सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Opinion ›   The real question of tribal development PESA law implementation must be effective to achieve its objective

जनजातीय विकास का असली सवाल: पेसा कानून क्रियान्वयन प्रभावी होना जरूरी... तभी पूरा कर सकेगा उद्देश्य

Rajkumar Sinha राजकुमार सिन्हा
Updated Wed, 19 Nov 2025 07:14 AM IST
सार
जनजातियों के विकास के लिए लाया गया पेसा कानून अपने उद्देश्यों को तभी पूरा कर सकेगा, जब उसका क्रियान्वयन प्रभावी हो।
विज्ञापन
loader
The real question of tribal development PESA law implementation must be effective to achieve its objective
जनजातीय कल्याण के लिए पेसा कानून का धरातल पर उतरना जरूरी - फोटो : अमर उजाला प्रिंट / एजेंसी

विस्तार
Follow Us

हाल ही में, भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़े के रूप में मनाया गया। ये दिवस और पखवाड़े महज औपचारिकता न रह जाएं, इसके लिए जरूरी है कि आदिवासी दृष्टिकोण को साथ लेकर सांविधानिक प्रावधानों को लागू किया जाए।



उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने संविधान के भाग-9 के अनुच्छेद-243 से जुड़े पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 अर्थात ‘पेसा कानून’ बनाया था। 24 दिसंबर, 1996 से प्रभावी यह कानून विशेष रूप से ‘अनुसूचित क्षेत्रों’ के लिए बनाया गया था, जहां सामान्य पंचायती राज व्यवस्था सीधे लागू नहीं की जा सकती थी। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 में पंचायतों के गठन, शक्तियां और कार्यप्रणाली का उल्लेख तो है, परंतु प्रावधान किया गया है कि यह भाग अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इसलिए, इनके लिए अलग से कानून बनाने की आवश्यकता हुई। पांचवीं अनुसूची के प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों और वहां के जनजातीय समुदायों के प्रशासन से संबंधित हैं। इसी के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि वे इन क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान करें। इन्हीं सांविधानिक प्रावधानों के आधार पर भारत सरकार ने पेसा कानून लागू किया था। 


अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सरकार व जिला स्वायत्त परिषदें केवल प्रशासनिक ढांचे नहीं हैं, बल्कि आदिवासी समुदायों के विकास के सांविधानिक साधन भी हैं। परंपरागत न्याय व्यवस्था के अनुसार ग्राम सभा विवादों को निपटा सकती है। ग्राम सभा की अनुमति के बिना भूमि हस्तांतरण या अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। ग्राम सभा से अनिवार्य परामर्श के बिना कोई विकास परियोजना शुरू नहीं की जा सकती। भारत जन आंदोलन के विजय भाई कहते हैं कि पांचवीं अनुसूची के ढांचे में केंद्र व राज्य सरकारों तथा राज्यपालों को कृपालु पालनकर्ता जैसा बनाया गया है। उनके मन में आया तो कोई कानून बनाएं, वरना नहीं, लेकिन संसद ने जो पेसा कानून बनाया है, वह राज्य व केंद्र सरकारों, राज्यपालों के विवेक पर निर्भर नहीं है। हालांकि, पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून लागू होने के करीब 29 वर्षों बाद भी कुछ राज्यों ने इसके नियम नहीं बनाए हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची के मुताबिक राज्य विधानमंडल को इस हेतु कानून बनाना पड़ेगा। पांचवीं अनुसूची के पैरा-3 के तहत संसद ने जो पेसा कानून बनाया है, वह सिर्फ राज्य को निर्देश है। पेसा कानून केवल अनुसूचित क्षेत्र में संविधान के भाग-9 को विस्तार देते हुए निर्देशित करता है कि राज्य सरकार कानून बनाकर उसे लागू करे। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के 10 प्रदेशों में 1997 तक कुछ-न-कुछ नियम बनाए गए थे, लेकिन ग्राम सभा का अधिकार क्षेत्र व्यापक नहीं था। अब सरकार ग्राम सभा को थोड़ा कार्यभार देने की जुगत में है, लेकिन वह पेसा सम्मत स्वशासी हो ही नहीं सकता, क्योंकि मूल कानून पंचायत राज कानून ही है। 

पंचायत राज कानून संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत है, इसलिए हर वाक्य में अंग्रेजी भाषा का 'मे' (एमएवाई) शब्द उपयोग किया गया है, अर्थात इसे लागू करना राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर है। पेसा कानून संविधान की पांचवीं अनुसूची से निकालकर भाग-9 में प्रस्तावित है, जहां राज्य सरकार के पास विवेक जैसा कोई बहाना नहीं है। इसलिए, पेसा कानून के हर वाक्य में अंग्रेजी के 'शैल' (एसएचएएलएल) शब्द का उपयोग किया गया है, जो बाध्यकारी है। संसद को यह सांविधानिक अधिकार दिया गया था कि वह अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों की विशेष व्यवस्था बनाए। इसका अभिप्राय था कि जनजातीय और अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन लागू करने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाए, लेकिन इस बाध्यकारी बात को विवेकाधीन ढांचे में जोड़ देने से 'पेसा' का महत्व खो सा गया है। पेसा लागू होने पर निर्णय लेने की शक्ति ग्राम सभा को मिलती है। इनमें खनन, वनोपज व भूमि-अधिग्रहण जैसे क्षेत्रों से सरकारी और निजी कंपनियों के आर्थिक हित जुड़े हैं। अगर ग्राम सभा को वास्तविक अधिकार मिल जाएं, तो खनन व ठेकेदारी नेटवर्क पर रोक लग सकती है। हालांकि, राज्यों ने अब तक पेसा के नियम देर से या अधूरे बनाए हैं। जहां नियम बने भी हैं, वहां ग्राम सभा को सिर्फ सलाह देने वाला निकाय बनाकर रखा गया है, निर्णय लेने वाला नहीं। 

पेसा कानून को नौकरशाहों और राजनेताओं के चक्रव्यूह से निकालने की जरूरत है। घोर केंद्रीकृत व्यवस्था से विकेंद्रीकृत व्यवस्था बनाने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। अनुसूचित क्षेत्रों से पंचायती राज कानून को खारिज कर राज्य विधानमंडल पेसा सम्मत कानून बनाएं, जिससे ग्राम सभा तथा जिला परिषद को स्वशासी दर्जा देकर मजबूत बनाया जा सके। आज का पंचायती राज कानून ज्यादा-से-ज्यादा सिर्फ शीर्ष संचालित विकास की एक सक्रिय और निर्वाचित एजेंसी की रचना कर सकता है।  (सप्रेस)

विज्ञापन
विज्ञापन
Trending Videos
विज्ञापन
विज्ञापन

Next Article

Election

Followed