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ऑपरेशन सिन्दूर: पहलगाम में बहा लहू, टीवी चैनलों पर मची TRP की होड़
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सार
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को गुप्त रूप से अंजाम दिया। ऑपरेशन सफल रहा, पर भारतीय टीवी मीडिया की सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने गोपनीयता भंग की, जिससे पाकिस्तान को प्रोपेगैंडा का मौका मिला। यह घटना युद्ध के समय सूचना प्रबंधन और जिम्मेदार मीडिया आचार संहिता की अहमियत को रेखांकित करती है।

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद तैनात पुलिस(फाइल फोटो)
- फोटो : अमर उजाला
विस्तार
कश्मीर की वादियों में बसी शांति उस दोपहर टूट गई जब बैसारन घाटी में पांच सशस्त्र आतंकियों ने निर्ममता से 26 लोगों की जान ले ली। इस हमले में एक स्थानीय गाइड ने भी अपनी जान गंवा दी, जो पर्यटकों को बचाने की कोशिश कर रहा था। यह हमला महज आतंकी कार्रवाई नहीं थी।
यह भारत की संप्रभुता और कश्मीर के पुनरुद्धार पर सीधा हमला था। जवाब में भारत ने चुपचाप और सटीक ढंग से ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया, एक गुप्त सैन्य अभियान जिसका उद्देश्य सीमापार आतंकी ढांचे को ध्वस्त करना था।
ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य केवल आतंकियों को मार गिराना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी था कि कार्रवाई के दौरान पाकिस्तान को कोई खुला बहाना न मिले। इसीलिए शुरूआती दिनों में सरकार और सेना ने आधिकारिक चुप्पी बरती। लेकिन भारतीय टीवी मीडिया ने संयम की जगह सनसनी को चुना।
टीवी चैनलों ने “एक्सक्लूसिव” खबरों के नाम पर अटकलें, फर्जी वीडियो और सेना की यूनिट्स तक की जानकारी प्रसारित कर दी। कुछ चैनलों ने पुराने NATO फुटेज को भारतीय कार्रवाई बताकर दिखाया, जिससे ना सिर्फ़ भ्रम फैला, बल्कि ऑपरेशन की गोपनीयता भी खतरे में पड़ गई।
टीवी पर चली अफवाहों ने पाकिस्तान को मौका दिया कि वह भारत पर प्रोपेगैंडा फैलाने का आरोप लगाए। नियंत्रण रेखा पर ड्रोन तैनात हुए, और भारत के कूटनीतिज्ञों को विदेशों में जवाब देना पड़ा कि जो रिपोर्ट्स टीवी पर चल रही हैं, वह कितनी सही हैं।
सेना को आधिकारिक बयान देने पड़े, जिससे ध्यान कार्रवाई से हटकर डैमेज कंट्रोल पर आ गया। जंग अब केवल मैदानों में नहीं लड़ी जाती, 21वीं सदी में युद्ध केवल बंदूक से नहीं लड़ा जाता। आज की लड़ाई सूचना के मोर्चे पर भी है। जिस देश की मीडिया अपनी ही सेना की रणनीति को टीवी डिबेट की होड़ में उजागर कर दे, वहां जीत भी नुकसान में बदल सकती है।
अमेरिका और इजराइल जैसे देशों में मीडिया को युद्ध या सैन्य अभियान के दौरान सख्त गाइडलाइंस और एम्बार्गो का पालन करना होता है। भारत में ऐसा कोई नियमन नहीं है। नतीजा टीवी रिपोर्टर अनाम 'सूत्रों' के हवाले से अफवाहें फैलाते हैं, और सोशल मीडिया उन्हें रॉकेट की रफ्तार से फैला देता है।
जब फर्जी वीडियो, गलत बयानों और भावनात्मक हेडलाइनों की बाढ़ आई, तब सिर्फ आज तक टीवी ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। बाकी TV चैनलों ने या तो चुप्पी साधी या फिर ध्यान भटकाने की कोशिश की।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गैर-मोल है और होनी भी चाहिए। लेकिन युद्ध जैसे संवेदनशील समय में स्वतंत्रता बिना जिम्मेदारी के देश के लिए खतरा बन जाती है। एक गलत रिपोर्ट सैनिकों की जान पर बन सकती है, एक झूठा वीडियो दुश्मन को रणनीति समझा सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर रणनीतिक रूप से सफल रहा। लेकिन इससे मिली सीख कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है, भारत को न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करनी होगी, बल्कि अपने सूचना तंत्र को भी सशक्त और जिम्मेदार बनाना होगा। यह समय है जब देश को एक आचार संहिता की जरूरत है, खासकर जब देश युद्ध जैसी परिस्थितियों से जूझ रहा हो।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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यह भारत की संप्रभुता और कश्मीर के पुनरुद्धार पर सीधा हमला था। जवाब में भारत ने चुपचाप और सटीक ढंग से ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया, एक गुप्त सैन्य अभियान जिसका उद्देश्य सीमापार आतंकी ढांचे को ध्वस्त करना था।
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ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य केवल आतंकियों को मार गिराना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी था कि कार्रवाई के दौरान पाकिस्तान को कोई खुला बहाना न मिले। इसीलिए शुरूआती दिनों में सरकार और सेना ने आधिकारिक चुप्पी बरती। लेकिन भारतीय टीवी मीडिया ने संयम की जगह सनसनी को चुना।
टीवी चैनलों ने “एक्सक्लूसिव” खबरों के नाम पर अटकलें, फर्जी वीडियो और सेना की यूनिट्स तक की जानकारी प्रसारित कर दी। कुछ चैनलों ने पुराने NATO फुटेज को भारतीय कार्रवाई बताकर दिखाया, जिससे ना सिर्फ़ भ्रम फैला, बल्कि ऑपरेशन की गोपनीयता भी खतरे में पड़ गई।
टीवी पर चली अफवाहों ने पाकिस्तान को मौका दिया कि वह भारत पर प्रोपेगैंडा फैलाने का आरोप लगाए। नियंत्रण रेखा पर ड्रोन तैनात हुए, और भारत के कूटनीतिज्ञों को विदेशों में जवाब देना पड़ा कि जो रिपोर्ट्स टीवी पर चल रही हैं, वह कितनी सही हैं।
सेना को आधिकारिक बयान देने पड़े, जिससे ध्यान कार्रवाई से हटकर डैमेज कंट्रोल पर आ गया। जंग अब केवल मैदानों में नहीं लड़ी जाती, 21वीं सदी में युद्ध केवल बंदूक से नहीं लड़ा जाता। आज की लड़ाई सूचना के मोर्चे पर भी है। जिस देश की मीडिया अपनी ही सेना की रणनीति को टीवी डिबेट की होड़ में उजागर कर दे, वहां जीत भी नुकसान में बदल सकती है।
अमेरिका और इजराइल जैसे देशों में मीडिया को युद्ध या सैन्य अभियान के दौरान सख्त गाइडलाइंस और एम्बार्गो का पालन करना होता है। भारत में ऐसा कोई नियमन नहीं है। नतीजा टीवी रिपोर्टर अनाम 'सूत्रों' के हवाले से अफवाहें फैलाते हैं, और सोशल मीडिया उन्हें रॉकेट की रफ्तार से फैला देता है।
जब फर्जी वीडियो, गलत बयानों और भावनात्मक हेडलाइनों की बाढ़ आई, तब सिर्फ आज तक टीवी ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। बाकी TV चैनलों ने या तो चुप्पी साधी या फिर ध्यान भटकाने की कोशिश की।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गैर-मोल है और होनी भी चाहिए। लेकिन युद्ध जैसे संवेदनशील समय में स्वतंत्रता बिना जिम्मेदारी के देश के लिए खतरा बन जाती है। एक गलत रिपोर्ट सैनिकों की जान पर बन सकती है, एक झूठा वीडियो दुश्मन को रणनीति समझा सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर रणनीतिक रूप से सफल रहा। लेकिन इससे मिली सीख कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है, भारत को न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करनी होगी, बल्कि अपने सूचना तंत्र को भी सशक्त और जिम्मेदार बनाना होगा। यह समय है जब देश को एक आचार संहिता की जरूरत है, खासकर जब देश युद्ध जैसी परिस्थितियों से जूझ रहा हो।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।