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सबक: सुशासन का कमाल, बेहतर शासन का बेहतर नतीजा
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सार
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नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार
- फोटो :
एएनआई
विस्तार
बिहार के नतीजों ने ऐसा 'वॉव' वाला पल दिया है कि हर किसी का मुंह खुला का खुला रह जाए। यह जनादेश इतना असरदार है कि बिहार में पहली बार विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा। इसके साथ ही एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी उभरा है कि काफी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं ने मोदी और ओवैसी के पक्ष में वोट किए, जो दर्शाता है कि मुस्लिम महिलाएं तेजस्वी यादव और कांग्रेस से दूरी बना रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने उम्र के 75वें पड़ाव पर होने के बावजूद लगातार चुनाव प्रचार किया, ने इस ऐतिहासिक जनादेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बिहार का जनादेश बिल्कुल स्पष्ट है। भारतीय जनता पार्टी ने भी एक्स पर लिखा है कि जनता ने साफ कर दिया है कि अब विकास ही बिहार की पहचान है। जनता को जंगलराज नहीं, सुशासन चाहिए!राहुल गांधी फिर से बुरी तरह विफल रहे। बिहार के मतदान ने स्पष्ट संकेत दिया कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के लिए एक अतिरिक्त बोझ है। बिहार का जनादेश एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार को चेतावनी देता है। बिहार में इस बार वाम दलों का प्रदर्शन कांग्रेस से अच्छा रहा, जबकि ओवैसी का स्ट्राइक रेट राहुल गांधी से कहीं अधिक बेहतर दिखाई दिया। राजग गठबंधन को महिलाओं के 48.5 फीसदी वोट मिले, जो मुख्य विपक्षी दल को मिले वोट से 10 प्रतिशत ज्यादा है। बिहार ने मोदी-नीतीश की जोड़ी को पूरा समर्थन दिया है। यह ऐतिहासिक जीत लोकतंत्र के असली रूप को दिखाती है। बिहार ने संकेत दिया है कि आंबेडकर का संविधान जीत गया है।
गहन मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) का विरोध करने वाले राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोप और तेजस्वी यादव के हर घर को पक्की नौकरी के आश्वासन भी डबल इंजन की जीत को रोक नहीं सके। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जो अपने प्रचार में जंगलराज का भय दिखाया, वह सुदूर ग्रामीण मतदाताओं के बीच भी कारगर साबित हुआ। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। तेजस्वी यादव को अपने विधायकों को एकसाथ रखने में मुश्किल हो सकती है। उसके कई विधायक अलग राह पर चले जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तेजस्वी यादव का 30,000 रुपये और एक परिवार को एक नौकरी देने का वादा मतदाताओं को लुभाने में विफल रहा। यही नहीं, मुस्लिम-यादव समीकरण भी कोई काम नहीं आया।
बिहार की चुनावी राजनीति में नए प्रवेशी प्रशांत किशोर को करारी हार मिली। अब बिहार में भाजपा अपने सहयोगी पर निर्भर नहीं है। भाजपा से अब नए चेहरे सामने आएंगे। लेकिन जद (यू) के प्रदर्शन ने बता दिया कि दो दशकों तक सत्ता में रहने के बाद भी नीतीश कुमार राजग गठबंधन के लिए केंद्रीय भूमिका में हैं, जिससे यह आशंकाएं खारिज हो गईं कि उनका प्रभाव कम हो जाएगा। उम्मीद करनी चाहिए कि नीतीश कुमार भाजपा-जदयू गठबंधन की नई सरकार का नेतृत्व करते हुए दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
बहुत से चुनावी विश्लेषक और पत्रकार जमीनी हकीकत को समझने में नाकाम रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कई जनसभाओं में कहा था कि 14 नवंबर के नतीजे राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका देंगे। अगले साल केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। बिहार चुनाव में राजग गठबंधन की जीत से जो सीखने लायक सबक मिलता है, वह यह है कि बेहतर शासन का बेहतर नतीजा मिलता है और झूठे वादों पर जनता यकीन नहीं करती है।