Bilaspur: 'जांच में खामी के आधार पर सजा से छूट नहीं दी जा सकती', आरोपियों की याचिका पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने कहा कि कार्रवाई के दौरान निर्धारित प्रक्रिया में कमी महत्वपूर्ण नहीं है। आरोपी के कब्जे से मादक पदार्थ बरामद हुए हों और अन्य साक्ष्य पुख्ता हैं तो केवल प्रक्रिया की खामी के आधार पर आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता।

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक प्रकरण में फैसला दिया कि अगर साक्ष्य विश्वसनीय हैं तो जांच प्रक्रिया में खामी के आधार पर सजा से छूट नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने नारकोटिक्स एक्ट में दो आरोपियों की 20 साल सजा और 2 लाख रुपये का जुर्माना बरकरार रखा है।

विशेष न्यायाधीश, महासमुंद ने अभियुक्तों को 20 वर्ष का कठोर कारावास और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारियों ने गांजा की बरामदगी और कब्जे का पर्याप्त प्रमाण दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की बेंच ने स्पष्ट किया कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 52-ए के तहत कार्रवाई के दौरान निर्धारित प्रक्रिया में कमी महत्वपूर्ण नहीं है। आरोपी के कब्जे से मादक पदार्थ बरामद हुए हों और अन्य साक्ष्य पुख्ता हैं तो केवल प्रक्रिया की खामी के आधार पर आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता।
10 सितंबर 2020 को थाना कोमाखान महासमुंद जिले के निरीक्षक प्रदीप मिंज को सूचना मिली कि उड़ीसा से बिहार गांजा ले जाया जा रहा है। पुलिस ने टेमरी फॉरेस्ट बैरियर पर ट्रक को रोका, जिसमें दो व्यक्ति मोहम्मद कालूत मंसुली और महेश कुमार पासवान थे। ट्रक से 183 पैकेट्स में भरा कुल 913 किलो गांजा बरामद हुआ, जो 34 बोरियों में छुपा कर रखा गया था। मौके पर ही सौ-सौ ग्राम के दो सैंपल लिए गए और शेष सामग्री को जब्त कर लिया गया। फॉरेंसिक जांच में इसकी पुष्टि गांजा के रूप में हुई। आरोपियों को मौके पर गिरफ्तार कर उनके खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत चार्जशीट दायर की गई। आरोपियों के वकील का कहना था कि अभियोजन पक्ष (पुलिस) द्वारा गिरफ्तारी में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अभियोजन साक्ष्यों में विरोधाभास और कमियां थीं। सैंपलिंग प्रक्रिया में केंद्र सरकार के स्टैंडिंग ऑर्डर का पालन नहीं हुआ, क्योंकि पहले सभी गांजे को मिलाकर एकरूप किया और फिर सैंपल लिया गया, जो गलत प्रक्रिया है।
राज्य के अधिवक्ता ने तर्क रखा कि अभियोजन ने सभी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया। आरोपियों के कब्जे से गांजा बरामद हुआ और ट्रायल कोर्ट ने विश्वसनीय साक्ष्यों के आधार पर उचित निर्णय दिया। भले ही एनडीपीएस एक्ट में उल्लेखित प्रक्रिया का पालन न हुआ हो, लेकिन बरामदगी और कब्जे को लेकर प्रस्तुत साक्ष्य न्यायालय को संतुष्ट करते हैं, तो न्यायालय केवल प्रक्रियागत खामियों के आधार पर अभियुक्त को बरी नहीं करेगा। कोर्ट ने माना कि स्वतंत्र गवाह अपने बयान से मुकर गए, लेकिन जांच अधिकारी का बयान सुसंगत और रिकॉर्ड्स से पुष्ट था। कोर्ट ने कहा कि घटना स्थल सार्वजनिक सड़क पर था, इसलिए धारा 42 (बिना वारंट के प्रवेश, तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी) की आवश्यकता नहीं थी। धारा 43 (सार्वजनिक स्थानों पर जब्ती और गिरफ्तारी) के तहत की गई कार्रवाई भी विधिसंगत थी। धारा 50, जो केवल व्यक्ति की तलाशी के मामलों में लागू होती है, वाहन की तलाशी पर लागू नहीं होती।