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राखीगढ़ी में पुरातत्व और तकनीक का संगम: ASI ने शुरू किया क्यूआर प्रोजेक्ट, दो भाषाओं में मिलेगी पूरी जानकारी

रिशु राज सिंह, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Thu, 02 Jan 2025 11:20 AM IST
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सार

राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े पुरातात्विक स्थलों में से एक है। यह स्थल करीब 5,000 साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति और उन्नत जीवन शैली का प्रमाण है। यहां की खुदाई में कई महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं, जिनमें व्यवस्थित नगर योजना, जल निकासी प्रणाली, कुम्हार कला और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं। 

Archaeological Survey of India started QR project in Rakhigarhi in Hisar
स्मार्ट फोन बताएगा राखीगढ़ी की कहानी - फोटो : अमर उजाला
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हिसार के राखीगढ़ी में अब हड़प्पा संस्कृति को समझने के लिए गाइड की जरूरत नहीं पड़ेगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने यहां क्यूआर प्रोजेक्ट शुरू किया है, जो पुरातत्व और आधुनिक तकनीक को जोड़ने का एक अनोखा प्रयास है। 

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पर्यटक अब साइट्स पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करके हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। खास बात यह है कि यह जानकारी न केवल टेक्स्ट फॉर्म में बल्कि स्पिकिंग मोड में भी उपलब्ध होगी।

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दो भाषाओं में मिलेगी जानकारी

एएसआई चंडीगढ़ सर्कल के क्यूआर प्रोजेक्ट के तहत पर्यटक, साइट पर लगे क्यूआर कोड को अपने स्मार्टफोन से स्कैन कर सकते हैं। कोड स्कैन करते ही संबंधित साइट की ऐतिहासिक जानकारी स्क्रीन पर दिखाई देने लगेगी। पर्यटकों की सुविधा के लिए यह जानकारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। 

खास बात यह है कि इसे केवल पढ़ा ही नहीं जा सकता, बल्कि स्पिकिंग मोड में सुना भी जा सकता है। एएसआई चंडीगढ़ सर्कल के अधिकारियों का कहना है कि यह पहल न केवल राखीगढ़ी के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करेगी, बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में भी इजाफा करेगी। आधुनिक तकनीक का उपयोग करके पर्यटकों को बेहतर अनुभव देने का यह प्रयास भारत में धरोहर स्थलों पर पर्यटन को एक नई दिशा देगा।

हाल की खुदाई में मिला पकी हुई ईंट का फर्श

वर्ष 2021-2024 के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई में राखीगढ़ी में अनेक महत्वपूर्ण खोजें की गईं। इनमें एक विशेष प्रकार की दीवार, जिसका निर्माण लंबी ईंटों से किया गया था और एक कमरे में पकी हुई ईंट का फर्श शामिल है। अन्य खोजों में खेल खिलौने, छलनी, विभिन्न प्रकार के औजार, पालतू जानवरों के अवशेष, तांबे और कांसे के सामान, पॉटरी, गहने और हड़प्पाकालीन लिपि युक्त मुद्राएं भी शामिल हैं। इनसे यह संकेत मिलता है कि राखीगढ़ी एक उन्नत नगरीय केंद्र था। 2023-24 में उजागर हुई सीढ़ीदार संरचना और पकी ईंटों का फर्श सार्वजनिक वास्तुकला और घरों के निर्माण की उन्नत तकनीकों का प्रमाण हैं। इन खोजों ने राखीगढ़ी को हड़प्पा सभ्यता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है।

शुरुआती काल से लेकर परिपक्व हड़प्पा काल तक के सबूत मौजूद

पहली बार वर्ष 1969 में प्रो सूरजभान के इन्वेस्टिगेशन से पता चला कि राखीगढ़ी के अवशेष और बस्तियां हड़प्पा संस्कृति की प्रकृति को दर्शाते हैं। इसके बाद एएसआई और पुणे के डेक्कन कॉलेज द्वारा किए गए शोध और उत्खनन में यह सामने आया कि राखीगढ़ी एक बड़ी बस्ती थी, जो 500 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैली हुई थी। यहां ग्यारह अलग-अलग टीले पाए गए हैं, जो वैदिक सरस्वती नदी की सहायक दृषद्वती नदी के पास स्थित थे। दृषद्वती को अब चौतांग नदी के रूप में पहचाना जाता है। वर्ष 1997-2000 के दौरान डॉ. अमरेन्द्र नाथ के निर्देशन में हुए उत्खनन से यह स्पष्ट हुआ कि राखीगढ़ी में शुरुआती हड़प्पा काल से लेकर परिपक्व हड़प्पा काल तक के लगातार विकास के सबूत मौजूद हैं।
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