशोधनों के बाद, EU ने 0.5 µg/kg तक की सीमा तक इसके इस्तेमाल पर छूट दी है। भारत में एगोज के अंडों में पाई गई मात्रा (0.74 µg/kg) यूरोपीय संघ के वर्तमान मानक (0.5 µg/kg) से अधिक है। इसका मतलब है कि ये अंडे यूरोपीय बाजारों में बेचने के लायक नहीं हैं और अगर ये वहां पहुंचते तो इन्हें नष्ट कर दिया जाता।
भारत में रसायनों को लेकर क्या प्रावधान हैं?
भारत में इस रसायन के इस्तेमाल पर स्थिति थोड़ी जटिल और विरोधाभासी है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने भी नाइट्रोफ्यूरान और उसके मेटाबोलाइट्स को प्रतिबंधित पदार्थों की सूची में रखा है। 2011 के नियमों और 2018 के संशोधन के तहत, मांस और अंडों के उत्पादन के किसी भी चरण में इसका उपयोग अवैध है। यहीं पर कहानी में मोड़ आता है। इसका उपयोग प्रतिबंधित है, लेकिन एफएसएआई ने जांच के लिए एक सीमा तय की है। 2018 की अधिसूचना में, FSSAI ने कई एंटीबायोटिक्स के लिए 0.001 mg/kg (यानी 1.0 µg/kg) की सहनशीलता सीमा (Tolerance Limit) निर्धारित की । एगोज के अंडों में मात्रा 0.74 µg/kg है। यह मात्रा FSSAI की 1.0 µg/kg की सीमा से कम है। तकनीकी रूप से, एगोज भारतीय कानून के तहत सुरक्षित होने का दावा कर सकता है।
एगोज ने पूरे विवाद पर क्या कहा है?
एगोज के फाउंडर अभिषेक नेगी ने विवाद के बाद सोशल मीडिया पर कंपनी का बचाव किया। नेगी ने कहा, "एगोज के फार्मों में किसी भी प्रकार के प्रतिबंधित या गैर-प्रतिबंधित एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कतई नही किया जाता है। उनके लिए 'प्रतिबंध का मतलब पूर्ण प्रतिबंध' है। पिछले छह वर्षों में, ब्रांड ने भारत में पहली बार 11 सुरक्षा जांच, 100% हर्बल फीड और बैच-लेवल पारदर्शिता जैसी प्रणालियां स्थापित कर हजारों ग्राहकों का विश्वास जीता है। संस्थापक ने जोर देकर कहा कि उनकी कंपनी का मिशन एक असंगठित उद्योग को विज्ञान और सुरक्षा के माध्यम से व्यवस्थित करना है, और वे अपनी ईमानदारी या उत्पाद की गुणवत्ता के साथ भविष्य में भी कोई समझौता नहीं करेंगे।" एगोज ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर अंडों की जांच से जुड़ी लैब रिपोर्ट भी साझा की है।