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जीवन धारा: सिर्फ सोचने से बदलाव नहीं आते... अमल न करने पर हमेशा आपके विचार किताबों में ही रहेंगे

रॉबर्ट ए. हेनलेन Published by: ज्योति भास्कर Updated Sat, 13 Sep 2025 06:12 AM IST
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सार

आप किसी उल्लेखनीय चीज के बारे में सोचते हैं, वह भले ही बहुत ही अनोखा विचार क्यों न हो, लेकिन यदि आप उस पर अमल नहीं करते, तो वह हमेशा आपके विचारों में या किताबों में ही रहेगी, उपलब्धियों की सूची में नहीं।

Jeevan Dhara Changes donot come just by thinking if no action thoughts will always remain in books
बदलाव के लिए विचारों पर तत्परता से काम भी जरूरी (सांकेतिक) - फोटो : अमर उजाला / एएनआई
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विस्तार
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सैद्धांतिक रूप से हर चीज तब तक असंभव लगती है, जब तक उसे पूरा न कर लिया जाए। इसी तरह, जब आप किसी उल्लेखनीय चीज के बारे में सोचते हैं, वह भले ही बहुत ही अनोखा विचार क्यों न हो, लेकिन यदि आप उस पर अमल नहीं करते, तो वह हमेशा आपके विचारों में या किताबों में ही रहेगी, उपलब्धियों की सूची में नहीं। अधिकांश लोग भी इसी तरह से सोचते हैं, यदि उन्हें एवरेस्ट पर चढ़ना है, तो उन्हें यह तब तक असंभव लगेगा, जब तक कोई दूसरा एक बार एवरेस्ट की चढ़ाई न कर ले। 

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मुझे दृढ विश्वास है कि भविष्य में मानव जाति की सुरक्षा के लिए हमें अन्य ग्रहों पर बस्तियां स्थापित करनी होंगी। भले ही हम इस धरती को अभी नष्ट न करें, एक दिन यह ग्रह अपने संसाधनों को खो देगा। अगर हम चाहते हैं कि मानव जाति अगले तीस अरब साल तक जीवित रहे, तो हमें और जगह चाहिए। हमें अपने अंडों को एक ही टोकरी में नहीं रखना चाहिए, यानी हमें अपनी पूरी प्रजाति को सिर्फ एक ग्रह तक सीमित नहीं रखना चाहिए। मैं इस पर बहुत मेहनत करता हूं।
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जैसा कि लुईस कैरोल की किताब थ्रू द लुकिंग ग्लास में एलिस कहती हैं, ‘आपको एक ही जगह पर बने रहने के लिए भी पूरी तेजी से दौड़ना पड़ता है।’ इसका मतलब है कि दुनिया काफी तेज गति  से बदल रही है, तकनीक, कला, और विज्ञान इतनी तेजी से आगे बढ़  रहे हैं कि उनके साथ बने रहने के लिए हमें लगातार मेहनत करनी पड़ती है। मैं जितनी मेहनत करता हूं, उतना ही लगता है कि और मेहनत की जरूरत है, क्योंकि समय की गति बहुत तेज है। 

हरेक इन्सान के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब उसे किसी नतीजे के लिए अपनी जान, अपनी दौलत और अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाने का फैसला करना पड़ता है। जो इस चुनौती में नाकाम होते हैं, वे बस शारीरिक रूप से बड़े हो चुके बच्चे होते हैं, और कुछ नहीं हो सकते। वास्तविक परिपक्वता तभी आती है, जब हम इन जोखिमों को स्वीकार कर आगे बढ़ते हैं। ध्यान रहे, बिना संघर्ष के कोई महान उपलब्धि संभव नहीं होती। और यही वह बिंदु है, जहां से सच्ची प्रगति की यात्रा आरंभ होती है। एक यात्रा जो न केवल व्यक्तिगत, बल्कि समस्त मानवता के लिए परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकती है।

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