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मानव तस्करी: बच्चे गुम होकर जाते कहां हैं, सुप्रीम कोर्ट की चिंता और पड़ताल का वास्तविक पहलू
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उच्चतम न्यायालय ने भारत में हर आठ मिनट में एक बच्चे की गुमशुदगी पर गहरी चिंता प्रकट की और तत्काल इसका समाधान चाहा। यह चिंता विभिन्न अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय सर्वेक्षणों से भी उभरती है। एनसीआरबी की भारत में अपराध 2023 रिपोर्ट के अनुसार, देश में दर्ज होने वाली बच्चों की गुमशुदगी की शिकायत 2022 की तुलना में 2023 मेंे 9.5 फीसदी बढ़ी है। इनमें 71.4 प्रतिशत लड़कियां हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों का राज्यवार विश्लेषण करें, तो उत्तर प्रदेश सबसे आगे नजर आता है, जहां 2023 में 25,000 से अधिक मामले दर्ज हुए। उसके बाद बिहार (18,000), पश्चिम बंगाल (15,000) और महाराष्ट्र आते हैं। दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरों में तो 50 प्रतिशत से अधिक मामलों का पता ही नहीं लग पाता है।रिपोर्ट के अनुसार, कुल गुमशुदा बच्चों में से करीब 74 फीसदी को बरामद किया जाता है, लेकिन शेष 26 प्रतिशत बच्चे गुम ही रह जाते हैं। ये बच्चे अक्सर मानव तस्करी के नेटवर्क में फंस जाते हैं। एनसीआरबी का ‘ट्रैक-चाइल्ड’ पोर्टल 2023 में ऐसे 80 प्रतिशत मामलों में सहायक सिद्ध हुआ, लेकिन डाटा एंट्री में देरी और स्थानीय पुलिस की उदासीनता इसमें बड़ी बाधाएं बनी रहीं। रिपोर्ट में बच्चों के खिलाफ बढ़े 9.2 फीसदी अपराधों में गुमशुदगी को प्रमुख घटक माना गया। इन आंकड़ों के अलावा, यूनिसेफ इंडिया की 2024 की वार्षिक रिपोर्ट द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन में वैश्विक स्तर पर 4.88 करोड़ बच्चों के विस्थापन का जिक्र है, जिसमें भारत का बड़ा हिस्सा है। रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष और हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में 5.2 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल से वंचित हैं, जो गुमशुदगी का प्राथमिक कारण बनता है।
भारत में, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी व शिक्षा की कमी के चलते 40 फीसदी गुमशुदा बच्चे मानव तस्करी के शिकार होते हैं। यूनिसेफ के अनुमानों के अनुसार 2024 में डेढ़ से दो लाख बच्चे गुम हुए, जिनमें 30 प्रतिशत तस्करी से जुड़े। संगठन ने डिजिटल ट्रैकिंग एप्स व स्कूल-आधारित अलर्ट सिस्टम की सिफारिश की है, ताकि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली मजबूत हो। बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के सर्वेक्षण के अनुसार, 70 फीसदी गुमशुदा बच्चे बाल श्रम या जबरन विवाह में धकेल दिए जाते हैं, जिसमें 2024-25 में 20 फीसदी की वृद्धि हुई है। बीबीए का नवीनतम डाटा ऑनलाइन ग्रूमिंग को नया खतरा बताता है। इसी तरह सेव द चिल्ड्रेन इंडिया की 2024 की रिपोर्ट स्टोलेन फ्यूचर्स में गुमशुदगी को ‘चोरी हुआ भविष्य’ करार दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में गुमशुदा बच्चों में 25 फीसदी यौन शोषण से जुड़े थे। संगठन ने पीओसीएसओ एक्ट को मजबूत करने और एनजीओ-सरकार साझेदारी की वकालत की है। एनसीपीसीआर का 2025 डैशबोर्ड रीयल-टाइम ट्रैकिंग उपलब्ध कराता है। इसने ‘वात्सल्य’ पोर्टल लॉन्च किया है, जो लापता और असुरक्षित बच्चों का डाटाबेस रखता है, लेकिन जागरूकता की कमी एक बड़ी बाधा है।
एनसीआरबी के अनुसार, 45,000 मामले तस्करी से जुड़े हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट सीमा क्षेत्रों में नेपाल-बांग्लादेश मार्ग पर प्रकाश डालती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, केंद्र को एआई-आधारित ट्रैकिंग पर आधारित ‘बाल सुरक्षा पोर्टल’ लॉन्च करना चाहिए। यूनिसेफ की सलाह पर स्कूलों में अलर्ट सिस्टम लागू हों। बीबीए ने पुलिस प्रशिक्षण पर जोर दिया है, जबकि सेव द चिल्ड्रेन ने पीओसीएसओ को सख्ती से लागू करने की मांग की। एनसीपीसीआर का ‘ई-बाल निदान’ प्लेटफॉर्म शिकायत पंजीकरण को आसान बनाए। राज्य सरकारें ‘ट्रैक-चाइल्ड’ को अनिवार्य करें व एनजीओ के साथ साझेदारी बढ़ाएं।