HSBC Report: भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत, निवेश और वैश्विक भागीदारी से बढ़ेगी विकास की रफ्तार
एचएसबीसी म्यूचुअल फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में रफ्तार के संकेत दिख रहे हैं। उम्मीद है कि नवीकरणीय ऊर्जा और इससे संबंधित सप्लाई चेन में अधिक निजी निवेश, उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी घटकों के स्थानीय उत्पादन व वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की बढ़ती भूमिका, इस विकास को गति देगी।
विस्तार
भारत की अर्थव्यवस्था में अब सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। एचएसबीसी म्यूचुअल फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू विकास चक्र अपने निचले स्तर से ऊपर उठने की ओर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कम ब्याज दरें, पर्याप्त तरलता, कच्चे तेल की गिरती कीमतें और सामान्य मानसून जैसे कारक आने वाले महीनों में विकास को रफ्तार दे सकते हैं।
ये भी पढ़ें: Warren Buffett: ‘मैं अब शांत रहूंगा’, वॉरेन बफेट का आखिरी पत्र; CEO पद छोड़ते हुए शेयरधारकों को विदाई संदेश
आने वाले वर्षों में भारत का निवेश चक्र मजबूत रहने की संभावना
रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही वैश्विक व्यापार अनिश्चितता फिलहाल निजी निवेश (कैपेक्स) के लिए चुनौती बनी हुई हैं, लेकिन मध्यम अवधि में भारत का निवेश चक्र मजबूत बना रहने की संभावना है। इसमें बतया गया है कि सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ता निवेश, निजी क्षेत्र की निवेश गतिविधियों में तेजी और रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार इस रुझान को आगे बढ़ाएंगे।
ये भी पढ़ें: Budget 2026: बजट 2026 की तैयारी शुरू; वित्त मंत्री ने प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ की बैठक, ये लोग रहे मौजूद
इन कारकों से विकास को मिलेगी गति
एचएसबीसी को उम्मीद है कि नवीकरणीय ऊर्जा और इससे संबंधित सप्लाई चेन में अधिक निजी निवेश, उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी घटकों के स्थानीय उत्पादन व वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की बढ़ती भूमिका, इस विकास को गति देगी। रिपोर्ट के अनुसार निफ्टी का मूल्यांकन अपने 10-वर्षीय औसत से थोड़ा ऊपर हैं। आने वाले वर्षों में यह भारतीय इक्विटी के लिए सकारात्मक बना हुआ है।
रिपोर्ट में चुनौतियों का जिक्र
हालांकि रिपोर्ट में ऐसे कारकों का भी जिक्र है, जो विकास की गति पर असर डाल सकती है। कमजोर वैश्विक विकास दर से भविष्य में मांग पर दबाव बने रहने की संभावना है। इसके अलावा, वैश्विक नीतिगत अनिश्चितता, जिसमें टैरिफ का जोखिम, कुछ देशों की व्यपार नीतियां और चल रहे भू-राजनीतिक संघर्ष शामिल हैं।