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मालवा का दर्द: पंजाब को 15 मुख्यमंत्री देने वाला यह क्षेत्र कैसे पिछड़ा, सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें भी यहीं

अभिषेक वाजपेयी, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: ajay kumar Updated Wed, 19 Jan 2022 11:01 AM IST
सार

मालवा भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) का गढ़ है लेकिन इसके बाद भी यहां से एसएसएम को ज्यादा फायदा होने की संभावना नहीं है। किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां पहले ही मोर्चा का समर्थन या विरोध नहीं करने की घोषणा कर चुके हैं।

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How to backward Malwa which gave 15 chief ministers to Punjab
पंजाब
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पंजाब में मालवा को सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। राज्य की कुल 117 विधानसभा सीटों में से सबसे अधिक 69 सीटें इसी क्षेत्र की हैं। साथ ही मालवा को मुख्यमंत्री की नर्सरी भी कहा जाता है। इसका कारण है कि पंजाब के 18 में से 15 मुख्यमंत्री यहीं से थे। इसके बाद भी यह माझा और दोआबा से विकास की दौड़ में काफी पिछड़ा हुआ है। क्षेत्रफल और विधानसभा सीट के लिहाज से पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के बाद भी सूबे के नेताओं की उदासीनता का शिकार ही रहा है।

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दोआबा और माझा में जितना विकास होना चाहिए था उतना मालवा में नहीं हो पाया है। किसी भी क्षेत्र के विकास में साक्षरता दर और महिला-पुरुष (लिंगानुपात) के हिसाब से मुख्य बिंदु माना जाता है। दोनों बिंदुओं पर भी मालवा काफी पिछड़ा हुआ है। मालवा की साक्षरता दर 72.3 प्रतिशत है, जबकि दोआबा की 81.48 प्रतिशत और माझा की 75.9 प्रतिशत है। यदि यह कहा जाए कि मालवा में रहने वाले लोग दोआबा और माझा के मुकाबले कम पढ़े-लिखे हैं। साथ ही लिंगानुपात के हिसाब से भी मालवा इन दोनों क्षेत्रों में पीछे है। इसके अलावा यहां किसान आत्महत्याओं, कैंसर की बढ़ती बीमारी, अपर्याप्त पेयजल, रेत की बढ़ती कीमतें, कपास की फसल पर लाल कीट के बढ़ते हमले, बेरोजगारी और बिगड़ती कानून व्यवस्था जैसी प्रमुख समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। 
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खेती किसानी के साथ ही औद्योगिक दृष्टि से मजबूत पंजाब के पिछड़े मालवा के लोगों का 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में क्या रुख रहने वाला होगा, यह फैसला भविष्य के गर्त में छिपा है। हालांकि कुछ सियासी दिग्गजों का कहना है कि यहां के लोगों में अपनी समस्याओं को लेकर बहुत गुस्सा है। इस कारण वह चुनाव में पारंपरिक दलों को सत्ता के बाहर करने का मन बना चुके हैं।

2017 में कांग्रेस को दी थी जीत की राह

राजनीतिक दृष्टि से मालवा शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का पारंपरिक गढ़ माना जाता है। इसके बाद भी 2017 में पारंपरिक गढ़ में दोनों दलों को सिर्फ आठ सीटों पर विजय मिल पाई, जबकि कांग्रेस ने 40 सीटों पर कब्जा कर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। आप को 18 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा।

मालवा में पंजाब के 15 जिले
पंजाब के कुल 23 जिलों में 15 जिले मालवा के हैं। इनमें फिरोजपुर, मुक्तसर, फरीदकोट, मोगा, लुधियाना, मलेर कोटला, बठिंडा, मानसा, संगरूर, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, एसएएस नगर, रोपड़, बरनाला और फाजिल्का शामिल हैं। सबसे बड़ा भौगोलिक क्षेत्र होने के साथ ही यहां के किसान सबसे अधिक कपास उगाते हैं।

मलेरकोटला सबसे नया जिला
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मालवा के मलेरकोटला को जिले का दर्जा दिया था। इसके बाद भी यहां समस्याएं जस की तस हैं। सरकारी योजनाओं का अच्छा क्रियान्वयन न होने के कारण मलेरकोटला में जमीनी स्तर पर ज्यादा काम नहीं हो पाया। यही वजह है कि यहां नशे की दवाओं के खतरे और बढ़ती बेरोजगारी के अलावा, सड़क का बुनियादी ढांचा अभी भी खराब हालात में है। पिछले 30 वर्षों से सत्ता में पारंपरिक दल जल-जमाव की समस्या को हल करने में भी विफल रहे हैं।

दलितों और किसानों का मिश्रण
मालवा बेल्ट किसानों और दलितों का मिश्रण है। यहां धर्म अभी महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र के दो जिले बठिंडा और मानसा के लोगों को राजनीतिक दल मूक मतदाता कहते हैं। यह उम्मीदवारों के लिए चुनाव के समय परेशानी खड़ी करते हैं। इस बार यहां कांग्रेस, शिअद-बसपा, भाजपा-पीएलसी-शिअद (संयुक्त), आप और संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) गठबंधन के बीच मुकाबला है।

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