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एनसीडी रजिस्ट्री की रिपोर्ट: चंडीगढ़ के युवाओं में तेजी से बढ़ रहा स्ट्रोक, महिलाओं में मौत का खतरा ज्यादा

वीणा तिवारी, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Mon, 24 Nov 2025 09:32 AM IST
सार

पीजीआई के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के सहयोग से तैयार रिपोर्ट के अनुसार स्ट्रोक के शुरुआती लक्षणों में कमजोरी, चेहरे का टेढ़ा पड़ना और बोली का लड़खड़ाना सबसे आम संकेत रहे।  

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NCD Registry Report Stroke rising rapidly among Chandigarh youth higher risk of death in women
ब्रेन - फोटो : Freepik.com
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विस्तार
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स्ट्रोक अब केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही। चंडीगढ़ में 19–44 वर्ष के युवाओं में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जबकि महिलाओं में स्ट्रोक से मौत की दर पुरुषों से कहीं अधिक पाई गई है। चंडीगढ़ एनसीडी रजिस्ट्री (जुलाई 2018–दिसंबर 2021) ने शहर में स्ट्रोक की भयावह तस्वीर सामने रखी है।

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पीजीआई के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के सहयोग से तैयार रिपोर्ट के अनुसार स्ट्रोक के शुरुआती लक्षणों में कमजोरी, चेहरे का टेढ़ा पड़ना और बोली का लड़खड़ाना सबसे आम संकेत रहे। कुल 554 मरीजों में से 41.5% को अचानक कमजोरी, 35.4% का चेहरा टेढ़ा हुआ जबकि हर तीसरा मरीज (33–35%) डिसआर्थ्रिया यानी लड़खड़ाती बोली के साथ अस्पताल पहुंचा। 19.9% मरीज बेहोशी की हालत में लाए गए। वहीं क्लीनिकल जांच में 8% से अधिक में हेमिआनोपिया (आधी दृष्टि खो जाना) पाया गया और 23% पुरुष व 18% महिलाएं मोटर इम्पेयरमेंट (शरीर के एक या एक से अधिक अंगों की मांसपेशियों में कमज़ोरी, नियंत्रण की कमी या पूर्ण पक्षाघात) से प्रभावित रहीं।

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74.9% इस्केमिक स्ट्रोक, महिलाओं में मौत की दर ज्यादा

विभाग के प्रो. जेएस ठाकुर ने बताया कि रिपोर्ट के अनुसार, 74.9% केस इस्केमिक स्ट्रोक जबकि 25.1% केस हेमरेजिक स्ट्रोक के थे। उम्र की बात करें तो पुरुषों में 45–69 वर्ष और महिलाओं में 70 वर्ष से अधिक उम्र का वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। एज-अडजस्टेड रेट के अनुसार महिलाओं में मृत्यु दर 16.43 प्रति लाख, जबकि पुरुषों में 10.09 प्रति लाख रही। यानी महिलाओं के लिए स्ट्रोक कहीं अधिक घातक साबित हुआ।

हाइपरटेंशन सबसे बड़ा जोखिम, हर दूसरे मरीज में मिली बीमारी

जोखिम कारकों में हाइपरटेंशन 52% मामलों में मिला जबकि डायबिटीज 27%, हृदय रोग 12% और पहले स्ट्रोक का इतिहास 11.6% रहा। चौंकाने वाली बात यह रही कि 28% मरीजों का कोई रोग इतिहास दर्ज ही नहीं था जो रिकॉर्डिंग सिस्टम में गंभीर खामियों की ओर इशारा करता है।

इलाज भी सवालों के घेरे में

510 मरीजों से मिली जानकारी बताती है कि सिर्फ 54.3% मरीजों को ही स्ट्रोक यूनिट में इलाज मिला। एक्यूट ट्रीटमेंट केवल 31% तक पहुंच पाया। प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट (एंटीकोआगुलेंट, एंटीप्लेटलेट, स्टेंटिंग आदि) सिर्फ 7% मरीजों को मिला। हेमरेजिक स्ट्रोक में गहन इलाज मात्र 4-5% मामलों में दर्ज हुआ। यह स्थिति बताती है कि इलाज की उपलब्धता अभी भी काफी सीमित है।
कम उम्र की डायबिटीज बढ़ाएगी स्ट्रोक का खतरा

रिपोर्ट के अनुसार 54 युवा डायबिटीज मरीजों में 80% से अधिक टाइप-1 डायबिटीज के मामले सामने आए। इनमें 84% पुरुष और 68% महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र की थीं। विशेषज्ञों का मानना है कि कम उम्र में डायबिटीज होना, आगे चलकर स्ट्रोक जैसे गंभीर रोगों का जोखिम कई गुना बढ़ा देता है।

लक्षण पहचानें, तुरंत पहुंचें अस्पताल

रिपोर्ट बताती है कि शहर में स्ट्रोक का बोझ लगातार बढ़ रहा है। लक्षणों को देर से पहचानना, इलाज की सीमित उपलब्धता, रिकॉर्डिंग की कमियां और तेजी से बढ़ते जोखिम कारक इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बना रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चेहरा टेढ़ा होना, बोली का लड़खड़ाना और अचानक कमजोरी जैसे लक्षण दिखते ही तुरंत अस्पताल पहुंचना ही जीवन बचाने का सबसे बड़ा उपाय है।

फैक्ट शीट

10 में से 4 मरीज को कमजोरी, हर तीसरे को लड़खड़ाती बोली
554 मरीजों में कमजोरी: 41.5%
चेहरा टेढ़ा पड़ना: 35.4%
स्लर्ड स्पीच: 18.6%
बेहोशी: 19.9%
अचानक शुरुआत: 1.1%

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