Assembly Election Results 2022: "आप" की जीत दे रही नए राजनीतिक युग का संकेत, बहुत कुछ बदलेगा भारतीय राजनीति में
पिछले तीस सालों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने एक के बाद एक दो बार जीत दर्ज नहीं की है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सालों बाद ऐसा होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखना भी अस्वाभाविक नहीं है। यूपी की जीत से मोदी-योगी ब्रांड और मजबूत होगा।
पिछले तीस सालों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने एक के बाद एक दो बार जीत दर्ज नहीं की है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सालों बाद ऐसा होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखना भी अस्वाभाविक नहीं है। यूपी की जीत से मोदी-योगी ब्रांड और मजबूत होगा।

विस्तार
संप्रेषण, शासन और राशन इसके अलावा नए-नवेले लोगों का ज़मीन पर खुद को साबित करना, यही मूलमंत्र है इस चुनाव का। धराशायी होता विपक्ष न तो अपने चेहरे को बचा पा रहा है, न ही अपनी बात समझा पा रहा है।

पंजाब और उत्तर प्रदेश को अगर सामने रखकर अपनी बात कहें तो मैं यह कह सकता हूं कि अरबिंद केजरीवाल के सामने भी भाजपा उसी चुनौती की तरह है जैसे अन्य के लिए, लेकिन केजरीवाल और उनकी टीम ने जमीन पर उतरकर काम किया और लोगों तक वे पहुंच पाए, नतीजा सामने है।
नई शक्ति के तौर पर उभरती आम आदमी पार्टी
दरअसल, एक तरफ भाजपा पूरे देश के राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए चुनौती बन रही है। पंजाब में जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस को आप ने चित किया है, वह 70 साल के परिपक्व लोकतंत्र के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।
ऐसा दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हो चुका है। जब सारा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आंधी में बह चुका था, राजनीति के बड़े-बड़े किले ध्वस्त हो चुके थे और देश में भगवा रंग लहराने लगा था तब केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिल्ली में भाजपा को धूल चटा दी थी।
दूसरी तरफ भाजपा अपने एजेंडे पर हर तरह से कायम है। आज चुनाव परिणाम को मद्देनज़र रखते हुए भाजपा के लिए अगर दो शब्द देने पड़ें तो वह है- राशन और प्रशासन। राशन को सारे देश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। गरीब को मुफ्त राशन अमृत से कम नहीं। राशन और खाताधारकों के खाते में डायरेक्ट पैसे आने से भाजपा का एक शांत मतदाता (साइलेंट वोटर) वर्ग तैयार हुआ है जिसका सिर्फ क़यास लगाया जा सकता है लेकिन उन्हें चिन्हित कर पाना कठिन है।
मोदी-योगी का जलवा और चुनाव
चुनाव परिणाम बताते हैं कि इस योजना का क्या असर है। दूसरी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की अभेद्य छवि तिस पर 5 साल का योगी प्रशासन। भारतीय लोकतंत्र की उम्र 70 साल से ज्यादा हो चुकी है और जब बहुदलीय शासन प्रणाली ने आकार ले लिया हो और किसी एक दल को बहुमत मिलना आसान न हो, ऐसे में केंद्र- राज्य में भाजपा लगातार विजय पर विजय हासिल किए जा रही है तो इसे सिर्फ 70 सालों की ऊब से नहीं मापा जा सकता।
पिछले तीस सालों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने एक के बाद एक दो बार जीत दर्ज नहीं की है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सालों बाद ऐसा होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के समीफाइनल के रूप देखना भी अस्वाभाविक नहीं है। यूपी की जीत से मोदी-योगी ब्रांड और मजबूत होगा।
किसान आंदोलन का कोई फर्क नहीं पड़ा जबकि कांग्रेस उसके समर्थन में कड़ी थी, अगर पड़ा भी तो पंजाब में, जिसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ। कांग्रेस अपनी विफलता की राह पर जिस तरह से अग्रसर है वह आम आदमी पार्टी के लिए एक स्वर्णिम अवसर है। राजनीतिक पंडित तो आने वाले दस सालों में आप को एक मजबूत विपक्ष के रूप में देख रहे हैं।

कांग्रेस के लिए बढ़ती राजनैतिक चुनौतियां
कांग्रेस के पास न मोदी- योगी के मुकाबले कोई प्रभावशाली चेहरा है, न वह अपनी बात जनता को समझा पा रही है। कांग्रेस की एक साॅफ्ट हिंदुत्व की भी छवि रही है जो मोदी के उभार के साथ लगातार कम होती गई और अब तो ऐसा लगता है वह छवि बची भी नहीं।
भाजपा जब से सत्ता में आई है तब से वह कांग्रेस पर हमलावर रही है और एक तरह से यह कहें कि उन्हें हिंदू विरोधी साबित करने में सफल भी रही है। आम आदमी पार्टी का उभार कांग्रेस के लिए एक और बड़ी चुनौती है। अब उसे न सिर्फ भाजपा से लड़ना है बल्कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक रथ को रोकना भी है।
यह सही है कि आम आदमी पार्टी का राजनीति में प्रवेश किसी वैचारिक आंदोलन से नहीं हुआ बल्कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली हुई पार्टी है। भ्रष्टाचार एक मुद्दा है जो तात्कालिक भी हो सकता है और समय के साथ खत्म भी हो सकता है लेकिन राजनीतिक दल दीर्घकालिक विचारों की नींव पर ही टिके होते हैं। आम आदमी पार्टी घोषित रूप से कोई वैचारिक दल नहीं है लेकिन अघोषित रूप से वह लिबरलिज्म को अपनाती जा रही है, जो कि कांग्रेस की वैचारिक जमीन है।
बदल रही है देश की राजनीति
आप कार्यकर्ता जनता के बीच अपने काम और भ्रष्टाचार को लेकर जाते हैं और हर जाति-वर्ग और मजहब के लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं। यह आने वाले दिनों में कांग्रेस की रही सही जमीन भी हड़प सकते हैं।
भाजपा के विजय अभियान का कारण सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व नहीं हो सकता। चूँकि वे जनभावनाओं की राजनीति करते हैं इसलिए अपनी बात जनता तक आसानी से पहुंचा सकते हैं और मोदी-योगी तो कुशल वक्ता भी हैं। इसके अलावा गरीबों को फ्री राशन बांटना, किसानों के खाते में हर चार महीने में डायरेक्ट 2000 रूपये ट्रांसपर करना भी बहुत बड़ा कारण है।
इस योजना का सबसे बड़ा जो असर हुआ है वह यह कि लाभार्थी पारंपरिक रूप से भले ही अन्य पार्टियों मसलन सपा, बसपा का वोटर हो लेकिन उसके मन में इस लाभ का गहरा असर है और उसमें से कई भाजपा साइलेंट वोटर बन जाते हैं। विपक्ष के पास फिलहाल इस योजना की काट नहीं है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं।