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कूटनीति: हमें यूनुस को खुश करने की जरूरत नहीं, बांग्लादेश का आग्रह ठुकराना वाजिब

subir bhowmik सुबीर भौमिक
Updated Fri, 21 Nov 2025 06:50 AM IST
सार
पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल मुनीर भारत पर दो-मोर्चे वाला छद्म युद्ध थोपना चाहते हैं और यूनुस सरकार उनका ट्रंप कार्ड है। ऐसे में, भारत ने शेख हसीना को वापस भेजने के बांग्लादेश के आग्रह को खारिज कर कूटनीतिक दृष्टि से एक सही कदम उठाया है।
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India took the diplomatic right step by rejecting Bangladesh's request to send back Sheikh Hasina
हमें यूनुस को खुश करने की जरूरत नहीं - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने सोमवार को अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई, जिससे अवामी लीग और यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के बीच भारी टकराव का माहौल बन गया। गौरतलब है कि अंतरिम सरकार को पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी इस्लामी ग्रुप का समर्थन हासिल है। आरोपी की उपस्थिति के बगैर सुनवाई में बचाव के लिए हमेशा कम मौके मिलते हैं, खासकर तब, जब आरोपी को अपना बचाव दल बनाने की इजाजत न हो। हसीना का मामला आईसीटी द्वारा नियुक्त एक वकील देख रहा था, जिसने न तो बचाव पक्ष की तैयारी के लिए समय लेने की खातिर स्थगन की मांग रखी और न ही आरोप-पत्र दाखिल होने के बाद पांच हफ्तों की सुनवाई में एक भी गवाह पेश किया।


संयुक्त राष्ट्र एवं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपदस्थ प्रधानमंत्री को मौत की सजा दिए जाने पर नाराजगी जताई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने एक बयान में कहा कि हालांकि हमें इस सुनवाई के बारे में पता नहीं था, फिर भी हमने हमेशा जवाबदेहीपूर्ण कार्यवाही की वकालत की है, खासकर अंतरराष्ट्रीय अपराध के आरोपों में, ताकि बिना किसी संदेह के उचित कार्यवाही और निष्पक्ष सुनवाई के अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा किया जा सके। यह बात तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब सुनवाई बिना आरोपी के मौजूदगी के की जाती है और फिर मौत की सजा सुनाई जाती है। हमें इस सजा पर खेद है और हम इसका विरोध करते हैं।


एमनेस्टी इंटरनेशनल की सेक्रेटरी जनरल, एग्नेस कैलामार्ड ने एक बयान में कहा कि ‘शेख हसीना को मौत की सजा देने से 2024 के नरसंहार के पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिलेगा।’ उन्होंने अपने बयान में कहा, ‘जुलाई-अगस्त, 2024 में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए गंभीर उल्लंघन और मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोपों के लिए जो लोग व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं, उनकी जांच होनी चाहिए और निष्पक्ष सुनवाई में उन पर मुकदमा चलना चाहिए। हालांकि, यह सुनवाई और सजा न तो निष्पक्ष है और न ही सही। पीड़ितों को न्याय और जवाबदेही की जरूरत है, फिर भी मौत की सजा मानवाधिकारों के उल्लंघन को और बढ़ाती है। यह सबसे क्रूर, अपमानजनक और अमानवीय सजा है और किसी भी न्याय प्रक्रिया में इसकी कोई जगह नहीं है।’

शेख हसीना को मृत्युदंड देने से तब तक कोई फर्क नहीं पड़ेगा, जब तक वह भारत में हैं। लेकिन इस फैसले से साफ है कि यूनुस सरकार अवामी लीग पर लगा प्रतिबंध नहीं हटाएगी और न ही उसे फरवरी में होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने की इजाजत देगी। अवामी लीग ने बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया और आजादी के बाद के आधे इतिहास में उस पर राज किया। चाहे अवामी लीग के किसी भी नेता को सजा मिल जाए, लेकिन अवामी लीग के बिना बांग्लादेश में सबको साथ लेकर चलने वाला चुनाव नहीं हो सकता। लीग कभी भी हथियारबंद क्रांति वाली पार्टी नहीं थी, बल्कि यह चुनावों के जरिये सत्ता में यकीन रखती थी। 1970 के पाकिस्तान चुनावों में जबर्दस्त जीत के बाद जब इसे सत्ता से बाहर कर दिया गया और बंगाली लोगों का भयानक नरसंहार हुआ, तभी अवामी लीग को हथियारबंद लड़ाई का सहारा लेना पड़ा। 1971 में पाकिस्तानी सेना की तरह, यूनुस और उनके कट्टर इस्लामी समर्थक अवामी लीग को हाशिये पर धकेल रहे हैं। इसके तहत यूनुस ने पहले तो सुनियोजित अभियान के तहत अवामी लीग को सत्ता से हटाया गया, फिर उसे चुनाव में भागीदारी करने से प्रतिबंधित भी कर दिया।

हैरानी की बात नहीं है कि हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय ने कहा कि अगर अवामी लीग को चुनाव में शामिल होने का मौका नहीं दिया गया, तो हिंसा हो सकती है। बांग्लादेश की राजनीति में नतीजे अक्सर सड़क पर लोगों के समर्थन से तय होते हैं। हालात बिगड़े हुए हैं, अब यूनुस को अवामी लीग के बड़े विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ सकता है, जिसे दबाने के लिए उन्होंने पुलिस को खुली छूट दे दी है और अपने सलाहकार आसिफ महमूद शोजिब भुयान को नेशनल आर्म्ड रिजर्व की आड़ में एक इस्लामी मिलिशिया बनाने की भी इजाजत दे दी है। करीब 8,000 मिलिशिया के लोगों को पुलिस की वर्दी और दंगा कंट्रोल करने वाले उपकरण दिए गए, जो कानून और व्यवस्था के कामों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं का खुला उल्लंघन है। अगर अवामी लीग के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस और मिलिशिया की हथियारबंद कार्रवाई होती है, तो उन्हें हथियारबंद कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और इसके लिए सिर्फ यूनुस ही जिम्मेदार होंगे।

मोदी सरकार ने सजा के फैसले और हसीना को वापस भेजने के बांग्लादेश के आग्रह को नजरअंदाज कर दिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के एक बयान में कहा गया है कि भारत ने आईसीटी के फैसले पर ध्यान दिया है।
लेकिन भारत के सभी राजनीतिक दल हसीना को पनाह देना जारी रखने के पक्ष में हैं। भारत के पास यूनुस की मदद करने का कोई कारण नहीं है, जिनकी पाकिस्तान से दोस्ती जगजाहिर है। चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान के बांग्लादेश के साथ सैन्य रिश्ते तेजी से सुधर रहे हैं। इससे पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को यह आत्मविश्वास मिला है कि वह भविष्य में किसी लड़ाई में भारत को पूरब के मोर्चे पर भी धमका सकते हैं। मुनीर साफ तौर पर 1971 से पहले के दिनों की तरह भारत पर दो-मोर्चे वाला छद्म युद्ध थोपना चाहते हैं और यूनुस सरकार उनका ट्रंप कार्ड है।

बांग्लादेश में भारत के पास कोई संक्षिप्त विकल्प नहीं है। 1971 के मुक्ति युद्ध की सोच से जुड़े आजादी के समर्थक लोग भारत के भरोसेमंद साथी हैं। दिल्ली ने उन्हें मजबूत बनाने के तरीके ढूंढ लिए हैं, भले ही इसका मतलब अवामी लीग के संदिग्ध लोगों को हटाना हो, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के साथ मिलकर काम किया है। अफगानिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी राष्ट्रवाद को भाषा एवं संस्कृति से ताकत मिलती है, न कि कट्टरपंथी इस्लाम से, जो पाकिस्तान के जिहादी एजेंडे का मुकाबला करने के लिए भारत का सबसे अच्छा दांव है। जो काम पश्चिम में हुआ, वही अब भारत को पूरब में भी करना चाहिए, जैसा 1971 में हुआ था, लेकिन सिर्फ दिल्ली ही अपनी सही प्राथमिकता तय कर सकती है।      edit@amarujala.com  
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