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लिंगानुपात की भयावह तस्वीर:11 युवतियों से विवाह के लिए 1900 आवेदन, क्या बिगड़ गया है सामाजिक ताना-बाना?

Vinod Patahk विनोद पाठक
Updated Mon, 07 Jul 2025 09:41 PM IST
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सार

  • संयुक्त राष्ट्र की वर्ष 2020 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2055 तक 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में लगभग 10 प्रतिशत तक 'सिंगल फॉर लाइफ' होने की संभावना है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति हजार पुरुषों पर 943 स्त्रियां हैं।

mass wedding in Jaipur 1,900 men interviewed to marry 11 young women
युवतियों के विवाह के लिए प्रदेश भर के युवकों से मांगे गए थे आवेदन। - फोटो : Adobe Stock

विस्तार
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पिछले दिनों राजस्थान से एक ऐसी खबर आई, जिसके विषय को लेकर हम सब चिंता तो बहुत करते हैं, लेकिन हालात सुधारने हैं, इस पर कोई भी कार्य नहीं हो रहा है। दरअसल, राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने निर्वासित, उत्पीड़ित और उपेक्षित 11 युवतियों के विवाह के लिए प्रदेशभर के युवकों से आवेदन मांगे थे। आश्चर्यजनक बात यह है कि 1900 से अधिक युवकों के आवेदन सरकार को प्राप्त हुए।

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हालांकि, राजस्थान सरकार ने 11 वरों का चयन बिल्कुल वैसे ही किया, जैसे एक माता-पिता अपनी बेटी के लिए वर ढूंढते हैं, लेकिन सोचनीय विषय यह है कि इतने अधिक आवेदन आना कहीं न कहीं देश में लिंगानुपात की भयावह तस्वीर को पेश कर रहा है। क्या वाकई अब स्थितियां हाथ से निकल गई हैं? क्या सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है? 
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वर्तमान में हमारे पास वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े हैं, जो बताते हैं कि देश में प्रति हजार पुरुषों पर 943 स्त्रियां हैं। आधुनिक अनुमानों के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रति हजार पुरुष 949 और शहरी भारत में प्रति हजार पुरुष 929 स्त्रियां हैं। अगले साल यानी 2026 में जनगणना होने जा रही है, जिसके बाद वर्तमान की वास्तविक तस्वीर सामने आएगी।

एक अनुमान यह भी है कि लिंगानुपात के असंतुलन के कारण देश में बड़ी संख्या में पुरुष अविवाहित रह जाते हैं। यह समस्या हाल-फिलहाल की नहीं, बल्कि कई दशकों से चली आ रही है। हालांकि, इसके अलावा भी कई कारण हैं, जिनके चलते बड़ी संख्या में पुरुषों को विवाह के लिए युवतियां नहीं मिल पाती हैं। 

'सिंगल फॉर लाइफ' की बढ़ती आशंका

संयुक्त राष्ट्र की वर्ष 2020 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2055 तक 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में लगभग 10 प्रतिशत तक 'सिंगल फॉर लाइफ' होने की संभावना है। इसके सामाजिक और आर्थिक कारणों पर नजर डालें तो पाएंगे कि जिन पुरुषों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है या जिनके पास रोजगार या संपत्ति नहीं है, उनका विवाह होना बेहद कठिन हो जाता है। ऐसे पुरुषों को लड़की वाले कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण ठुकरा रहे हैं।

दूसरा, ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में युवा निकल रहे हैं। वो या तो निर्माण मजदूर हैं, ड्राइवर हैं या अस्थाई जीवन जी रहे हैं, इसके कारण भी उनका विवाह नहीं हो पा रहा है। 

समाजशास्त्रियों का कहना है कि भारत अब उस सामाजिक संक्रमण के दौर में है, जहां पारंपरिक विवाह प्रणाली और आधुनिक जीवनशैली के बीच टकराव पैदा हो रहा है। युवा शादी के लिए परिवार की सहमति और जाति की मर्यादा चाहते हैं, लेकिन निजी पसंद और आत्मनिर्भरता को भी प्राथमिकता देने लगे हैं।

विवाह को लेकर बदलती सोच

आज विवाह केवल उम्र या लिंग पर आधारित नहीं, बल्कि आर्थिक स्थातित्व, शैक्षणिक योग्यता और सामाजिक छवि भी महत्वपूर्ण हो गई है। यही कारण है कि बड़े पैमाने पर अविवाहित रह गए युवकों में मानसिक अवसाद, नशे की प्रवृत्ति, सामाजिक गड़बड़ी और अपराधों का खतरा बढ़ जाता है। 

हालांकि, ऐसा नहीं है कि केवल पुरुष अविवाहित रह जाते हैं, बल्कि महिलाओं में भी अविवाहित रहने के आंकड़े बढ़ रहे हैं। इसका विशेष कारण लड़कियों की उच्च शिक्षा, नौकरी और करियर पर ध्यान देना है। बहुत सी महिलाएं शादी को विकल्प की तरह दिखती हैं, न की सामाजिक अनिवार्यता के रूप में।

युवतियों के अविवाहित रहने पर समाजशास्त्रियों का कहना है कि भारत में स्वैच्छिक विवाह और परिस्थितिजन्य विवाह, दोनों बढ़ रहे हैं। महिलाएं पहले से अधिक स्वतंत्र हैं, लेकिन सामाजिक ढांचे में बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है। यह बदलाव भारतीय परिवार व्यवस्था के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका है। अब भी बहुत से माता-पिता अपनी बेटियों की शादी को प्रतिष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी मानते हैं। जब बेटियां शादी में रुचि नहीं लेतीं तो परिवार में तनाव का कारण बनता है। 

वैसे, अविवाहित महिलाएं आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन वृद्धावस्था, सामाजिक समर्थन और अकेलेपन के संदर्भ में उन्हें भविष्य को लेकर अधिक तैयारी करनी होती है। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक सुरक्षा प्रणाली कमजोर है, वहां यह चिंता वास्तविक है।

विवाह जैसी संस्था को लेकर यदि भारतीय समाज को देखा जाए तो आज हम एक चौराहे पर खड़े हैं, जहां एक ओर आधुनिकता और स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर परंपरा और सामाजिक अपेक्षाएं। यह बदलाव केवल संख्याओं का नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक मूल्यतंत्र का पुनर्गठन है।


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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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