समुंदर के रत्न: गुजरात के कोरल रीफ्स
- कोरल रीफ्स को अक्सर “समुद्र के वर्षावन” कहा जाता है, क्योंकि इनमें असीम जैव विविधता पाई जाती है। भारत में सबसे प्रसिद्ध कोरल रीफ्स अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में हैं।

विस्तार
जब हम गुजरात के प्राकृतिक विरासत के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मन में कच्छ के रण, गिर के घास के मैदान या थार के रेगिस्तान की छवि उभरती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि गुजरात भारत के सबसे अद्भुत और नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक का घर है कोरल रीफ्स। कच्छ की खाड़ी के उथले जल में बसी ये कोरल रीफ्स समुद्र के नीचे फैले ऐसे जंगल हैं, जो जीवन, रंग और शांति से भरे हुए हैं।

हर कोरल रीफ एक जीवित संरचना है यह पत्थर नहीं, बल्कि असंख्य जीवों का जीवंत घर है, जो समुद्र के संतुलन को बनाए रखते हैं।
एक अनोखा आवास
कोरल रीफ्स को अक्सर “समुद्र के वर्षावन” कहा जाता है, क्योंकि इनमें असीम जैव विविधता पाई जाती है। भारत में सबसे प्रसिद्ध कोरल रीफ्स अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में हैं। लेकिन गुजरात की कच्छ की खाड़ी इस मायने में खास है कि यह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एकमात्र कोरल रीफ प्रणाली है, और हिंद महासागर की सबसे उत्तरी कोरल पारिस्थितिकियों में से एक है।
लगभग 400 वर्ग किलोमीटर में फैली ये रीफ्स खारे और मटमैले पानी, ऊंचे तापमान और तेज़ ज्वार-भाटे जैसी कठिन परिस्थितियों में भी पनपती हैं।
कच्छ की खाड़ी का मरीन नेशनल पार्क और अभयारण्य, जिसे 1980 के दशक में घोषित किया गया था, इन रीफ्स और इन पर निर्भर समुद्री जीवों की रक्षा करता है। यह भारत का पहला समुद्री राष्ट्रीय उद्यान है, जो दर्शाता है कि गुजरात की कोरल रीफ्स हमारे देश की जैव विविधता के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।
कोरल रीफ्स वास्तव में छोटे समुद्री जीवों कोरल पॉलीप्स की उपनिवेश होते हैं, जो सैकड़ों वर्षों में कैल्शियम से बनी कठोर संरचनाएं तैयार करते हैं। ये पॉलीप्स सूक्ष्म शैवालों के साथ अद्भुत सहजीवी संबंध साझा करते हैं, जिन्हें ज़ूज़ैंथेली (zooxanthellae) कहा जाता है। ये शैवाल पॉलीप्स के शरीर के भीतर रहते हैं और प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से उन्हें भोजन और रंग प्रदान करते हैं, जबकि कोरल उन्हें आश्रय और पोषण देते हैं। इस सहजीवन से निर्मित ये विशाल संरचनाएं असंख्य समुद्री जीवों का घर बन जाती हैं।
कोरल के बीच का जीवन
गुजरात की रीफ्स भले ही उष्णकटिबंधीय द्वीपों की नीली झीलों जैसी आकर्षक न लगें, लेकिन उनकी जैव विविधता बेहद समृद्ध है। अब तक 40 से अधिक कोरल प्रजातियां यहां दर्ज की जा चुकी हैं, जो पफरफिश, बटरफ्लाई फिश, पैरटफिश और ग्रूपर जैसी रंग-बिरंगी मछलियों को आश्रय देती हैं। कोरल के बीच तैरती ये चमकीली मछलियां प्रकृति की कलात्मकता का सुंदर उदाहरण हैं।
इन रीफ्स में समुद्री खीरे, स्टारफिश, समुद्री अर्चिन, केकड़े, लॉबस्टर, ऑक्टोपस और शंख-घोंघे जैसी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। बड़े जीवों में डॉल्फिन और समुद्री कछुए- विशेष रूप से ग्रीन टर्टल और संकटग्रस्त ऑलिव रिडले टर्टल, यहां देखे जा सकते हैं। प्रवासी पक्षी जैसे फ्लेमिंगो और ऑयस्टरकैचर भी ज्वार के उतरने पर यहां भोजन की तलाश में आते हैं।

कोरल रीफ्स का महत्व
कोरल रीफ्स केवल सुंदर समुद्री दृश्य नहीं हैं; वे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- जैव विविधता का खजाना: ये हजारों समुद्री जीवों को आश्रय देती हैं और समुद्री खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखती हैं।
- प्राकृतिक ढाल: रीफ्स समुद्री लहरों की ऊर्जा को तोड़कर तटीय कटाव और तूफानों से सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- जीविका का आधार: स्थानीय मछुआरे समुदाय इनसे मिलने वाली मछलियों और अन्य जीवों पर निर्भर हैं।
- पर्यटन की संभावना: यदि जिम्मेदारी से संचालित किया जाए, तो कोरल रीफ्स ईको-टूरिज्म के लिए आकर्षक केंद्र बन सकती हैं।
संक्षेप में, कच्छ की खाड़ी की ये रीफ्स समुद्री जीवन और मानव कल्याण दोनों की आधारशिला हैं।
लहरों के नीचे छिपे खतरे
अपनी मजबूती के बावजूद, गुजरात की रीफ्स कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
- औद्योगिक दबाव: कच्छ की खाड़ी के किनारे कई तेल रिफाइनरी, बंदरगाह और नौवहन मार्ग हैं। तेल रिसाव, खुदाई और प्रदूषण कोरल पर गंभीर असर डालते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान और बदलती लवणता कोरल ब्लीचिंग का कारण बनती है, जिसमें कोरल अपने सहजीवी शैवाल खो देते हैं और धीरे-धीरे मरने लगते हैं।
- अत्यधिक मछली पकड़ना: अस्थिर मछली पकड़ने की प्रवृत्तियां समुद्री पारिस्थितिकी के संतुलन को बिगाड़ती हैं।
- अनियंत्रित पर्यटन: ज्वार के समय कोरल पर चलना या उन्हें छूना जैसी गतिविधियां नाजुक संरचनाओं को नुकसान पहुंचाती हैं।
इन सभी खतरों के कारण इन रीफ्स का संरक्षण अत्यावश्यक हो गया है।
गुजरात की समुद्री विरासत की रक्षा
मरीन नेशनल पार्क इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन अभी और प्रयासों की ज़रूरत है। वैज्ञानिक और संरक्षणकर्ता कोरल प्रत्यारोपण परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिसमें टूटे या क्षतिग्रस्त कोरल टुकड़ों को कृत्रिम संरचनाओं पर फिर से लगाया जाता है ताकि वे पुनः विकसित हो सकें। स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी अहम है- मछुआरों को वैकल्पिक आजीविका देकर उन्हें संरक्षण का भागीदार बनाया जा सकता है।
उत्तरदायी ईको-टूरिज्म भी समाधान का हिस्सा है। यदि पर्यटकों को ज्वार के समय, कचरा प्रबंधन और रीफ्स के प्रति संवेदनशीलता के बारे में शिक्षित किया जाए, तो यह संरक्षण और आजीविका दोनों को संतुलित कर सकता है, साथ ही औद्योगिक प्रदूषण पर सख्त निगरानी और तटीय विकास की सावधानीपूर्वक योजना जरूरी है।
कोरल रीफ्स को अक्सर “समुद्र के रत्न” कहा जाता है। गुजरात, जो अपने शेरों, मेलों और नमक के रेगिस्तानों के लिए जाना जाता है, इन रत्नों को भी अपने सागर के नीचे संजोए हुए है। इनका संरक्षण केवल समुद्री जीवों को बचाने का प्रयास नहीं है- यह भारत की उस प्राकृतिक धरोहर को संभालने की जिम्मेदारी है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा है, पर जिस पर हम सब निर्भर हैं।
---------------
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।