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हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: जिस कर्मचारी की ईमानदारी पर संदेह, उसे नौकरी में बनाए रखना शासन के लिए खतरा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Fri, 05 Dec 2025 09:14 AM IST
सार

याची हरियाणा पुलिस में 1988 में कांस्टेबल भर्ती हुआ। करीब 37 वर्षों की सेवा के दौरान उसे कई पदोन्नति मिली, मगर अनुशासनहीनता, लापरवाही और कार्य में कोताही के आरोप लगातार उससे जुड़े रहे।

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High Court comment Retaining employee whose integrity is doubtful threat to governance
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि जिस कर्मचारी की ईमानदारी पर वरिष्ठ अधिकारी उंगली उठा दें, उसे सरकारी तंत्र में बनाए रखना शासन के लिए खतरा है। उसका होना पूरी प्रशासनिक मशीनरी की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा देगा।
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कोर्ट ने यह कड़ी टिप्पणी हरियाणा पुलिस के एक कर्मचारी की याचिका को खारिज करते हुए की। इस याचिका में उसने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को चुनौती दी थी।
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सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि याची हरियाणा पुलिस में 1988 में कांस्टेबल भर्ती हुआ। करीब 37 वर्षों की सेवा के दौरान उसे कई पदोन्नति मिली, मगर अनुशासनहीनता, लापरवाही और कार्य में कोताही के आरोप लगातार उससे जुड़े रहे। 17 नवंबर 2025 को विभाग ने उन्हें 55 वर्ष पूरे होने पर पंजाब पुलिस रूल्स के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया। इसके लिए बकायदा उसे अगस्त में
नोटिस भी भेजा गया।

विभाग के इसी फैसले के खिलाफ दायर याचिका में उक्त कर्मी ने कहा कि विभागीय जांच में दोषी होने पर अधिकतम सजा चार वेतन वृद्धि रोकने का प्रावधान है। उसने एसीआर में की गई नकारात्मक टिप्पणियों को चुनौती देते हुए कहा कि इसके आधार पर भी अनिवार्य रिटायरमेंट का आदेश देना मनमाना और दंडात्मक कदम है। यह फैसला सेवा नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

इस पर हरियाणा सरकार के वकील ने रिकाॅर्ड पेश कर बताया कि बार-बार लापरवाही, अनुशासनहीनता और लगातार गैरहाजिरी से विभाग बुरी तरह परेशान था। एसीआर में इंटेग्रिटी को ‘अविश्वसनीय’ दर्ज किया गया था और यही सरकारी निर्देशों के अनुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। इसके बाद जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने कहा कि रिकाॅर्ड से स्पष्ट है कि कर्मचारी की पूरी सेवा, दंडात्मक कार्रवाइयों और एसीआर की समीक्षा करने के बाद ही निर्णय लिया गया। इस आदेश में कोई दुर्भावना या व्यक्तिगत शत्रुता का आरोप साबित नहीं होता।
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