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मजदूरों के पलायन ने बढ़ाई डाबर से पारले तक की चिंता, जरूरी सामानों को बनाने में आ रही हैं परेशानियां

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्रीधर मिश्रा Updated Tue, 31 Mar 2020 03:02 AM IST
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due to lockdown from parle to itc to dabur like fmcg companies facing production crises
प्रयागराज में दिल्ली और अन्य स्थानो से लौट रहे मजदूर। - फोटो : prayagraj
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भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन से कारोबार को काफी बड़ा झटका लगा है। हालांकि, कोरोना वायरस को फैलने के लिए रोकने के लिए यही एक मात्र रास्ता था। ऐसे में जहां सारे कारोबार बंद हो गए हैं वहीं, जरूरी सामानों के उत्पादन का काम जारी है। इस बीच रोजमर्रा के उपभोक्ता उत्पाद (एफएमसीजी) बनाने वाली डाबर, आईटीसी और पारले जैसी कंपनियों को एक नई मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। दरअसल प्रवासी मजदूरों के पलायन के बाद अब इन कारखानों को चलाने में काफी परेशानियां आ रही हैं। इसके अलावा माल की आवाजाही के लिए ट्रकों की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती बन गई  है। 

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डाबर की चुनौती

इस पूरे मामले पर डाबर इंडिया के कार्यकारी परिचालन निदेशक शाहरुख खान ने कहा, "कई राज्यों में लोकल लेवल पर मुद्दों को सुलझा कर सप्लाई चैन को जारी रखने में मदद मिली है। लेकिन कारखानों को चलाने के लिए मजदूरों की उपलब्धता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। जो मजदूर अपने घरों से दूर रहकर यहां काम कर रहे थे, उनमें से ज्यादातर लॉकडाउन के दौरान अपने घरों को लौट रहे हैं। ऐसे में कारखानों को ठीक से चलाने में यह बड़ी बाधा है।’’
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आईटीसी की चुनौती

वहीं, इस मामले पर आईटीसी के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हमारे कुछ राज्यों में काम जारी है, जहां हमने ऑपरेशन्स को जारी रखने के लिए मिलने वाली अनुमतियों को तेजी से बढ़ा दिया है। लेकिन ट्रकों की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कारखानों में मजदूरों की कमी है। इसके साथ ट्रकों का अंतरराज्यीय आवागमन इस लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।’’

पारले की चुनौती

पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने कहा, ‘‘मौजूदा समय में सबसे बड़ी चुनौती मजदूरों की कमी है। ऐसे में कंपनियों के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि मजदूरों की कमी में वह अपने कारखानों को किस तरह चलाएं।’’ उन्होंने आगे कहा कि कारखानों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर प्रवासी होते हैं। ऐसे में लॉकडाउन के चलते वह अपने शहरों की ओर वापस लौट रहे हैं। इसलिए उनकी कम संख्या एक बड़ी चुनौती है।

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