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शर्मनाक: कोरोना संक्रमण से मरने वालों की अर्थी में भी हो रहा ‘खेल', मुफ्त देनी थी... खरीदवा रहे हैं
नवदीप मिश्रा, चंडीगढ़
Published by: खुशबू गोयल
Updated Fri, 28 Aug 2020 11:09 AM IST
सार
- कोरोना संक्रमित मृतकों के परिजनों से अर्थी खरीदकर लाने को कह रहे कर्मचारी
- अधिकारी बोले- जल्दी के चक्कर में खुद परिजन ही ले आते हैं अर्थी का सामान
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अर्थी का सामान
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
चंडीगढ़ स्थित जीएमसीएच-32 में कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत के बाद उनकी अर्थी के नाम पर भी खेल चल रहा है। कोरोना संक्रमितों के शवों से अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए रेडक्रॉस की ओर से अर्थी मुफ्त में देने की व्यवस्था है, लेकिन जीएमसीएच-32 में कार्यरत कर्मचारी मृतकों के परिजनों से बाहर से अर्थी की लकड़ी खरीदकर मंगवा रहे हैं।
इसके बाद अर्थी भी खुद परिजन ही तैयार कर रहे हैं। खास बात यह है कि मृतकों के परिजनों को यह जानकारी ही नहीं होती कि अर्थी रेडक्रॉस की तरफ से मुफ्त दी जा रही है। यह तो महज दो उदाहरण हैं। ज्यादातर मामलों में परिजनों से ही अर्थी का सामान मंगवाया जा रहा है। वहीं, अधिकारियों का कहना है कि शव ज्यादा होने पर परिजन ही जल्दी मचाते हैं और खुद से सामान लेकर आ जाते हैं।
सामान के साथ कफन भी हो गया चोरी
मृतक रोहित के भाई अनिल ने बताया कि अर्थी के सामान के साथ वह कफन का कपड़ा भी लेकर आए थे। जब तक उन्होंने अर्थी बनाई, तब तक कफन का कपड़ा ही गायब हो गया। काफी खोजने के बाद भी जब कफन नहीं मिला तो बाहर से दूसरा खरीदकर ले आए। उन्होंने कहा कि जीएमसीएच-32 में कोई देखने वाला नहीं है जो बता सके कि हमें क्या करना है। लोग अपने परिजन जाने के दु:ख में होते हैं और कर्मचारी जैसा बताते जाते हैं, वैसा करते जाते हैं।
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इसके बाद अर्थी भी खुद परिजन ही तैयार कर रहे हैं। खास बात यह है कि मृतकों के परिजनों को यह जानकारी ही नहीं होती कि अर्थी रेडक्रॉस की तरफ से मुफ्त दी जा रही है। यह तो महज दो उदाहरण हैं। ज्यादातर मामलों में परिजनों से ही अर्थी का सामान मंगवाया जा रहा है। वहीं, अधिकारियों का कहना है कि शव ज्यादा होने पर परिजन ही जल्दी मचाते हैं और खुद से सामान लेकर आ जाते हैं।
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सामान के साथ कफन भी हो गया चोरी
मृतक रोहित के भाई अनिल ने बताया कि अर्थी के सामान के साथ वह कफन का कपड़ा भी लेकर आए थे। जब तक उन्होंने अर्थी बनाई, तब तक कफन का कपड़ा ही गायब हो गया। काफी खोजने के बाद भी जब कफन नहीं मिला तो बाहर से दूसरा खरीदकर ले आए। उन्होंने कहा कि जीएमसीएच-32 में कोई देखने वाला नहीं है जो बता सके कि हमें क्या करना है। लोग अपने परिजन जाने के दु:ख में होते हैं और कर्मचारी जैसा बताते जाते हैं, वैसा करते जाते हैं।
200 की अर्थी का सामान एक हजार में लेकर आए
जानकारी के अभाव में और मजबूरी में परिजनों को अर्थी का सामान मनमानी कीमत पर खरीदना पड़ रहा है। रेडक्रॉस के लिए अर्थी बनाने वाले राजेश ने बताया कि 180 रुपये का सामान व 20 रुपये बनवाई के साथ 200 रुपये में पूरी अर्थी तैयार हो जाती है। वहीं, अनिल ने बताया कि उन्होंने अर्थी व अन्य सामान पर 800 रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए। वहीं रामाशीष ने बताया कि उन्हें पूरा समान एक हजार रुपये से ज्यादा का पड़ा था। दु:ख की घड़ी में लोग भी मोलभाव किए बिना सामान लेकर चले आते हैं।
कर्मचारी का दावा, नोडल ऑफिसर बोले-हमारी फाइल रुकी है
नाम न छापने के शर्त पर मोर्चरी में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि रेडक्रॉस के नोडल ऑफिसर मोहनलाल ने कहा है कि 20 हजार रुपये की अर्थियां हमने अपने पास से बनवाईं हैं और उसका बिल अभी तक पास नहीं हुआ है। इसलिए परिजनों से कहिए कि अपनी अर्थी व सामान खुद लेकर आएं। उसके बाद हम लोग उनके शव का दाहसंस्कार करवा देंगे। कोई परिजन न माने तो हमसे बात करवा दें। हम उन्हें समझा देंगे सारी बात।
वैसे भी ज्यादातर उनका फोन व्यस्त जाता है या उठाते ही नहीं हैं। कर्मचारी ने बताया कि जब तक शव को पैक करके अर्थी पर नहीं बांधा जाता है, तब तक रेडक्रॉस टीम शव को हाथ तक नहीं लगाती है। इसके लिए मोहनलाल ने पहले से ही कह रखा है। मोर्चरी में किसी भी परिजन से एक भी रुपया नहीं लिया जाता है। यहां सभी काम मुफ्त में होते हैं। अन्य किसी लेनदेन के बारे में रास्ते या शमशान घाट में परिजनों से क्या बात होती है, हमारी जानकारी में नहीं है।
कर्मचारी का दावा, नोडल ऑफिसर बोले-हमारी फाइल रुकी है
नाम न छापने के शर्त पर मोर्चरी में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि रेडक्रॉस के नोडल ऑफिसर मोहनलाल ने कहा है कि 20 हजार रुपये की अर्थियां हमने अपने पास से बनवाईं हैं और उसका बिल अभी तक पास नहीं हुआ है। इसलिए परिजनों से कहिए कि अपनी अर्थी व सामान खुद लेकर आएं। उसके बाद हम लोग उनके शव का दाहसंस्कार करवा देंगे। कोई परिजन न माने तो हमसे बात करवा दें। हम उन्हें समझा देंगे सारी बात।
वैसे भी ज्यादातर उनका फोन व्यस्त जाता है या उठाते ही नहीं हैं। कर्मचारी ने बताया कि जब तक शव को पैक करके अर्थी पर नहीं बांधा जाता है, तब तक रेडक्रॉस टीम शव को हाथ तक नहीं लगाती है। इसके लिए मोहनलाल ने पहले से ही कह रखा है। मोर्चरी में किसी भी परिजन से एक भी रुपया नहीं लिया जाता है। यहां सभी काम मुफ्त में होते हैं। अन्य किसी लेनदेन के बारे में रास्ते या शमशान घाट में परिजनों से क्या बात होती है, हमारी जानकारी में नहीं है।
रेडक्रॉस के नोडल अधिकारी बोले-हमारे पास पर्याप्त अर्थियां
सेक्टर-11 स्थित रेडक्रॉस ऑफिस में अच्छी खासी तादाद में अर्थियां रखी हुईं हैं। रेडक्रॉस के कोविड-19 नोडल ऑफिसर मोहनलाल का कहना है कि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में अर्थियां हैं। अभी भी 50 अर्थियां बनकर तैयार हैं। कई बार परिजनों को जल्दबाजी होती है तो वह स्वयं ही अर्थी व सामान लेकर आ जाते हैं। उनसे सामान लाने के लिए नहीं कहा जाता है। जीएमसीएच-32 व पीजीआई में भी अर्थियां रखवाईं गईं हैं ताकि लोगों को समस्या न हो।
हमारा काम कोरोना संक्रमित शव को पैक करना है। इसकी सूचना हम रेडक्रॉस को दे देते हैं। उसके बाद शव उठाना या शमशान घाट तक लेकर जाने का काम रेडक्रॉस का है। हमारा कर्मचारी कभी किसी परिजन को अर्थी का सामान या अन्य सामान खरीदकर लाने के लिए नहीं कहता है। यह जिम्मेदारी रेडक्रॉस की है।
- डॉ. हरीश दशारी, नोडल ऑफिसर, कोरोना, जीएमसीएच-32
हमारा काम कोरोना संक्रमित शव को पैक करना है। इसकी सूचना हम रेडक्रॉस को दे देते हैं। उसके बाद शव उठाना या शमशान घाट तक लेकर जाने का काम रेडक्रॉस का है। हमारा कर्मचारी कभी किसी परिजन को अर्थी का सामान या अन्य सामान खरीदकर लाने के लिए नहीं कहता है। यह जिम्मेदारी रेडक्रॉस की है।
- डॉ. हरीश दशारी, नोडल ऑफिसर, कोरोना, जीएमसीएच-32
केस-1: बीते 23 अगस्त को रायपुरकलां निवासी रोहित की कोरोना से मौत हो गई। रोहित का भाई अनिल और एक रिश्तेदार शव लेने जीएमसीएच-32 पहुंचे। वहां मौजूद कर्मचारियों ने कहा कि अर्थी व अन्य सामान बाहर से लेकर आइए। परिजनों ने कहा कि अर्थी तो सरकार की तरफ से मिलती है, लेकिन कर्मचारियों ने कहा कि बाहर से ही लेकर आइए।
केस-2: बीते 21 अगस्त को सेक्टर-49 सी निवासी जमुना प्रसाद की कोरोना से मौत हो गई। जमुना प्रसाद के बेटे रामाशीष ने बताया कि जीएमसीएच-32 में सुबह जब पहुंचे तो कर्मचारी ने कहा कि जब तक शव आ रहा है, बाहर से अर्थी व अन्य सामान ले आइए। रामाशीष ने बताया कि जैसे कर्मचारियों ने कहा हम सामान लेकर आ गए। हमें जानकारी नहीं थी कि रेडक्रॉस की तरफ से मुफ्त में अर्थी उपलब्ध कराई जाती है।
केस-2: बीते 21 अगस्त को सेक्टर-49 सी निवासी जमुना प्रसाद की कोरोना से मौत हो गई। जमुना प्रसाद के बेटे रामाशीष ने बताया कि जीएमसीएच-32 में सुबह जब पहुंचे तो कर्मचारी ने कहा कि जब तक शव आ रहा है, बाहर से अर्थी व अन्य सामान ले आइए। रामाशीष ने बताया कि जैसे कर्मचारियों ने कहा हम सामान लेकर आ गए। हमें जानकारी नहीं थी कि रेडक्रॉस की तरफ से मुफ्त में अर्थी उपलब्ध कराई जाती है।