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राम नवमी विशेष: जब तक सृष्टि तब तक राम की दृष्टि

Prabhat Jha प्रभात कुमार झा
Updated Wed, 17 Apr 2024 11:13 AM IST
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सार

भारत के संविधान की मूल प्रति मे दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गांधी जी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे और भारत मे रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी समाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही प्रयोग किया था।

Ram Navami 2024 Lord Rama Characteristics And Ramayan Chaupai Hindi Meaning
जब तक सृष्टि तब तक राम की दृष्टि - फोटो : istock
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विस्तार
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रामायण में वर्णन है- महर्षि वाल्मीकि ने मुनिश्रेष्ठ नारद से पूछा,“भगवन् ! इस समय इस संसार में गुणी, शूरवीर, धर्मयज्ञ, सत्यवादी और दृढ़- प्रतिज्ञ कौन है ? सदाचारी, सब प्राणियों का हित करनेवाला, प्रियदर्शन, धैर्ययुक्त तथा काम-क्रोधादि शत्रुओं को जीतनेवाला कौन है? मुझे यह जानने की प्रबल अभिलाषा है। महर्षि ! आप इस प्रकार के श्रेष्ठ पुरुष के जानने में समर्थ हैं, अतः मुझे बताइये ।”

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महर्षि वाल्मीकि के ऐसा पूछने पर मुनिश्रेष्ठ नारद ने कहा,

"महर्षि ! आपने जिन गुणों का वर्णन किया है वे बहुत, श्रेष्ठ और दुर्लभ हैं तथा उन सबका एक ही व्यक्ति में मिलना कठिन है, फिर भी आप द्वारा पूछे सभी गुणों से युक्त एक व्यक्ति हैं जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं और ‘राम’ नाम से जगदविख्यात हैं। वे अति बलवान्, धैर्ययुक्त, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान्, प्रियवक्ता, शत्रुघ्रों के नाशक, धर्म के जाननेवाले, सत्यवादी, प्राणियों के हित में तत्पर, वेदों के ज्ञाता, धनुर्वेद में कुशल,आार्य, प्रियदर्शन, गम्भीरता में समुद्र के समान, धेयं में हिमालय के सदृश, पराक्रम में विष्णु के तुल्य, क्रोध में कालाग्नि जैसे,क्षमा में पृथ्वी सम, दान करने में कुबेर और सत्य बोलने में दूसरे धर्म के समान हैं।”  

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भगवान श्री राम के अवतरण के संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में वर्णन किया है –

“जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ।।

असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।।”


जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते है और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भांति-भांति  के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं। वे असुरों को मारकर देवताओं को स्थापित करते हैं, अपने (श्वास रूप) वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं और जगत में अपना निर्मल यश फैलाते हैं।


रामायण में वर्णन के अनुसार, त्रेता युग में सूर्य देव के पुत्र वंशज महाराज इक्ष्वाकु के कुल में अयोध्यापुरी के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म हुआ था। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी- कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ को चौथेपन तक तीन रानियां होते हुए भी संतान प्राप्ति नहीं हुई। दु:खी सम्राट दशरथ जब अपनी यह अंतर्वेदना गुरु वशिष्ठ से कही तो उन्होंने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। वशिष्ठ जी ने यज्ञ पश्चात खीर दशरथ जी को समर्पित की और राजा ने सभी रानियों को बुलाकर वह खीर वितरित की जिसका सेवन कर सभी रानियां गर्भवती हुईं और राजा दशरथ को चार पुत्रों का सुख प्राप्त हुआ। वाल्मीकि रामायण में ऋषि लिखते हैं, जिस समय महा कान्ति वाले राजा दशरथ जी पुत्रेष्टि यज्ञ करने लगे, उसी समय विष्णु भगवान ने पुत्र बनकर उनके यहां अवतार लेने का निश्चय कर लियाl इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था।

भगवान श्री राम जन्म प्रसंग को रामचरितमानस के बालकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदासजी ने वर्णन किया है-
 

''भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥"


अर्थात दीनों पर दया करने वाले, माता कौशिल्या के हितकारी प्रगट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई। गोस्वामी जी आगे वर्ण करते हैं-


"लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी॥"


अर्थात प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं। प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं।

'राम' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “वह जो रोम रोम में बसे”। श्रीरामस्रोत्र में वर्णन है-

"लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये"l


अर्थात लोकों के आकर्षक, युद्ध में साहसी, राजीव(कमल) नेत्र वाले, रघुवंश के नाथ, कारुण्य स्वरुप, दयामयी हृदय वाले, ऐसे श्री राम चंद्र की शरण में हम आश्रय लेते हैंl यदि हम सामाजिक,ऐतिहासिक आदि रूपों से देखेंगे तब भी यह परिभाषा सर्वथा उपयुक्त बैठती है। इतिहास का कोई पृष्ठ नहीं जहां राम का प्रभाव न हो, समाज का कोई वर्ग नहीं जो राम भक्ति से अछूता हो। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम भारतीय जनमानस में बसते हैं। यहाँ पिछले सहस्त्रों वर्षों से आजतक  जनता यदि किसी आदर्श शासनतंत्र को जानती है तो वो है रामराज्य। यदि कोई जिज्ञासावश जानना चाहे कि रामराज्य के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब रामराज्य चाहते हैं तो उत्तर आता है करुणानिधान भगवान श्री राम की महानता।

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जब तक सृष्टि तब तक राम की दृष्टि - फोटो : istock


भगवान श्री राम अपने गुणों की वजह से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने दया, सत्य, सदाचार, मर्यादा, करुणा और धर्म का पालन किया। भगवान राम ने समाज के लोगों के सामने सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था। इसी कारण से उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।भगवान श्रीराम की महानता अथाह है। उनके अद्वितीय शौर्य एवं पराक्रम से उन्होने यज्ञरक्षा कर ऋषियों को भयहीन किया , उनका अनुपम बल ही खर, दूषण आदि का काल बना, वे ही शील के मूर्त स्वरूप है। धनुष भंग करने का सामर्थ्य होनेपर भी वा सभा मे शांति से बैठे थे और गुरुआज्ञा मिलने पर ही गए, पितृभक्ति ऐसी की पिता का वचन कभी मिथ्या न होने दिए भले स्वयं कष्ट सहे, त्याग ऐसा कि जब कुछ ही समय मे राजतिलक होना था तब भी वल्कल पहनकर वनगमन करने मे संकोच नहीं किया,  ज्ञान वेद शास्त्रादि अनेकों ग्रंथों का,मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना कि अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी के बारे मे कभी बुरे शब्द सुनना तक नहीं सहा, धर्म परायण ऐसे जो साधुओं का दुःख सुनकर बोल उठे


“निशिचर हीन करहु महि, भुज उठाए पन कीन्ह।”
 

अनुजों से स्नेह ऐसा कि युगो तक उनके उदाहरण दिए जाते हैं, सीता माता से ऐसा प्रेम किया आज भी कई लोग संबोधन  के रूप मे सीताराम ही बोलते हैं, सत्यवादी ऐसे कि ‘रामो द्विर्नाभिभाषते’ आज प्रेरणा वाक्य है,शबरी को स्वयं नवधा भक्ति का उपदेश देकर सामाजिक सौहार्द के प्रतीक बने, सुग्रीव की कठिन समय मे सहायता कर सच्चे मित्र होने का अर्थ समझाया, घोषणा करके समाज मे नारियों के सम्मान की शिक्षा दी-


“अनुज बधू भगिनि सुत नारी,
सुन सठ कन्या सम ए चारि।
इन्हे कुदृष्टि बिलोकि जेई,
ताहि बधे कछु पाप न होई॥”

 

राम अपने भक्तों के सामर्थ्य से भली भांति परिचित हैं तभी वह हनुमान को ही मुद्रिका देते हैं, भगवान राम की उदारता ऐसी है कि जो सम्पत्ति रावण को दस शीशों के दान के बाद मिली वो सम्पत्ति वो विभीषण को तो उसके आगमन के साथ दे देते है। यह परमपुनीत भगवान का बड़प्पन ही है जो पापियों को भी सुधरने का अवसर देते, रावण के पास भी उन्होने शांतिदूत अंगद को भेजा थे। मातृभक्ति ऐसी की कभी मन मे भी कैकयी माता के प्रति द्वेष भाव न रखा और वापस आ कर सर्वश्रेष्ठ शासक बन कर दिखाए जिनका उदाहरण लोग कई युगो बाद आज भी देते हैं-

“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥”

 

भगवान राम के कई मित्र हुए। हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ भगवान राम ने समभाव के साथ मित्रता की भूमिका निभाई। सभी संबंधों को भगवान श्री राम ने हृदय से निभाया। चाहे वो निषादराज या विभीषण और केवट हो या सुग्रीव। इसके अलावा भगवान श्री राम में बड़े दयालु हुए। उन्होंने अपनी दयालुता की वजह से मानव, पक्षी और दानव सभी के कल्याण की बात की। रामायण में भगवान श्री राम के चरित्र का जिक्र किया गया है, जो उन्हें धर्म के प्रति समर्पित इंसान के तौर पर प्रस्तुत करता है।

 


भगवान् श्री राम ने माता पिता की आज्ञा का पालन किया,परन्तु अवसर आने पर जेष्ठों को भी उपदेश किया है, उन्होंने अपने माता-पिता से यह भी कहा कि वनवास के दौरान दुखी न हों। जिस कैकेयी के कारण राम जी को चौदह वर्ष वनवास हुआ, उस कैकेयी माता को वनवास से आने पर पहले की भांति ही प्रेम किया। आज भी आदर्श बंधु प्रेम को राम-लक्ष्मण की उपमा देते हैं। श्रीराम एक पत्नीव्रत थेl सीता का त्याग करने के उपरांत श्रीराम विरक्ति से रहे । आगे यज्ञ के लिए पत्नी की आवश्यकता होने पर भी दूसरा विवाह न कर, उन्होंने सीताजी की प्रतिकृति स्वयं के पास बिठाई। राम ने सुग्रीव, विभीषण आदि के संकट काल के समय उनकी सहायता की।

आदर्श राजा के रूप में वर्णन है कि भगवान श्री रामने वनवास से लौटने के बाद राज्याभिषेक के बाद अपना सारा राज्य श्री गुरु वसिष्ठ के चरणों में अर्पित कर दिया; क्योंकि उनका मत था कि 'समुद्र से घिरी इस पृथ्वी पर राज्य का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही प्राप्त होता है'। प्रजा द्वारा जब सीताजी के विषय में संशय व्यक्त किया तो उन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख का विचार न कर, राजधर्म के रूप में अपनी धर्मपत्नी का त्याग किया ।

इस विषय में कालिदास ने वर्णन किया है-

"कौलिनभीतेन गृहन्निरस्ता न तेन वैदेहसुता मनस्तः"।


अर्थात लोकापवाद के भय से श्री राम ने सीता को घर से बाहर निकाला, मन से नहीं। आदर्श शत्रु के रूप में जब रावण के भाई विभीषण ने उसकी मृत्यु के बाद दाह संस्कार करने से इनकार कर दिया, तो राम ने उससे कहा, “मृत्यु के साथ शत्रुता समाप्त होती है। यदि आप रावण का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, तो मैं करूंगा। वह मेरा भी भाई है"।

भगवान श्री राम ने धर्म की सभी मर्यादाओं का पालन किया; इसलिए उन्हें ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ कहा गया है। भगवान श्रीराम ने प्रजा को भी धर्म सिखाया। उनकी सीख आचरण में लाने से मनुष्य की वृत्ति सत्त्वप्रधान हो गई व इसलिए समष्टि पुण्य निर्माण हुए। अतः प्रकृति का वातावरण मानव जीवन के लिए सुखद हो गया।

 

Ram Navami 2024 Lord Rama Characteristics And Ramayan Chaupai Hindi Meaning
जब तक सृष्टि तब तक राम की दृष्टि - फोटो : अमर उजाला

भारत के संविधान की मूल प्रति मे दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गांधी जी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे  और भारत मे रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी समाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही प्रयोग किया था। भगवान राम से प्रेरणा पाकर लोग समाज सेवा में अत्यधिक योगदान करते है। आज भी भगवान राम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है । हिंदू जनमानस के लिए भगवान राम की प्रासंगिकता उतनी ही ही जितनी सागर में जल की, वनों में वृक्ष की अथवा ज्ञानी पुरुषों में विनम्रता की होती है। राम सबके लिए इस भारतवर्ष के पवित्र भूमि के हर कण में व्याप्त है। राम के बिना इस भारतवर्ष की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। एक बार श्री राम का नाम-मात्र ही उनके भक्तों के संपूर्ण दुखों का हरण करने वाला है।

 

भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही, पूर्ण ब्रह्म के अवतार भी हैं। महामानव और आदर्श मानव के रूप में वह सद्प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं। भगवान भारतीय धर्म-संस्कृति के अनिवार्य और अपरिहार्य अंग हैं! इसीलिए ईश्वर के विभिन्न नामों में साधना की दृष्टि से रामनाम का महत्त्व सर्वोपरि है। आज के पंकिल कुहासे को नष्ट करने के लिए भगवान श्री राम जैसे चन्दन चर्चित चरित्र में अवगाहन की महती आवश्यकता मानवता को है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम समस्त भारतीय साधना और ज्ञान-परम्परा के वागद्वार हैं, जिनका दृढ़चरित्र लोक-मर्यादा के कठोर अंकुश से अनुशासित है और जो जन-जन के मन को ‘रस विशेष’ से आप्लावित कर सकता है, जो संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी हैl

 

भगवान श्री राम का जनमोत्स्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। उनके जन्मोत्सव को संपूर्ण भारतवर्ष में राम नवमी के रूप में मनाई जाती है। हिंदू पंचांग की गणना के मुताबिक इस वर्ष राम नवमी का पर्व 17 अप्रैल 2024, बुधवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष का राम नवमी विशेष हैl 500 साल के बाद 17 अप्रैल को ऐसी रामनवमी आएगी जब भगवान श्री राम का जनमोत्स्व अयोध्या के नव निर्मित दिव्य एवं भव्य मंदिर में मनाया जाएगाl  इसी वर्ष 22 जनवरी को राम लला की उस भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई हैl भगवान श्री राम आ गए हैंl आज आवश्यकता है जन-जन में श्री राम चरित्र की ओर अपने को ले जाएं इस बार की राम नवमी पूरे भारतवर्ष में अयोध्यामयी भाव से मनाने की तैयारी कर रहा है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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