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नेपाल में संकट: क्यों भड़क रही भारत-चीन संबंधों से जुड़े पड़ोसी देशों में आग?

satyanaryan mishra सत्यनारायण मिश्र
Updated Wed, 10 Sep 2025 07:30 AM IST
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सार

यह आंदोलन नेपाल में सामाजिक भूचाल ला सकता है। युवाओं की यह बगावत भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ दक्षिण एशिया में एक नई लहर का प्रतीक बन सकती है। लेकिन हिंसा और अराजकता ने सामाजिक एकता को खतरे में डाल दिया है।

Crisis in Nepal Why is the fire flaring up in neighboring countries related to India-China relations
नेपाल में हिंसक विरोध प्रदर्शन जारी - फोटो : पीटीआई
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विस्तार
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बीते दो दिन के अंदर ही नेपाल अभूतपूर्व सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। 4 सितंबर, 2025 को नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके बाद देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ गई।

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सरकार का तर्क था कि इन प्लेटफॉर्म्स ने स्थानीय कानूनों का पालन नहीं किया, जिसमें नेपाल में पंजीकरण, स्थानीय कार्यालय स्थापित करना और शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना शामिल था। हालांकि, इस फैसले ने विशेष रूप से जनरेशन-जेड (जेन-जेड) के युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया, जो इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं।
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'जेन-जेड क्रांति' के रूप में चर्चित यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकारी तानाशाही के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह बन चुका है। काठमांडू की सड़कों से लेकर संसद भवन तक हजारों युवा प्रदर्शनकारी नेपाल का झंडा थामे, नारे लगाते और तख्तियां लिए सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं।

प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ हिंसक झड़पों में कम से कम 25 लोगों की मौत और सैकड़ों घायल होने की खबरें सामने आई हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए काठमांडू में कर्फ्यू लागू किया गया और सेना की तैनाती की गई। इस बीच, प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसने और बड़े मीडिया हाउस को आग लगाने जैसी उग्र कार्रवाइयां कीं, जिसने हालात को और तनावपूर्ण बना दिया।

भारत का पड़ोस इस समय उथल-पुथल की आग में जल रहा है। नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जनरेशन Z की बगावत ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश को हवा दी है। हाल ही में बैन हटाने और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के बावजूद प्रदर्शन जारी हैं, जिसमें नेताओं के घरों पर हमले और कर्फ्यू लगाने की स्थिति बन गई है।

दूसरी ओर, म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद विद्रोही समूहों की प्रगति ने भारत की महत्वाकांक्षी कलादान परियोजना को और गहरा संकट में डाल दिया है। ये संकट केवल आंतरिक नहीं हैं; इनमें चीन की रणनीतिक छाया भी दिखती है। भारत के लिए यह समय सतर्कता और कूटनीति का है, क्योंकि नेपाल का रोटी-बेटी का रिश्ता और म्यांमार का रणनीतिक महत्व हमारे भविष्य से जुड़ा है।

आखिर क्या हुआ नेपाल में और क्यों फैल गई स्थिरता?

नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाई गई पाबंदी के फैसले को जनरेशन Z (1995-2012 में जन्मे युवा) के लिए उनकी अभिव्यक्ति और आजीविका पर हमला समझा गया। काठमांडू, पोखरा, जनकपुर और इटहरी की सड़कों पर हजारों युवा उतर आए।

प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और मंत्रियों के आवासों पर हमले किए, जिसके बाद तीन मंत्रियों और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। 9 सितंबर तक सरकार ने बैन हटा लिया, लेकिन प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे- काठमांडू में पीएम के आवास में आग लगाई गई, नेपाली कांग्रेस कार्यालय को नुकसान पहुंचा, और सेना ने मंत्रियों को निकाला। कर्फ्यू लगाया गया है, और हवाई अड्डा बंद कर दिया गया।

यह आंदोलन अब केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं है। यह भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और भाई-भतीजावाद (नेपो-बेबीज) के खिलाफ युवाओं की हुंकार बन चुका है। टिकटॉक पर वायरल "नेपो किड" अभियान ने नेताओं और उनके बच्चों की विलासितापूर्ण जिंदगी को आम जनता की तकलीफों के सामने उजागर किया।

एक युवा प्रदर्शनकारी का कहना है, "हम मेहनत करते हैं, लेकिन नौकरियां नेताओं के रिश्तेदारों को मिलती हैं।" यह असमानता नेपाल के सामाजिक ताने-बाने में गहरी खाई को दर्शाती है। मिस नेपाल 2022 सरीशा श्रेष्ठ ने इसे "भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन" बताया, न कि केवल सोशल मीडिया बैन विरोधी।

तराई-मधेशी समुदाय ने भी संविधान संशोधन और प्रांतीय सीमाओं की मांग को फिर उठाया है। उनकी शिकायत है कि काठमांडू की सत्ता में उनकी हिस्सेदारी न के बराबर है। लेकिन हिंसा ने उनके मुद्दों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया। कुछ समूह, जैसे हिंदू नेता दुर्गा प्रसाई, राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग कर रहे हैं, जो समाज में नई दरारें पैदा कर सकता है।

भारत के लिए क्यों है संकट?

भारत के लिए यह संकट व्यक्तिगत और रणनीतिक दोनों स्तर पर चिंता का विषय है। बिहार के अररिया, जोगबनी और सुपौल जैसे सीमावर्ती इलाकों में लोग अपने रिश्तेदारों से संपर्क नहीं कर पा रहे। नेपाल के साथ भारत के रोटी-बेटी के रिश्ते पर यह संकट भारी पड़ रहा है।

पर्यटन और व्यापार ठप हो गए हैं। भारत ने सशस्त्र सीमा बल की तैनाती बढ़ाकर सीमा पर तस्करी और अवैध गतिविधियों को रोकने की कोशिश की है, साथ ही अपने नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है।

यह आंदोलन नेपाल में सामाजिक भूचाल ला सकता है। युवाओं की यह बगावत भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ दक्षिण एशिया में एक नई लहर का प्रतीक बन सकती है। लेकिन हिंसा और अराजकता ने सामाजिक एकता को खतरे में डाल दिया है।

नेपाल सरकार को बैन पूरी तरह हटाने के बाद भ्रष्टाचार की स्वतंत्र जांच शुरू करनी होगी और युवाओं के साथ संवाद करना होगा। भारत को मध्यस्थता की भूमिका निभानी चाहिए।

म्यांमार में भी फैली थी स्थिरता

म्यांमार में फरवरी 2021 के सैन्य तख्तापलट ने देश को गृहयुद्ध में धकेल दिया। अराकान आर्मी जैसे विद्रोही समूहों ने राखाइन प्रांत सहित कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है, जिसमें 17 टाउनशिप में से 14 पर नियंत्रण हो गया है। यह भारत की कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट परियोजना के लिए बड़ा खतरा है। 5,000 करोड़ रुपये की यह परियोजना पूर्वोत्तर भारत को बे ऑफ बंगाल से जोड़ती है।

कोलकाता से सितवे बंदरगाह तक समुद्री मार्ग और पालेटवा तक जलमार्ग तैयार है, लेकिन राखाइन में हिंसा ने पालेटवा-मिजोरम सड़क का काम रोक दिया है। यह परियोजना सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) पर निर्भरता कम करने के लिए भारत का रणनीतिक सपना है। 

हालिया अपडेट्स के अनुसार, परियोजना 2027 तक पूरी तरह ऑपरेशनल होने की उम्मीद है, लेकिन संघर्ष के कारण देरी हो रही है। भारत के विदेश मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने जुलाई 2025 में कहा कि यह ऐजोल और कोलकाता के बीच दूरी 700 किमी कम करेगी।

म्यांमार में भारत की अन्य परियोजनाएं, जैसे इंडिया-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, भी प्रभावित हैं। मणिपुर के मोरेह से थाईलैंड तक यह सड़क भारत के "एक्ट ईस्ट" नीति का हिस्सा है। म्यांमार से शरणार्थियों और अवैध हथियारों की तस्करी ने मणिपुर और मिजोरम में सुरक्षा चुनौतियां बढ़ा दी हैं।

भारत ने 1,643 किमी की भारत-म्यांमार सीमा पर 3.7 बिलियन डॉलर की बाड़बंदी शुरू की है ताकि इन खतरों को रोका जा सके। हाल ही में, म्यांमार के कार्यवाहक राष्ट्रपति मिन आंग ह्लाइंग ने भारत के पीएम नरेंद्र मोदी से शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) शिखर सम्मेलन में मुलाकात की, जहां सीमा स्थिरता, व्यापार और कनेक्टिविटी परियोजनाओं (जैसे कलादान) पर चर्चा हुई।

चीन की रणनीतिक छाया

नेपाल और म्यांमार में अस्थिरता ने भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां खड़ी की हैं। कई लोग इसे चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति से जोड़ते हैं, जिसका मकसद भारत को हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में घेरना है। नेपाल में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन ने सड़क, रेल और हाइड्रोपावर परियोजनाओं में भारी निवेश किया है।

नेपाल का कर्ज 26 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जिसमें चीन का बड़ा हिस्सा है। म्यांमार में चीन का क्याउकफ्यू बंदरगाह हिंद महासागर में उसकी नौसेना को मजबूत स्थिति देता है। अप्रैल 2025 में म्यांमार में भूकंप के बाद चीन ने बड़ी राहत सहायता दी, जो जंटा का समर्थन दर्शाती है।

साथ ही, चीन ने उत्तरी म्यांमार के विद्रोही समूहों पर दबाव डाला ताकि सीमा स्थिर रहे। नेपाल-चीन संबंध मजबूत बने हुए हैं, लेकिन अस्थिरता का फायदा उठाने की कोशिशें दिख रही हैं।

जानकारों का मानना है कि ऐसे में नेपाल में भारत को अपनी संतुलित कूटनीति बढ़ानी होगी। रोटी-बेटी के रिश्ते को मजबूत करते हुए भारत नेपाल सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच संवाद में मध्यस्थता कर सकता है।

म्यांमार में भारत को सैन्य शासन और विद्रोही समूहों के साथ संतुलित कूटनीति अपनानी होगी ताकि कलादान परियोजना पूरी हो सके। साथ ही, क्वाड और ASEAN जैसे गठबंधनों के जरिए भारत को हिंद-प्रशांत में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी।

हालांकि, नेपाल के आंदोलन और म्यांमार के संकट को सीधे चीन से जोड़ने के लिए ठोस सबूत नहीं हैं। फिर भी, चीन इस अस्थिरता का लाभ उठा सकता है ताकि भारत की "नेबरहुड फर्स्ट" नीति कमजोर पड़े।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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