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मिजोरम भी रेल नक्शे पर...सीमांत से अब देश की तरक्की में भागीदार

Ashwini Vaishnav अश्विनी वैष्णव
Updated Fri, 12 Sep 2025 05:43 AM IST
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सार

2014 से 2025 तक कुल आवंटन 62,477 करोड़ रहा है। आज यहां 77,000 करोड़ की रेलवे परियोजनाएं चल रही हैं।

Mizoram is also on the rail map... from border point to partner in the country's progress
अश्विनी वैष्णव, रेल मंत्री - फोटो : ANI
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विस्तार
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कई दशकों तक उत्तर-पूर्व को दूरस्थ इलाका माना जाता रहा, जहां विकास की राह देखी जाती रही। यहां के लोगों को वह बुनियादी ढांचा और अवसर नहीं मिल पाए, जिसके वे हकदार थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह तस्वीर बदली है। जिसे कभी दूर का फ्रंटियर (सीमांत) कहा जाता था, वह आज भारत की तरक्की का फ्रंट-रनर (अग्रणी) बनकर उभरा है।

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यह बदलाव रेलवे, सड़कों, हवाई अड्डे और डिजिटल कनेक्टिविटी में रिकॉर्ड निवेश से संभव हुआ है। शांति समझौते स्थिरता ला रहे हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंच रहा है। आजादी के बाद पहली बार उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को भारत की विकास यात्रा का केंद्र माना जा रहा है।
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रेलवे में किए निवेश को ही देख लीजिए। वर्ष 2009 से 2014 की तुलना में क्षेत्र के लिए रेलवे बजट पांच गुना बढ़ा है। सिर्फ इस वित्तीय वर्ष में ही 10,440 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 2014 से 2025 तक कुल आवंटन 62,477 करोड़ रहा है। आज यहां 77,000 करोड़ की रेलवे परियोजनाएं चल रही हैं। उत्तर-पूर्व ने इससे पहले इतना बड़ा निवेश कभी नहीं देखा था।

मिजोरम की पहली रेल लाइन
समृद्ध संस्कृति, खेल प्रेम और खूबसूरत पहाड़ियों वाला मिजोरम भी दशकों तक मुख्यधारा से दूर रहा। सड़क और हवाई संपर्क सीमित था। रेलवे राजधानी तक नहीं पहुंच पाई थी। लोगों के सपने थे, लेकिन विकास की राहें अधूरी थीं। अब हालात बदल चुके हैं। पीएम मोदी के हाथों शनिवार को बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन का उद्घाटन मिजोरम के लिए मील का पत्थर साबित होगा। 51 किमी लंबी यह परियोजना 8,000 करोड़ से अधिक की लागत से बनी है और पहली बार आइजोल को राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ेगी।

इसके साथ ही, पीएम मोदी सैरांग से दिल्ली (राजधानी एक्सप्रेस), कोलकाता (मिजोरम एक्सप्रेस) और गुवाहाटी (आइजोल इंटरसिटी) के लिए तीन नई ट्रेन सेवाओं को भी हरी झंडी दिखाएंगे। यह रेलवे लाइन कठिन पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरती है। रेल इंजीनियरों ने मिजोरम को जोड़ने के लिए 143 पुल और 45 सुरंगें बनाई हैं। इनमें से एक पुल कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। हिमालयी रेल परियोजनाओं की तरह इस इलाके में भी रेलवे लाइन लगभग पूरी तरह पुल और सुरंगों के क्रम से बनी है-एक पुल, फिर एक सुरंग, फिर दोबारा पुल और इसी तरह आगे।

हिमालय सुरंग निर्माण विधि
उत्तर-पूर्व हिमालय युवा और नाजुक पहाड़ हैं। यहां जमीन कठोर चट्टानों की जगह मुलायम मिट्टी और जैविक सामग्री से बनी है। ऐसी स्थिति में सुरंग और पुल बनाना चुनौतीपूर्ण था। पारंपरिक तरीके यहां काम नहीं कर सकते थे, क्योंकि ढीली मिट्टी निर्माण का भार सहन नहीं कर पाती। इंजीनियरों ने इसके लिए हिमालयन टनलिंग मेथड विकसित किया। इस तकनीक में पहले मिट्टी को स्थिर और मज़बूत किया जाता है, फिर सुरंग और निर्माण का काम किया जाता है। इससे क्षेत्र की सबसे कठिन परियोजनाओं में से एक को पूरा करना संभव हुआ। एक और बड़ी चुनौती ऊंचाई पर पुलों को टिकाऊ बनाना था, क्योंकि यह क्षेत्र भूकंप प्रभावित है।

इसके लिए भी विशेष डिजाइन और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। यह स्वदेशी नवाचार दुनिया भर में ऐसे ही भौगोलिक इलाकों के लिए एक मॉडल है। हजारों इंजीनियरों, मज़दूरों और स्थानीय लोगों ने मिलकर इसे संभव बनाया। भारत जब निर्माण करता है, तो दूरदृष्टि और समझदारी के साथ करता है।

पूर्वोत्तर का विकास विजन
पीएम मोदी ने कहा है कि हमारे लिए पूर्व (EAST) का मतलब है-एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंथन (मजबूत बनाना) एंड ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति उनके दृष्टिकोण का सार प्रस्तुत करते हैं। असम में टाटा का सेमीकंडक्टर प्लांट, अरुणाचल प्रदेश में टाटो जैसी जलविद्युत परियोजनाएं और बोगीबील रेल-सह-सड़क पुल जैसी ऐतिहासिक संरचनाएं इस क्षेत्र का रूप बदल रही हैं। इसके साथ ही, गुवाहाटी में एम्स की स्थापना और 10 नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों ने स्वास्थ्य सुविधाओं और संपर्क को मज़बूत किया है।

क्षेत्र को लाभ
नई रेल लाइन मिजोरम के लोगों का जीवन स्तर सुधारेगी। राजधानी एक्सप्रेस से आइजोल और दिल्ली के बीच सफर का समय 8 घंटे कम हो जाएगा। नई एक्सप्रेस ट्रेनें आइजोल, कोलकाता और गुवाहाटी के बीच की यात्रा को भी तेज और आसान बनाएंगी। किसान, खासकर जो बांस की खेती और बागवानी से जुड़े हैं, वे अपनी उपज को तेजी से और कम लागत पर बड़े बाजारों तक पहुंचा पाएंगे। अनाज और खाद जैसे जरूरी सामान की ढुलाई भी आसान होगी। पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय कारोबार और युवाओं के लिए नए अवसर बनेंगे। यह परियोजना लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार तक बेहतर पहुंच भी देगी।

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