ताकि सही समय पर सही हाथों में जाए आपका निवेश: SEBI ने म्यूचुअल फंड से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव किए, जानिए
भारतीय शेयर बाजार के नियामक- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड में नॉमिनी के नियमों में बड़ा बदलाव किया है, जिससे आपका निवेश सही हाथों में जाएगा। सही समय पर सही हाथों में जाए आपके निवेश की राशि, इसलिए इन बदलावों के बारे में जानिए सबकुछ

विस्तार
आपने जब म्यूचुअल फंड या डीमैट खाता खोला होगा, तो ‘नॉमिनी’ का नाम भरना शायद औपचारिकता लगी होगी। लेकिन अब वही नाम भविष्य में आपके परिवार की आर्थिक सुरक्षा तय कर सकता है। बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब हर डीमैट या म्यूचुअल फंड फोलियो में 10 नॉमिनी तक जोड़ सकते हैं। हर निवेशक को या तो नॉमिनी दर्ज करना होगा या फिर औपचारिक रूप से ‘Opt-Out’ का विकल्प चुनना होगा। यह नियम सेबी के नए सर्कुलर का हिस्सा है। इसका मतलब यह है कि अब निवेश का अंत उतना ही व्यवस्थित होगा, जितना उसका आरंभ होता है।

पहले क्या था नियम
पहले ज्यादातर प्लेटफॉर्म केवल 1-3 नॉमिनी जोड़ने की अनुमति देते थे। कई बार निवेशक नॉमिनी जोड़ना भूल जाते थे या अधूरी जानकारी भरते थे। ऐसे में नॉमिनी का नाम तो होता था, लेकिन पहचान नहीं होती थी।
सेबी ने अब स्पष्ट कर दिए नियम
- एक खाते या फोलियो में 10 लोगों के नाम नॉमिनी के तौर पर जोड़े जा सकते हैं।
- हर नॉमिनी का हिस्सा (%) तय करना जरूरी होगा।
- सभी नॉमिनी का KYC और पहचान प्रमाण अनिवार्य।
- यह बदलाव निवेशक की मृत्यु के बाद निवेश के हस्तांतरण को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सेबी ने क्यों किया बदलाव?
- भारत में लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश अनक्लेम्ड (बिना दावेदार के) पड़ा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि निवेशक के निधन के बाद परिवार या उत्तराधिकारी यह साबित नहीं कर पाते कि वे अधिकार रखते हैं।
सेबी का क्या है मकसद?
- दावे की प्रक्रिया को डिजिटल और तेज बनाना।
- डेटा-क्लैरिटी बढ़ाना, ताकि परिवार को बार-बार दस्तावेज न जमा करने पड़ें।
- विवाद घटाना- अगर नाम और हिस्सा पहले से तय हैं, तो झगड़ा नहीं होगा।
- इस कदम से निवेशक की विरासत ‘कागजी प्रक्रिया’ से बाहर निकलकर स्पष्ट और सुरक्षित सिस्टम में बदलेगी।
नॉमिनी की संख्या क्यों बढ़ाई?
- 10 नॉमिनी की अनुमति सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक यथार्थ को मान्यता देती है। भारत में संयुक्त परिवारों, बहु-पीढ़ी संरचनाओं और विविध रिश्तों के बीच संपत्ति वितरण को अब व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार डिजाइन किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति माता-पिता, जीवनसाथी, दोनों बच्चों और एक सामाजिक संस्था तक को नामांकित कर सकता है। हर नॉमिनी का हिस्सा पहले से तय रहने से न बैंक को दिक्कत होगी और न ही परिवार में विवाद होगा।
निवेशकों के लिए ध्यान रखने वाली बातें
- हर म्यूचुअल फंड या डीमैट खाते में नॉमिनी या Opt-Out दर्ज करें। अब 10 तक नॉमिनी की अनुमति है।
- हर बैंक खाते में 4 नॉमिनी तक दर्ज करें।
- मृत्यु के बाद 15 दिन में दावा निपटाने का अधिकार परिवार को है; बैंक अनावश्यक कोर्ट दस्तावेज न मांगंे।
- वसीयत या ट्रस्ट बनवाएं, ताकि स्वामित्व विवाद न हो।
- माइनर या NRI नॉमिनी के लिए गार्जियन या अटेस्टेड डॉक्युमेंट तैयार रखें।
नॉमिनेशन है कानूनी कवच
आपकी मेहनत की कमाई केवल तब विरासत बनती है, जब वह समय पर सही हाथों तक पहुंचे। हालिया बदलाव इस दिशा में ऐतिहासिक कदम हैं। अब नॉमिनेशन एक कानूनी सुरक्षा कवच है। इसलिए अपने निवेश, बैंक खाते, और लॉकर की नॉमिनेशन जानकारी तुरंत अपडेट करें। और याद रखें, नॉमिनेशन ट्रांसफर की प्रक्रिया है, उत्तराधिकार का अधिकार नहीं।
नॉमिनी कौन होता है?
बहुत लोग यह मान लेते हैं कि नॉमिनी ही संपत्ति का मालिक बन जाता है। यह गलतफहमी है। नॉमिनी का मतलब है, वह व्यक्ति, जिसे निवेशक की मृत्यु के बाद राशि प्राप्त करने का अधिकार होता है। लेकिन वह अंतिम स्वामी नहीं होता।
- कानून के मुताबिक, नॉमिनी केवल ट्रस्टी की भूमिका निभाता है, जो राशि को कानूनी उत्तराधिकारियों या वसीयत में लिखे लाभार्थियों तक पहुंचाने का जिम्मेदार होता है। इसलिए नॉमिनी का नाम दर्ज करना जरूरी है, लेकिन उसके साथ वसीयत या प्राइवेट फैमिली ट्रस्ट बनाना भी जरूरी होता है।
बैंक खाते और लॉकर में 4 नॉमिनी तक की अनुमति
- सिक्योरिटीज के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र में भी बड़े बदलाव हुए हैं। बैंकिंग लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2024 के तहत अब बैंक खातों, लॉकर और सेफ-कस्टडी में चार नॉमिनी तक नामित किए जा सकते हैं।
- जमा खातों में निवेशक चाहे, तो नॉमिनी को एक साथ अनुपातिक हिस्सा या क्रमवार आधार पर चुन सकता है।
- जबकि लॉकर और सेफ-कस्टडी के मामलों में केवल क्रमिक नामांकन (Successive nomination) मान्य होगी।
यह बदलाव दावों के समय स्पष्टता और पारदर्शिता लाएगा। पहले अक्सर परिवारों को यह तय करने में महीनों लग जाते थे कि किसे प्राथमिक अधिकार मिलेगा।