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वृद्धावस्था: सूर्यास्त ही दिन को अर्थ देता है
विलियम समरसेट मौघम
Published by: लव गौर
Updated Fri, 19 Dec 2025 07:24 AM IST
सार
जब मनुष्य इस सत्य को स्वीकार लेता है, तब वह केवल अपनी उम्र नहीं बढ़ाता, बल्कि वह अपनी बुद्धि, शांति और संतोष में भी वृद्धि करता है। यही तो जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
पूरा जीवन तभी सार्थक होता है, जब हम उसकी प्रत्येक अवस्था को सम्मान के साथ स्वीकार करें। जवानी की चमक और परिपक्वता की दृढ़ता जितनी आवश्यक है, उतनी ही जरूरी वृद्धावस्था की शांत रोशनी भी है। जो व्यक्ति दिन ढलने पर पर्दे गिराकर कृत्रिम उजाला करना चाहता है, वह जीवन की सबसे गहरी सच्चाई से वंचित रह जाता है।
संध्या का सौंदर्य शोर में नहीं, ठहराव में होता है। युवावस्था आकांक्षाओं, प्रयोगों और गलतियों का समय है। उसमें साहस होता है, पर समझ अधूरी रहती है। प्रौढ़ता उस साहस को दिशा देती है। वह सिखाती है कि शक्ति का सही उपयोग कैसे किया जाए, और जीवन को केवल जीतने की नहीं, निभाने की वस्तु कैसे बनाया जाए। वहीं वृद्धावस्था उस यात्रा का वह बिंदु है, जहां मनुष्य जीवन को दौड़ की तरह नहीं, बल्कि एक संपूर्ण कहानी की तरह देखने लगता है। वृद्धावस्था कोई कमी नहीं, वरन स्पष्टता है। यहां इच्छाएं भले ही धीमी हो जाती हैं, पर दृष्टि और भी गहरी होती जाती है। मन हल्का हो जाता है, क्योंकि अब खुद को साबित करने का बोझ नहीं रहता। इस अवस्था में मनुष्य पहली बार वास्तव में दिखावे, तुलना, और व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त होता है। यही तो असली स्वतंत्रता है।
वृद्धावस्था में एक विशेष गरिमा होती है। मौन में अर्थ मिलता है, स्मृतियों में मधुरता, और साधारण क्षणों में संतोष। अब जीवन से कुछ छीनने की इच्छा नहीं रहती, बल्कि जो मिला है, उसे समझने और सराहने की क्षमता आ जाती है। यही वह समय है, जब मनुष्य जान पाता है कि जीवन का मूल्य उसकी गति में नहीं, उसकी गहराई में होता है। जो वृद्धावस्था को नकारता है, वह जीवन को अधूरा मानता है।
वास्तव में हर चरण अगले को पूर्ण करता है। सूर्यास्त दिन को कम नहीं करता, बल्कि उसे अर्थ देता है। और जब मनुष्य इस सत्य को स्वीकार कर लेता है, तब वह केवल उम्र नहीं बढ़ाता, बल्कि वह बुद्धि, शांति और संतोष में भी वृद्धि करता है। यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।
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वृद्धावस्था में एक विशेष गरिमा होती है। मौन में अर्थ मिलता है, स्मृतियों में मधुरता, और साधारण क्षणों में संतोष। अब जीवन से कुछ छीनने की इच्छा नहीं रहती, बल्कि जो मिला है, उसे समझने और सराहने की क्षमता आ जाती है। यही वह समय है, जब मनुष्य जान पाता है कि जीवन का मूल्य उसकी गति में नहीं, उसकी गहराई में होता है। जो वृद्धावस्था को नकारता है, वह जीवन को अधूरा मानता है।
वास्तव में हर चरण अगले को पूर्ण करता है। सूर्यास्त दिन को कम नहीं करता, बल्कि उसे अर्थ देता है। और जब मनुष्य इस सत्य को स्वीकार कर लेता है, तब वह केवल उम्र नहीं बढ़ाता, बल्कि वह बुद्धि, शांति और संतोष में भी वृद्धि करता है। यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।