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Highcourt: पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन न करने के फरमान के खिलाफ अपील, पीयू से जवाब तलब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Tue, 08 Jul 2025 08:58 AM IST
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सार
कोर्ट ने कहा कि जब शिक्षा का अधिकार और संगठन बनाने का अधिकार आमने-सामने खड़े हों, तो यह तय करना जरूरी हो जाता है कि किस अधिकार को प्राथमिकता दी जाए। क्या छात्र प्रदर्शन करें या कक्षा में भाग लें, दोनों एक साथ तब नहीं चल सकते जब टकराव की स्थिति हो।

पंजाब यूनिवर्सिटी
- फोटो : फाइल
विस्तार
दाखिले के समय बिना अनुमति प्रदर्शन न करने और करने पर दाखिला रद्द करने के शपथपत्र की अनिवार्यता को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने याचिका पर पीयू को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। हालांकि कोर्ट ने छात्रों को शपथपत्र जमा करवाने का आदेश दिया है जो इस याचिका पर आने वाले अंतिम फैसले पर निर्भर होगा।
कोर्ट ने कहा कि जब शिक्षा का अधिकार और संगठन बनाने का अधिकार आमने-सामने खड़े हों, तो यह तय करना जरूरी हो जाता है कि किस अधिकार को प्राथमिकता दी जाए। क्या छात्र प्रदर्शन करें या कक्षा में भाग लें, दोनों एक साथ तब नहीं चल सकते जब टकराव की स्थिति हो। याचिकाकर्ता छात्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि यदि छात्र कक्षाएं बाधित करता है तो विश्वविद्यालय उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, लेकिन संविधान प्रदत्त विरोध के मूल अधिकार से पहले ही छात्रों को वंचित करना न्यायोचित नहीं है।
याचिका में उस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई गई है, जिसमें यह कहा गया है कि प्रदर्शन, धरना या रैली के दौरान बाहरी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा ताकि कोई अनुचित स्थिति उत्पन्न न हो। याची ने कहा कि अगर कोई पूर्व छात्र या बाहरी व्यक्ति परिसर में आकर बात करता है, तो मेरी जिम्मेदारी नहीं बनती। ऐसे में मेरा दाखिला रद्द करना अनुचित है। इसके विपरीत विश्वविद्यालय के वकील ने कुछ ऐसे प्रदर्शनों का उदाहरण दिया जो हिंसात्मक रूप ले चुके हैं, जैसे कि विश्वविद्यालय में उपराष्ट्रपति के दौरे के दौरान किया गया विरोध प्रदर्शन, जिसने विश्वविद्यालय की व्यवस्था को बाधित कर दिया था।
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कोर्ट ने कहा कि जब शिक्षा का अधिकार और संगठन बनाने का अधिकार आमने-सामने खड़े हों, तो यह तय करना जरूरी हो जाता है कि किस अधिकार को प्राथमिकता दी जाए। क्या छात्र प्रदर्शन करें या कक्षा में भाग लें, दोनों एक साथ तब नहीं चल सकते जब टकराव की स्थिति हो। याचिकाकर्ता छात्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि यदि छात्र कक्षाएं बाधित करता है तो विश्वविद्यालय उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, लेकिन संविधान प्रदत्त विरोध के मूल अधिकार से पहले ही छात्रों को वंचित करना न्यायोचित नहीं है।
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याचिका में उस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई गई है, जिसमें यह कहा गया है कि प्रदर्शन, धरना या रैली के दौरान बाहरी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा ताकि कोई अनुचित स्थिति उत्पन्न न हो। याची ने कहा कि अगर कोई पूर्व छात्र या बाहरी व्यक्ति परिसर में आकर बात करता है, तो मेरी जिम्मेदारी नहीं बनती। ऐसे में मेरा दाखिला रद्द करना अनुचित है। इसके विपरीत विश्वविद्यालय के वकील ने कुछ ऐसे प्रदर्शनों का उदाहरण दिया जो हिंसात्मक रूप ले चुके हैं, जैसे कि विश्वविद्यालय में उपराष्ट्रपति के दौरे के दौरान किया गया विरोध प्रदर्शन, जिसने विश्वविद्यालय की व्यवस्था को बाधित कर दिया था।