Hormuz Strait: होर्मुज जलडमरूमध्य क्या है, दुनिया के लिए यह अहम क्यों और इस पर क्यों मंडरा रहा संकट? जानें
ईरान-इस्राइल संघर्ष में अमेरिका के एंट्री के बाद पश्चिम एशिया में और तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। ईरान ने फिर से होमुर्ज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी देना शुरू कर दिया है। यह मार्ग वैश्विक व्यापार के लिए बहुत अहमियत रखता है। आइए जानते हैं कि दुनिया के लिए यह क्यों है महत्वपूर्ण।
विस्तार
इस्राइल-ईरान संघर्ष में अमेरिका की एंट्री ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया है। अमेरिका के हमले के बाद ईरान की संसद ने होमुर्ज जलडमरूमध्य को बंद करने की मंजूरी दे दी है। हालांकि अंतिम फैसला ईरान की शीर्ष सुरक्षा परिषद के हाथ में है। रविवार की सुबह अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया था।
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होर्मुज जलडमरूमध्य क्यों है खास?
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है क्योंकि यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है। दुनिया के तेल परिवहन का एक बड़ा हिस्सा इसी रास्ते से गुजरता है। यह लगभग 30 मील चौड़ा है और ईरान और ओमान के बीच स्थित है। इस मार्ग से होकर हर दिन दर्जनों टैंकर गुजरते हैं, जिनका संचालन एक सुव्यवस्थित ट्रैफिक सेपरेशन स्कीम (TSS) के जरिए किया जाता है।
होर्मुज जलडमरूमध्य का रणनीतिक महत्व
रणनीतिक रूप से देखें तो इस जलडमरूमध्य के आठ प्रमुख द्वीपों में से सात पर ईरान का नियंत्रण है, जिससे उसे क्षेत्रीय नौवहन पर निगरानी और प्रभाव का लाभ मिलता है। अबू मूसा, ग्रेटर टुंब और लेसर टुंब जैसे द्वीपों पर ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के बीच वर्षों से विवाद चला आ रहा है। इसके अलावा, ईरान ने चाबहार, बंदर अब्बास और बुशहर जैसे तटीय इलाकों में नौसैनिक अड्डे स्थापित कर इस मार्ग में अपनी सैन्य मौजूदगी को और मजबूत किया है।
यू.एस.ऊर्जा सूचना प्रशासन के अनुसार, लगभग 20 मिलियन बैरल कच्चा तेल और वैश्विक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) शिपमेंट का एक तिहाई हिस्सा प्रतिदिन यहां से गुजरता है। यह वैश्विक स्तर पर तेल की खपत का लगभग 20% है। चीन जैसी तेल पर अत्यधिक निर्भर अर्थव्यवस्थाएं इससे जुड़ी हैं, जबकि अमेरिका के लिए इसके बंद होने का मतलब पेट्रोल और विमान ईंधन की कीमतों में भारी उछाल हो सकता है। ईरान इस क्षेत्र में पहले भी विदेशी टैंकरों को परेशान करता रहा है और जब भी उस पर कोई संकट आया है, तो वह इसे बंद करने की धमकी देता रहा है। यह मार्ग बंद हुआ तो न केवल वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि पूरी दुनिया में उथल-पुथल भी देखने को मिल सकती है।
तेल की कीमतों में आया 15% का उछाल
हालांकि, तेल व्यापारियों औ ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि यह धमकी फिलहाल अपनी शर्त मनवाने का हथियार है। टैंकर-ट्रैकिंग फर्में के अनुसार रविवार को जलडमरूमध्य से आवाजही सामान्य रही। इस बीच, तेल बाजार में हलचल तेज हो गई। रविवार को वैश्विक बेंचमार्क में ब्रेंट क्रूड 3.2% उछलकर 79.50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गया। इस्राइल के हालिया सैन्य हमले के बाद से अब तक कीमतों में करीब 15% की बढ़ोतरी हो चुकी है। वहीं, अमेरिकी शेयर बाजार पर भी असर दिखा। एसएंडपी 500 से जुड़े फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स में 0.5% गिरावट दर्ज हुई। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि अगर ईरान ने जलडमरूमध्य को बंद किया तो अमेरिका चुप नहीं बैठेगा। यही बजह है कि बहरीन में अमेरिकी नौसेना का पाचवां बेड़ा इस पर कड़ी नजर रख रहा है।
ईरान की अर्थव्यवस्था को भी पहुंचेगा नुकसान
जलडमरूमध्य को बंद करने से वैश्विक व्यापार पर तो प्रभाव पड़ेगा ही लेकिन ईरान की आर्थिक हितों को नुकसान पहुंच सकता है। खासतौर पर चीन के निर्यात पर भी बाधा आएगी। इससे ओमान सहयोग परिषद के साथ संबंधों में तनाव पैदा होने का जोखिम होगा, ये वे देश हैं जो बिना किसी बाधा के नौवहन को महत्व देते हैं। आंतरिक रूप से, ये कदम ईरान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है।
भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता है?
भारत का लगभग 70% कच्चा तेल और 40% एलएजी आयात इसी मार्ग से होकर गुजरता है। कतर अकेले भारत को लगभग 10 मिलियन टन एलएनजी की आपूर्ति करता है। अगर यहां कोई बाधा उत्पन्न होती है, तो भारत को दूसरे स्त्रोंतों और मार्गों की तलाश करनी पड़ सकती है। इससे आयात में ज्यादा खर्च होने के साथ देश को लॉजिस्टकल चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
ईरान के साथ भारत का एक और बड़ा हित जुड़ा है, जो चाबहार बंदरगाह से होकर गुजरता है। ईरान के चाबहार बंदरगाह भारत ने 2024 में 10 साल के लिए लीज पर लिया है। ओमान की खाड़ी में स्थित यह बंदरगाह, पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया से भारत को सीधे जोड़ता है। ईरान और भारत ने 2028 में चाबहार पोर्ट तैयार करने का समझौता किया था। इसे भारत के रणनीतिक पोर्ट के तौर पर देखा जाता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) शामिल है। भारत ने इस बंदरगाह के विकास के लिए 85 मिलियन डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता जताई है और इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGAL) के जरिए इसका संचालन किया है।