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बांग्लादेश डायरीः अर्थशास्त्र से परे बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव और रणनीतिक सवाल

N Arjun एन अर्जुन
Updated Wed, 10 Sep 2025 07:34 PM IST
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सार

दशकों से चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता रहा है। पनडुब्बियों और फ्रिगेट से लेकर लड़ाकू विमानों और मिसाइल सिस्टम तक, बीजिंग ने ढाका की रक्षा क्षमताओं में गहरा प्रवेश कर लिया है।

China Growing Influence and Strategic Questions in Bangladesh
चीन-बांग्लादेश रिश्तों का एक ऐसा पहलू है जिस पर अपेक्षाकृत कम चर्चा होती है। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बांग्लादेश में चीन की मौजूदगी अब केवल आर्थिक गलियारों और अवसंरचना वित्त पोषण तक सीमित नहीं है। यह सैन्य सहयोग, डिजिटल तकनीक और सांस्कृतिक कूटनीति तक फैल चुकी है। बीजिंग इसे “विकास साझेदारी” कहकर पेश करता है, लेकिन गहराई से देखने पर तस्वीर और जटिल है—यह बांग्लादेश को चीन के व्यापक रणनीतिक प्रभाव क्षेत्र में गहराई से पिरोने की महत्वाकांक्षा का हिस्सा है। आने वाले समय में इसका व्यापक असर देखने को मिलेगा।

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सैन्य सहयोग और सुरक्षा पर असर

चीन-बांग्लादेश रिश्तों का एक ऐसा पहलू है जिस पर अपेक्षाकृत कम चर्चा होती है।  दोनों देशों के बीच गहराता सैन्य सहयोग। दशकों से चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता रहा है। पनडुब्बियों और फ्रिगेट से लेकर लड़ाकू विमानों और मिसाइल सिस्टम तक, बीजिंग ने ढाका की रक्षा क्षमताओं में गहरा प्रवेश कर लिया है।

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2016 में बांग्लादेश ने चीन से मिंग-श्रेणी की दो पनडुब्बियां खरीदीं, जिन्हें चीनी ऋण से वित्त पोषित किया गया था। यह सौदा एक मोड़ साबित हुआ, जिसने बंगाल की खाड़ी में बीजिंग की बढ़ती भूमिका को लेकर नई दिल्ली की चिंता बढ़ा दी। बांग्लादेश का कहना है कि ये खरीद रक्षा आधुनिकीकरण और आत्मरक्षा की जरूरतों से प्रेरित हैं। लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि चीनी सैन्य उपकरण केवल हार्डवेयर तक सीमित नहीं रहते—इसके साथ प्रशिक्षण, रखरखाव और खुफिया सहयोग जैसी परतें भी जुड़ी होती हैं।

यह चीन को ढाका की रक्षा क्षमताओं पर दीर्घकालिक प्रभाव और पकड़ देता है। यह परिदृश्य भारत के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग है। भारत का सैन्य सहयोग संयुक्त अभ्यास, आतंकवाद-रोधी साझेदारी और क्षमता निर्माण पर आधारित है—जहां परस्पर निर्भरता तो होती है, लेकिन उलझनभरी पकड़ या रणनीतिक बंधन नहीं।


डिजिटल सिल्क रोड और साइबर खतरे

चीन का प्रभाव डिजिटल क्षेत्र तक भी गहराई से फैला है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की उप-पहल डिजिटल सिल्क रोड के जरिए चीनी टेलीकॉम कंपनियां—हुवावे और जेडटीई —बांग्लादेश की डिजिटल अवसंरचना में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। 5जी नेटवर्क से लेकर निगरानी तकनीकों तक, उनका दखल लगातार बढ़ रहा है।

एक ओर इससे बांग्लादेश की डिजिटल प्रगति तेज हुई है, लेकिन दूसरी ओर डाटा सुरक्षा और तकनीकी निर्भरता को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। अफ्रीका में देखे गए उदाहरणों की तरह, जहां हुवावे के उपकरणों से गुप्त डाटा ट्रांसफर की बातें सामने आईं, वैसे ही बांग्लादेश में भी निगरानी और बैकडोर एक्सेस का खतरा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खासकर तब, जब देश में डिजिटल गवर्नेंस अभी विकसित हो ही रही है। चीनी तकनीक पर अति-निर्भरता सूचना युग में बांग्लादेश की संप्रभुता को चुनौती दे सकती है। डाटा का इस्तेमाल दबाव बनाने या मित्र देशों के खिलाफ मनचाहे तरीके से भी किया जा सकता है।

China Growing Influence and Strategic Questions in Bangladesh
चीन की फंडिंग का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में विशाल अवसंरचना परियोजनाओं पुल, राजमार्ग और पॉवर प्लांट्स पर केंद्रित है। - फोटो : एएनआई

सांस्कृतिक कूटनीति: सॉफ्ट पॉवर की बढ़त

बंदरगाहों और पॉवर प्लांट्स के साथ-साथ बीजिंग ने सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ाने में भी निवेश किया है। बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट्स की बढ़ोतरी, चीनी शैक्षणिक संस्थानों में छात्रवृत्ति, और राज्य-प्रायोजित सांस्कृतिक आदान-प्रदान इस दिशा में बड़े कदम हैं।

लोगों का लोगों से संपर्क अपने आप में गलत नहीं, लेकिन आलोचक मानते हैं कि इस तरह की “सॉफ्ट पॉवर” अक्सर राजनीतिक संदेशों के साथ मिल जाती है। यह चीन के अनुकूल आख्यानों को आगे बढ़ाती है और आलोचनात्मक बहस को हाशिए पर धकेल देती है। इसके विपरीत, भारत अपने साझा भाषाई, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों पर निर्भर करता है, जो बांग्लादेशी समाज के साथ स्वाभाविक जुड़ाव पैदा करते हैं। चीन के प्रयास भले ही वित्तीय दृष्टि से बड़े हों, लेकिन उनमें भारत-बांग्लादेश संबंधों जैसी गहराई और प्रामाणिकता का अभाव है।


आर्थिक बोझ: अति-केंद्रीकरण का खतरा

चीन की फंडिंग का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में विशाल अवसंरचना परियोजनाओं पुल, राजमार्ग और पॉवर प्लांट्स पर केंद्रित है। ये प्रोजेक्ट विकास के दृश्यमान प्रतीक तो बनते हैं, लेकिन अक्सर जमीनी स्तर के क्षेत्रों जैसे कृषि, स्वास्थ्य या शिक्षा को सुदृढ़ नहीं कर पाते। इसके उलट भारत की सहायता योजनाएं प्रायः सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्रशिक्षण संस्थानों और लघु व्यापार प्रोत्साहन तक पहुंचती हैं।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बाहरी ऋण से संचालित अवसंरचना-आधारित विकास पर अधिक निर्भरता बांग्लादेश को “बूम-एंड-बस्ट साइकिल” में फंसा सकती है। यदि वैश्विक स्तर पर परिधान (गारमेंट्स)—जो बांग्लादेशी निर्यात की रीढ़ है की मांग घटती है, तो ऋण चुकाने की क्षमता पर भारी दबाव पड़ेगा और अर्थव्यवस्था तनाव में आ सकती है। पाकिस्तान की सीपीईसी ऋण समस्याओं और श्रीलंका के वित्तीय संकट से मिली सीखें बांग्लादेश के लिए चेतावनी की तरह हैं।


भू-राजनीतिक संतुलन: ढाका की नाज़ुक चाल

बांग्लादेश के नीति-निर्माता इन जटिलताओं से भली-भांति अवगत हैं। ढाका ने सतर्कता से विविधीकरण की नीति अपनाई है—मातरबाड़ी डीप-सी पोर्ट में जापान की भूमिका का स्वागत किया गया है, वहीं ऊर्जा ग्रिड और परिवहन गलियारों में भारत की भागीदारी को भी जगह दी गई है। यह विविधीकरण इस प्रयास को दर्शाता है कि किसी एक साझेदार, खासकर चीन जैसे महत्वाकांक्षी खिलाड़ी, पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।

भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अपनी स्वाभाविक बढ़त—भूगोल, इतिहास और विश्वास—को लगातार मजबूत बनाए रखे, साथ ही बांग्लादेश की तीव्र विकास आकांक्षाओं के साथ तालमेल बैठाए। चीन के लेन-देन आधारित मॉडल के विपरीत, भारत ने स्वास्थ्य (जैसे कोविड-19 वैक्सीन आपूर्ति), आपदा राहत और ऊर्जा संपर्क के जरिए एक समग्र साझेदारी का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो लचीलापन और पारस्परिक सम्मान पर आधारित है।

जनमत और भविष्य की दिशा

बांग्लादेश में किए गए सर्वेक्षण और आम जनता से हुई बातचीत एक सूक्ष्म तस्वीर पेश करते हैं। तेजी से दिखने वाले विकास कार्यों को लेकर चीनी निवेश की सराहना तो होती है, लेकिन उसके साथ जुड़ी छिपी शर्तों और आशंकाओं को लेकर संदेह भी बना रहता है। भारत, भले ही कभी-कभी व्यापार और जल-बंटवारे जैसे मुद्दों पर मतभेद झेलता है, फिर भी उसे एक ऐसे दीर्घकालिक साझेदार के रूप में देखा जाता है, जिसकी मदद रणनीतिक रियायतें वसूलने के लिए नहीं होती।

आगे चलकर बांग्लादेश की बाहरी साझेदारियों की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि ढाका किस तरह विकास की जरूरतों और संप्रभुता की सुरक्षा के बीच संतुलन बना पाता है। भारत, जापान, यूरोपीय संघ और आसियान के साथ रिश्ते मजबूत करते हुए अगर चीन के साथ सहयोग को सावधानी से संतुलित किया जाए, तो बांग्लादेश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को सुरक्षित रख पाएगा।


एक रणनीतिक मोड़

बांग्लादेश में चीन की आर्थिक सक्रियता केवल पुलों और बंदरगाहों तक सीमित नहीं है; यह प्रभाव, पकड़ और दक्षिण एशिया में दीर्घकालिक स्थिति बनाने की कोशिश है। सैन्य निर्भरता, डिजिटल कमजोरियां और सांस्कृतिक प्रभाव ये सब आर्थिक निवेश से कहीं आगे की परतें हैं। भारत का ऐतिहासिक रूप से जुड़ा सहयोग एक अलग रास्ता दिखाता है—विकास बिना वर्चस्व के, सहयोग बिना दबाव के। जैसे-जैसे ढाका वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका गढ़ता जाएगा, असली साझेदारी और रणनीतिक अतिक्रमण के बीच का अंतर और स्पष्ट होता जाएगा। यह लड़ाई केवल आर्थिक नहीं, बल्कि गहरे रणनीतिक मायनों वाली है।


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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